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ई कचरे की रीसाइक्लिंग: फायदा या नुकसान

२ नवम्बर २०१४

वेयरहाउस के फर्श पर रिमोट कंट्रेल का अंबार लगा हुआ है. एक धुंधली रोशनी वाले कमरे में महिलाएं मोबाइल और लैपटॉप खोलने की कोशिश कर रही हैं. कुछ दूर पिता और पुत्र बैठे एक बाल्टी में माइक्रो चिप्स धो रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/Hofford

चीन के इस गांव में यह मंजर आम है. मोबाइल फोन, लैपटॉप, रिमोट कंट्रोल या फिर अन्य इलेक्ट्रानिक उकरण खराब हो जाने के बाद जमा होने वाले इनके कचरे का क्या हो, यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहम सवाल है. फिलहाल बाजी चीन के हाथ में है जहां दुनिया के कई देश अपना ई कचरा रीसाइकिल करवाने के लिए भेजते हैं. चीन के गुइयू गांव में यह कारोबार जोरों पर है. कई चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें थोड़ी मरम्मत के बाद दोबारा सस्ते दामों में बेच दिया जाता है. बाकी के अंदरूनी हिस्सों को अलग कर सोने या तांबे जैसी धातुएं निकाल ली जाती हैं.

भारी कीमत

लेकिन इस कारोबार के कारण देश को पर्यावरण पर बुरे प्रभाव के रूप में भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. भट्टी में ई कचरे को जलाया जाता है. प्लास्टिक और केमिकल के जलने से धुआं वायु को प्रदूषित कर रहा है. पानी और हवा में हानिकारक तत्व घुल रहे हैं. शांतू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज की रिसर्च के मुताबिक यहां के बच्चों के खून में सीसे की भारी मात्रा पाई जा रही है. पिछले कुछ दशकों में चीन के पर्यावरण में घुलने वाले ई कचरे का ज्यादातर हिस्सा विदेशों से आया है.

वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देश अब अपने ई कचरे से खुद निपटने की तैयारी में हैं. जानकारों के मुताबिक आने वाले समय में चीन के पास खुद अपना ही कचरा पर्यावरण को प्रभावित करने के लिए बहुत ज्यादा होगा. चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ देश में खपत दिन पर दिन बढ़ती जा रही है. इस समय चीन दुनिया का सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है.

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तस्वीर: Greenpeace/Natalie Behring-Chisholm

चीनी गैर सरकारी संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एंड एंवायरमेंटल अफेयर्स के निदेशक मा युन कहते हैं, "पहले कचरा बाहरी देशों से चीन में आ रहा था. वह इस समस्या का सबसे बड़ा कारण था. लेकिन अब चीन में खुद इन चीजों की खपत इतनी बढ़ गई है. मेरे ख्याल में हमारे यहां करीब 1.1 अरब सेल फोन होंगे और इन उपकरणों का जीवनकाल भी अब कम हो गया है." वह मानते हैं कि अब खतरा बहुत दूर नहीं.

रोकथाम जरूरी

चीन फिलहाल हर साल करीब 61 लाख मेटरिक टन ई कचरा पैदा कर रहा है. अमेरिका में सालाना 72 लाख और पूरी दुनिया में कुल 488 लाख मेटरिक टन ई कचरा पैदा हो रहा है. जहां अमेरिका में पिछले पांच सालों में ई कचरे में 13 फीसदी बढ़ोतरी हुई है वहीं चीन में दोगुनी वृद्धि हुई है. आशंका है कि 2017 तक चीन अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा.

पर्यावरण और यहां रहने वालों के जीवन पर पड़ रहे बुरे प्रभाव को देखते हुए कई संस्थाएं इसका विरोध भी कर रही हैं. गुइयू में पैदा हुए 28 वर्षीय लियो शेन कहते हैं, "यह ऐसे ही जारी नहीं रह सकता. मुझे याद है कि मेरे घर के सामने एक नदी थी जो हरी दिखती थी और पानी साफ रहता था. वह अब काली दिखती है."

रोजगार का जरिया

इस कारोबार से आसपास के इलाकों में रहने वालों के लिए रोजगार के रास्ते भी खुले हैं. हर साल यहां से 16 लाख ई कचरे का निपटारा होता है और रीसाइकलिंग पर करीब 60 करोड़ डॉलर की लागत आती है. 30 साल के मा ने इस काम के लिेए सेल्समैन की नैकरी छोड़ दी. वह कहते हैं, "यह काम थकाने वाला है, लेकिन शहरों के मुकाबले इस काम में पैसे अच्छे मिलते हैं. आप हर महीने 650 से 815 डॉलर तक कमा सकते हैं."

ग्रीनपीस की रिसर्चर लाई यूं अक्सर गुइयू जाती रहती हैं. उन्होंने बताया, "सरकार की नजर से ई कचरे को जमा करना और उसे रीसाइकिल करना स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. रिसर्च के मुताबिक 80 फीसदी घरों के लोग इन कामों में लगे हुए हैं. अगर वे इस कारोबार को बढ़ावा नहीं देते हैं तो उनके लिए किसी दूसरे तरह के रोजगार की व्यवस्था करनी पड़ेगी."

एडम मिंटर का कहना है कि चीन के राष्ट्रीय विकास एवं सुधार कमीशन ने गुइयू के रीसाइकिल उद्योग में भारी निवेश किया है. मिंटर ने अंतरराष्ट्रीय कचरे से संबंधित अर्थनीति पर 'जंकयार्ड प्लैनेट' नाम की किताब भी लिखी है. वह मानते हैं कि स्थिति बहुत मिली जुली सी है, "एक तरफ तो पर्यावरण के लिए कुछ अच्छा किया जा रहा है. वे इस्तेमाल किए जा चुके तत्वों का जीवनकाल बढ़ा रहे हैं, चीजों को रीसाइकिल कर रहे हैं. हालांकि वे इसे इस तरह कर रहे हैं कि यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं है." उनके मुताबिक रीसाइकलिंग खुद अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है.

एसएफ/आईबी (एएफपी)