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इतिहास में आज: 30 अक्टूबर

ऋतिका राय२९ अक्टूबर २०१४

महिला समानता का संघर्ष बहुत पुराना नहीं है. ब्रिटेन की सरकार ने 1957 में पहली बार हाउस ऑफ लॉर्ड्स में महिलाओं को सदस्य बनने की अनुमति दी.

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House of Lords London Großbritannien
तस्वीर: dapd

हाउस ऑफ लॉर्ड्स में सुधार लाने के मकसद से ब्रिटेन में कुछ नए नियम लाए गए. तमाम राजनीतिक दलों की ओर से पुरुषों और महिलाओं के संतुलित प्रतिनिधित्व की योजना बनी. ऐसा प्रावधान हुआ जिसके अंतर्गत खुद प्रधानमंत्री लाइफ पियर्स के रुप में लोगों के नाम चुनते थे और महारानी उनकी सदस्यता पर अंतिम फैसला ले सकती थी.

हाउस में विपक्षी दल की भूमिका में बैठे कंजर्वेटिव दल के नेता की ओर से जब यह प्रस्ताव आया तो उसका सबने स्वागत किया. कहा गया कि आधुनिक समाज में महिलाओं के महत्व को रेखांकित करने वाले कदम उठाने की जरूरत है. उस वक्त तक हाउस ऑफ लॉर्ड्स ही इकलौती ऐसी संस्था थी जहां महिलाओं की सीधी भागीदारी नहीं थी. ब्रिटेन में करीब 40 साल पहले ही सेक्स डिस्क्वालिफिकेशन (रिमूवल) एक्ट नाम का कानून पास हो चुका था जिसका हाउस ने कभी पालन नहीं किया.

इस प्रस्ताव पर भी कई सालों तक चर्चा चलती रही. इसका पहला प्रयास 1953 में हुआ जब कंजर्वेटिव लॉर्ड साइमन ने लाइफ पियर्स बिल पेश किया. लेकिन लिबरल और लेबर पार्टियों के असहयोग के कारण कभी इस पर चर्चा नहीं हो पाई. दि लाइफ पियरेजेस एक्ट 1958 में जाकर पास हुआ. इस तरह पहली बार महिलाएं भी हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बैठने और वोट देने की प्रक्रिया में शामिल हो सकीं. इस सुधार से कई पेशों के लोग हाउस में आए और खासकर महिलाओं के जुड़ने से हाउस की संरचना बदली. इसके पहले तक ब्रिटिश संसद के उपरी सदन में हेरिडेटरी पियर्स यानि सदस्यों का बच्चा होने पर ही पियर की उपाधि मिलती थी.