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असम दंगों में 35 की मौत, सेना की गश्त

२५ जुलाई २०१२

असम में चल रही जातीय हिंसा में मरने वालों की संख्या 35 हो गई है. दंगों की वजह से गांव के गांव खाली हो रहे हैं और लगभग डेढ़ लाख लोग बेघर हो चुके हैं. कर्फ्यू के बीच सेना ने प्रभावित इलाकों में गश्त किया है.

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तस्वीर: Reuters

बीती रात अलग अलग घटनाओं में नौ और लोगों की जान चली गई. दर्जनों घर आगजनी का शिकार हुए हैं. लगभग 500 गांवों पर दंगों का असर पड़ा है.

असम के पुलिस प्रमुख जेएन चौधरी ने बताया कि बुधवार सुबह नौ और शव मिले हैं, "स्थिति अब भी नाजुक बनी हुई है. हम और अर्धसैनिक बलों को तैनात कर रहे हैं." स्थानीय न्यूज चैनलों पर जले हुए घरों और सरकार के बनाए गए राहत शिविरों में रह रहे बेघर लोगों की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं.

बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल के अध्यक्ष हगरामा मोहिलारी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "अब तक 35 लोगों की जान जा चुकी है और करीब 1,70,000 लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया है." मोहिलारी ने कहा कि जिन लोगों के शव बरामद हुए हैं उनकी हत्या किसी भारी हथियार से की गई है और शायद उन्हें डंडों से पीटा गया. उन्होंने बताया कि ये शव सड़क किनारे धान के खेतों में मिले हैं.

पुलिस ने मरने वालों की संख्या 32 बताई है. स्थिति बिगड़ती देख सेना की तैनाती भी की गई है. सेना और अर्धसैनिक बल के करीब 5000 जवान इलाके में तैनात हैं. भारतीय सेना के जवानों ने बुधवार को चार प्रभावित जिलों कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी में गश्त की है. ये सभी जिले बोडोलैंड इलाके में आते हैं. मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम से मांग की है कि इलाके में और जवानों को भेजा जाए.

घरों और दुकानों में आगजनी के मामलों के बाद सोमवार को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए हैं और पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया है. मंगलवार को सैकड़ों लोगों ने कोकराझार से गुजर रही राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन पर हमला किया. इस घटना में कई यात्री घायल हुए. एक अन्य मामले में पुलिस ने हिंसा रोकने के लिए 400 लोगों की भीड़ पर फायरिंग की, जिसके बाद भगदड़ मच गई. कई पुलिस अधिकारियों की शिकायत है कि उनके पास दंगाइयों को रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा सुविधाएं नहीं हैं. हालांकि सरकार का दावा है कि स्थिति को संभालने के लिए सभी मुमकिन कदम उठाए जा रहे हैं.

राहत शिविर में रह रहे रबीउल इस्लाम ने एक स्थानीय चैनल को बताया, "हमने दंगों में अपना सब कुछ खो दिया है. हमारा घर भी नहीं बचा. भीड़ ने उसे जला डाला." एक अन्य महिला रोनिला ब्रह्मा ने कहा, "हम नहीं जानते कि हमें कब तक इन शिविरों में रहना है. हम सब कुछ छोड़ कर जान बचाने के लिए यहां भाग आए."

दंगे की शुरुआत कैसे हुई, इस पर अटकलें लगाई जा रही हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार कोकराझार इलाके में मुस्लिम समुदाय के दो छात्र नेताओं को गोली मार दी गई. इसके बाद से बोडो जनजाति और मुस्लिम संप्रदाय के लोगों के बीच संघर्ष शुरू हो गया.

आईबी/एजेए (एएफपी,रॉयटर्स)