इतिहास में आज: 23 अक्टूबर
२२ अक्टूबर २०१४ब्रिटेन में लंदन के मशहूर सर्जन और शरीररचना विज्ञानी जोसेफ कॉन्सटेंटाइन कार्प्यू ने एक ऐसी सर्जरी की जिसे पश्चिमी देशों में हुई पहली आधुनिक सर्जरी माना जाता है. यह ऑपरेशन इंग्लैंड के ड्यूक ऑफ यॉर्क अस्पताल में भर्ती एक ब्रिटिश सेना अधिकारी पर किया गया.
कार्प्यू असल में भारतीय और इस्लामिक मेडिकल साइंस से काफी प्रभावित थे. इनमें कई शतक पहले ही प्लास्टिक सर्जरी की तकनीकों का जिक्र है. 1794 में जेंटलमैन पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट को पढ़ने के बाद उन्होंने भारत जाने का निश्चय कर लिया. उस रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह ब्रिटिश सेना में काम करने वाले भारतीय सिपाहियों के अंग भंग होने पर राइनोप्लास्टी कर उन्हें दुरुस्त किया गया. भारत में उन्होंने 20 साल बिताए और वहीं रहकर सर्जरी के स्थानीय तरीके सीखे.
इंग्लैंड लौटकर उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी के विषय पर अपना शोध जारी रखा. जब उन्हें ऐसा एक मरीज मिला जो इस नए तरह के ऑपरेशन को करवाने के लिए तैयार था. उन्होंने उसकी नाक को दुबारा बनाने की कोशिश की. यह मरीज एक सेना अधिकारी था जिसने उस समय में प्रचलित मर्करी ट्रीटमेंट के बुरे असर के कारण अपनी नाक गंवा दी थी. कार्प्यू ने मरीज के माथे की त्वचा निकाल कर उसे नाक के आकार में नाक के छेद को ढकते हुए लगा दिया. कई दिनों तक चेहरे पर पट्टियां बंधी होने के बाद जब उसे हटा कर देखा गया तो वाकई मरीज के चेहरे पर नाक लग गई थी. यह ऐसा पहला सफल मामला था और इसे इंडियन प्लास्टिक सर्जरी के नाम से जाना गया.
पूर्व में ऐसी सर्जरी का मामला 800 ईसा पूर्व से ही मिलता है. भारतीय मान्यता में सुश्रुत को सर्जरी यानि शल्यक्रिया का पिता माना जाता है. इस्लामिक मान्यता में खलीफा अब्बासिद ने पुराने भारतीय सर्जनों के काम को पहली बार संस्कृत से अरबी भाषा में अनुवाद किया. यहीं से सारा ज्ञान अरब और पश्चिमी देशों में पहुंचा.