आईएस के खौफ से भागते यजीदी
२० सितम्बर २०१४संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी मामलों के कमिश्नर (यूएनएचसीआर) ने यह कैंप बनाया है. उन्हें इस काम में कुर्दिस्तान के प्रशासकों ने मदद दी है. कुर्दिश और इराकी सेना उनकी सुरक्षा में लगी है. ये सेना मोसूल और तिकरीत को दोबारा कब्जे में लेने की कोशिश कर रही है.
यजीदियों के प्रतिनिधि जामिह हाजी खलीफ ने कहा, "जब इस्लामिक लड़ाके हमारे इलाके में घुसे, तो हमें खाना पानी लेने का मौका भी नहीं मिला और भागना पड़ा. तब से हम बाहर हैं." उनके भाई को जिहादियों ने मार दिया और वह अपने परिवार के साथ दर दर की ठोकरें खा रहे हैं. उन्हें उनके यजीदी धर्म की वजह से खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
दुनिया भर में करीब छह लाख यजीदी हैं, जो इराक के अलावा तुर्की, सीरिया और ईरान में भी हैं. उनके धर्म में कई दूसरे धर्मों का मिला जुला पुट है. वे सात फरिश्तों पर यकीन करते हैं, जिनमें मोर के रूप में मलिक ताउस सबसे अहम फरिश्ता हैं. वे अपने मंदिरों में नंगे पांव जाते हैं.
खलीफ के साथ उनकी पत्नी, दो बच्चे और कई पड़ोसी हैं. वे भागते हुए शिंगाल पर्वतों तक पहुंच गए हैं, जहां उन्हें गुफाओं में शरण लेनी पड़ रही है. उनका कहना है, "बूढ़े और कमजोर लोग भाग नहीं पाए. वे उनके हत्थे चढ़ गए. इस्लामी लड़ाके हमें भी खोज रहे हैं." जबरदस्त गर्मी में लगातार भागना भी उनके लिए आसान नहीं, "रास्ते में हमें बच्चों की लाशें मिलीं. उन्हें मारा नहीं गया था लेकिन भूख प्यास से उन्होंने दम तोड़ दिया. मैंने देखा कि एक मां बच्चे को अपना दूध पिलाते पिलाते मर गई. इन दिनों में मैंने जो कुछ देखा है, मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा." फिर भी वह खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि वे बच गए.
मंदिर में शरण
18 साल की जाजल लालिश पहाड़ी पर यजीदी मंदिर में प्रार्थना करती है. वह बताती है, "इस्लामी लड़ाकों ने मेरे सबसे अच्छे दोस्त का अपहरण कर लिया. उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया. चार लोग बारी बारी से वहां जाते और मेरी दोस्त का बलात्कार करते. जब वे सो गए तो मेरी दोस्त किसी तरह भाग पाई."
वह क्रूर बातें बताते बताते बीच में रुक जाती है कि किस तरह लड़ाके उनका बलात्कार करते हैं, उन्हें गुलामों की तरह बेच देते और लड़ाकों से शादी करने की जबरदस्ती करते, "और जब वे किसी काम की नहीं बचतीं, तो उन्हें मार देते."
मंदिर की देख भाल करने वाले जईद इसमेल मुराद का कहना है, "हर रोज हजारों यजीदी अपने रिश्तेदारों और गुमशुदा लोगों के लिए प्रार्थना करने आते हैं. जो भी यहां आता है, उसकी दर्दनाक कहानी होती है और कुछ दिनों में उन्हें कुछ फर्क ही नहीं पड़ता."
हर तरफ गम
इस बीच आयशा हेजी के रोने की दहाड़ से पूरा मंदिर गूंज उठता है. कुछ मुड़ कर उसकी तरफ देखते हैं, बाकी उसे नजरअंदाज कर देते हैं. उसके एक बेटे का सिर कलम कर दिया गया, जबकि दूसरा लापता है. उसके 12 भतीजे भतीजियों को इस्लामी लड़ाके उठा ले गए. उसके बाद से उनका पता नहीं. हेजी कहती हैं, "मैं अपने भतीजे भतीजियों के लिए दुआ कर रही हूं. मेरे हाथ में तो बस इतना ही है."
जब यजीदियों पर हमला शुरू हुआ, तो उन्होंने शिंजाल पहाड़ियों में शरण ली. लेकिन यहां अगस्त में एक यजीदी ने आत्महत्या कर ली और उसके बाद से लोगों में थोड़ी दहशत फैली है. कुछ लोगों ने समझा कि यह दैवी संकेत है कि यहां भी उनकी जान को खतरा है और यहां से भी भाग जाना चाहिए. लेकिन जानो कूतो कहते हैं कि कितना भागेंगे, "मैं तो यहीं रहूंगा और मरना भी पड़ा, तो इसी पवित्र जगह पर मरूंगा."
एजेए/एमजे (डीपीए)