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आईएस के पीआर का काम कर रहा है मीडिया

थॉर्स्टन बेनर/एएम२३ नवम्बर २०१४

पश्चिम को मीडिया और सोशल नेटवर्किंग में आईएस को रोकने के लिए नई और बेहतर नीति की जरूरत है. थॉर्स्टन बेनर मानते हैं कि ऐसा करते समय पश्चिम को अपने सिद्धांतों पर बने रहना होगा.

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Abu Bakr al-Baghdadi
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

जब आईएस गुट ने एक और व्यक्ति का सिर कलम करने का वीडियो जारी किया, तो कुछ ही मिनटों में ये मुद्दा पश्चिमी मीडिया में छा गया. सीएनएन, एन24 से लेकर डॉयचे वेले और न्यूयॉर्क टाइम्स तक. इस बार एक अमेरिकी सहायता कर्मी की हत्या की गई.

सवाल उठता है कि क्या आईएस के सुनियोजित प्रचार के बारे में यह सही नीति है. हर बार सिर काट देने की घटना उतनी ही घृणित होती है लेकिन उसे वैश्विक राजनीतिक मुद्दे के तौर पर बढ़ाना भी सही नहीं है. एक हत्या इराक या सीरिया में हालात में बदलाव कतई नहीं लाएगी जहां आईएस पहले से ही अपनी खिलाफत स्थापित करने की कोशिश में लगा हुआ है. इससे भी बुरी बात यह है कि हर इस तरह की घटना को मुख्य खबर बना कर हम आईएस की पीआर नीति के हिसाब से ही काम कर रहे हैं.

Thorsten Benner GPPi Global Public Policy Institute Porträt
ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के थॉर्स्टन बेनरतस्वीर: privat

बदला, ढिंढोरा और प्रतिक्रिया

आयरलैंड की रिसर्चर लुईसे रिचर्डसन के शब्दों में हर आतंकी गुट की तरह आईएस भी तीन चीजों पर आधारित हैः बदला, प्रसिद्धि और प्रतिक्रिया. बदले के विपरीत प्रसिद्धि और प्रतिक्रिया आतंकी गुटों के हाथ में नहीं होती. तो हम सिर काटने की घटनाओं को मीडिया में मुख्य मुद्दा बनाकर लगातार आईएस को नियमित रूप से मुफ्त का प्रचार क्यों दे रहे हैं? अगर पश्चिमी मीडिया सोच ले कि वह इस तरह की खबरों को मुख्य नहीं बनाएगा तो इससे आईएस के प्रचार पर ब्रेक लगेगी.

और अहम है सही राजनीतिक प्रतिक्रिया. अफसोस की बात है कि पश्चिमी देश प्रतिकूल सलाह के साथ गलत रास्ते पर हैं. जैसे कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन, वह इंटरनेट को जिहादियों का वाइल्ड वेस्ट बताते हैं जिस पर पूरी तरह सरकार का नियंत्रण होना चाहिए. ब्रिस्बेन में उन्होंने कहा, "हम नहीं चाहते कि इंटरनेट बिना नियंत्रण वाली जगह हो."

सोशल मीडिया से पाएं जानकारी

सोशल मीडिया आतंकियों के बारे में जानकारी जमा करने का साधन भी बन सकता है. अमेरिकी विशेषज्ञ जेरेमी शैपिरो और डैन बायमैन मानते हैं, "कम से कम गुप्तचर सेवाओं के लोगों को जिहादियों की भर्ती के बारे में पता लगाना चाहिए. सबसे अच्छा यह होगा कि वह सीधे संभावित आतंकियों से संपर्क में आएं और उन्हें गलत जानकारी दें." इसलिए इन वेबसाइटों को सेंसर करना एक बड़ा सवाल होगा.

ब्रिटेन की खुफिया सेवा जीसीएचक्यू के प्रमुख हैनिगन और एफबीआई निदेशक जेम्स बी कोमे का यह सुझाव तो एकदम ही बेकार है कि सरकारें, खुफिया सेवाएं और बड़ी तकनीकी कंपनियां जांच और निगरानी के लिए साथ मिल कर काम करें. और वह एनक्रिप्टिंग सेवाओं को कमजोर करना चाहते हैं जिनके कारण नागरिक, पत्रकार और विपक्षी नेता आराम से ब्लैंकेट जांच से बच पाते हैं.

इन्हें प्रतिबंधित करना या ढीला करना आईएस और दूसरे आतंकी गुटों द्वारा पैदा की गई चुनौतियों के खिलाफ गलत प्रतिक्रिया होगी. आईएस आतंक के मद्देनजर हमें हैनिगन और कोमे जैसी एकतरफा एजेंडा वाली विचारधाराओं को सीधा समर्थन नहीं देना चाहिए, जैसा कि हमने अमेरिका में 911 के हमलों के बाद किया था. अत्यधिक प्रतिक्रिया अक्सर आत्मघाती होती हैं. दशकों से चले आ रहे आतंक के खिलाफ युद्ध से यह सीख लेनी चाहिए.

थॉर्स्टन बेनर बर्लिन में ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष हैं.