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आईएस: दबाव और डर के बीच लाचार तुर्की

बाहा गुनगोर/आईबी१६ अक्टूबर २०१४

इस्लामिक स्टेट से निपटने में तुर्की की मूक दर्शक बने रहने के कारण भारी आलोचना हो रही है. डॉयचे वेले के बहाएद्दीन गुनगोर का मानना है कि ऐसा करके यह नाटो देश खुद के लिए खतरा पैदा कर रहा है.

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Kobani
तस्वीर: Getty Images

सीरिया से सटी सीमा पर तुर्की के टैंकर पंक्तिबद्ध खड़े हैं और पड़ोसी देश की सीमा में चल रही घमासान लड़ाई को वे एक सुरक्षित दूरी से देख रहे हैं. कोबानी पर इस्लामिक स्टेट के हमले के बाद से तुर्की से उम्मीद की जा रही है कि वह अपनी सेना को सीमा पार भेजे और अकेले आईएस के हमलों को खत्म कर दे.

तुर्की की रणनीति की आलोचना करने वाले यह नहीं सोच रहे कि अगर उसने ऐसा किया, तो उसके क्या परिणाम हो सकते हैं. क्या तुर्की को सीरिया में शक्ति प्रदर्शन करना चाहिए? अगर आईएस ने पलटवार किया, तो क्या होगा या फिर अगर सीरिया के तानाशाह बशर अल असद ने तुर्की के खिलाफ सैन्य कार्रवाई कर दी तो? क्या सीरिया के समर्थक रूस और ईरान असद का साथ नहीं देंगे? और अगर एक एक कर के इज्राएल समेत अन्य मध्य पूर्व के देश इस लड़ाई में शामिल हो गए, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

Deutsche Welle Bahaeddin Güngör
तस्वीर: DW

अगर तुर्की राष्ट्रपति रेजेब तईब एर्दोआन अकेले हमला करने को खारिज करके अमेरिका के नेतृत्व में आतंक निरोधी गठबंधन की कार्रवाई की मांग करते हैं तो उनका विरोध नहीं किया जा सकता. लेकिन इस मांग के पीछे अपना उद्देश्य भी छिपा रहे हैं, आईएस को हराने के साथ असद को सत्ता से हटाने का. अभी तक वह वैसे भी अपने पुराने दोस्त असद की मदद के लिए बहुत कुछ कर चुके हैं. लेकिन असद को गिराने का उद्देश्य अभी किसी का भी नहीं है, वो सभी आईएस पर ध्यान लगाए हुए हैं.

दूसरा मुद्दा अंकारा की नीति का है, कुर्दों से तुर्कियों का डर. उन्हें चिंता है कि तुर्की और सीरिया के कुर्द कोबानी की लड़ाई में जीतने के बाद उनसे जा कर मिल जाएंगे. एक ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षा और दूसरी ओर तुर्क कुर्दों के सरकार के खिलाफ खड़े होने से तुर्क सरकार और ढीली हो गई है. इसी चिंता के कारण तुर्की ने इस समय कुर्दों के लिए सीमा रोक दी है और आईएस के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा है.

इसके विपरीत अंकारा ने दो साल में पहली बार कुर्द चरमपंथी पीकेके पर हमला बोला है. तुर्की ने हमले के लिए बहुत ही गलत वक्त चुना है. पीकेके, जो कि एक अलग कुर्द राष्ट्र की मांग करता है, उसे जर्मनी भी आतंकवादी संगठन मानता है. अलग राष्ट्र की इस चाहत ने 40,000 लोगों की जान ली है और लाखों लोगों को बेघर कर दिया है. अब, पीकेके के संगठन के तीस साल बाद तुर्की में नई अलगाववादी हिंसा उठने का खतरा नजर आ रहा है.

जब तक तुर्की केवल खुद पर और कुर्दों के साथ अपनी समस्याओं पर ही ध्यान देता रहेगा, तब तक हालात और बिगड़ते रहेंगे. इसलिए तुर्की के लिए यही सही होगा कि वह एक छोटी सी कुर्बानी दे और आतंकवाद का सामना करने के लिए नाटो को तुर्की सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल करने दे ताकि आईएस के खिलाफ प्रभावशाली हवाई हमले किए जा सकें. तुर्की को इस बात का नाज है कि इतने सालों से वह पश्चिमी सैन्य गठबंधन का विश्वसनीय सदस्य रहा है. पर अब, नाटो से जुड़े होने के 62 साल बाद तुर्की की प्रतिष्ठा दांव पर है.