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अफ्रीका में चीन और भारत

५ अक्टूबर २०१२

अफ्रीका में चीन और भारत के घुसते कदमों पर शुरू से ही आरोप लग रहे हैं. दुनिया के दो सबसे बड़े देशों को कई लोग नए औपनिवेशिक ताकत बता रहे हैं, जो शक्ति बढ़ाने के लिए संसाधनों से भरे अफ्रीका का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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तस्वीर: Getty Images

अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने अगस्त 2012 में अफ्रीका दौरे में जो कुछ कहा, वह भारत और चीन को नाराज करने के लिए काफी था. सेनेगल में क्लिंटन का बयान था, "अमेरिका हमेशा से लोकतंत्र और मानवाधिकारों की हिमायत करता आया है, हालांकि कई मौकों पर प्राकृतिक संसाधनों को हासिल करने के लिए दूसरा रास्ता आसान होता है."

भारत और चीन पर हमेशा आरोप लगे हैं कि विकास के लिए वे गैर जिम्मेदार तरीके से सौदेबाजी करते हैं. आरोप है कि वे सूडान आर जिम्बाब्वे जैसे दुनिया से अलग थलग पड़े देशों के साथ भी कारोबार करने में नहीं हिचकिचाते. ऐसे देशों में निवेश करने से जनता को कोई फायदा नहीं पहुंचता. बल्कि ये देश प्राकृतिक संसाधनों को गंवा कर बराबरी का आखिरी मौका भी खो देते हैं.

वॉशिंगटन में चीन भारत इंस्टीट्यूट की संस्थापक और "गेटिंग इंडिया एंड चाइना राइट" की लेखिका हायान वांग इन आरोपों को घिसी पिटी बातें मानती हैं, "यदि आप भारत और चीन के अफ्रीका में बढ़ते प्रभाव को देखें तो आप इसे पुराने औपनिवेशिक काल से बहुत अलग पाएंगे, जब औपनिवेशिक ताकतें प्राकृतिक संसाधनों को चूस रही थीं और इसके बदले उन्हें कुछ नहीं दे रही थीं." मिसाल के तौर पर चीन तेल और गैस सप्लाई के बदले ढांचागत प्रोजेक्ट में निवेश करता है. वह सड़क, पुल या बंदरगाह के लिए पैसे लगाता है.

China Einfluss in Afrika Baustelle in Addis Abeba Äthiopien
इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में एक रोड निर्माण में लगा चीनी सुपरवाइजरतस्वीर: Getty Images

इसके अलावा वह अस्पताल और बिजली संयंत्र बनाने में भी निवेश करता है. "भारत की रणनीति तो इससे भी आगे की है. भारत अपने कारोबारी गुर और सर्वश्रेष्ठ कारोबारी आइडिया वहां लगा रहा है, जिससे रोजगार पैदा होते हैं", वांग का कहना है. वैसे अफ्रीका में बहुत ज्यादा प्राकृतिक संसाधन हैं. तेल और गैस के अलावा वहां सोना, चांदी, तांबा, लोहा, यूरेनियम और हीरे भी हैं.

भारत चीन का बढ़ता प्रभाव

जून 2012 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नई अफ्रीका नीति पेश की. इसके तहत उन्होंने बताया कि अमेरिका का लक्ष्य अफ्रीका में लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना तथा विकास और सुरक्षा मुहैया करना है. सेंट अंटोनियो में टेक्सास विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर वैद्यनाथ गुंडलुपेथ-वेंकटरामू ओबामा के इस घोषणा को व्याकुलता में उठाया गया कदम बताते हैं ताकि अमेरिका अफ्रीका में पिछड़ न जाए, "अमेरिका ने अपनी एक्सॉन जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिल कर तरीका बनाया है कि वह कैसे अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधन पा सकता है यानी वह विवादित सरकारों का खुलेआम समर्थन नहीं करता, बल्कि इन कंपनियों के जरिए पिछले दरवाजे से काम कर लेता है. इसकी वजह से अफ्रीका में जनमत अमेरिका के खिलाफ बनता जा रहा है." वैसे चीन ने अफ्रीका के साथ कारोबार के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. चीन अब अफ्रीका में सालाना 166 अरब डॉलर का कारोबार करता है.

China Einfluss in Afrika Baustelle in Addis Ababa Äthiopien
अदीस अबाबा में बन रही अफ्रीकी संघ की इमारत के साथ चीनी कर्मचारीतस्वीर: Getty Images

भारत और चीन की छवि अफ्रीका में अमेरिका के मुकाबले ज्यादा सकारात्मक है क्योंकि इन दोनों देशों ने शुरू से ही साफ कर दिया था कि वे किसी राजनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक वजह से अफ्रीका में कदम रख रहे हैं. गुंडलुपेथ-वेंकटरामू का कहना है, "यह ज्यादा ईमानदार कदम समझा जाता है. अफ्रीका में चीन से ज्यादा भारत की लोकप्रियता है लेकिन जब आप निवेश की संख्या देखते हैं तो चीन बहुत आगे है." इस वक्त भारत और अफ्रीका के बीच 60 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हो रहा है. भारत के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा का कहना है कि इसे 2015 तक 90 अरब डॉलर कर लिया जाएगा.

प्रतिद्वंद्वी या साझीदार

इथियोपिया से यूगांडा हो या नाइजीरिया से दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीका के कई देशों में चीनियों को सड़क या रेल की पटरियां बनाते देखा जा सकता है. चीनी रणनीति का हिस्सा वहां की सरकारों के साथ करीबी रिश्ता रखना भी है, जिसके लिए उन्हें अरबों डॉलर का मोटा कर्ज भी दिया जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की रणनीति इससे बहुत अलग है क्योंकि वह अपनी बड़ी कंपनियों को वहां भेजता है, चाहे वे मोबाइल कंपनियां हों या ऊर्जा कंपनियां.

साथ में भारत हमेशा अफ्रीका के साथ ऐतिहासिक समानता उभारना चाहता है. महात्मा गांधी 19वीं सदी के अंत में कुछ साल तक दक्षिण अफ्रीका में रहे. बहुत सारे अफ्रीकी देशों की तरह भारत भी ब्रिटेन का उपनिवेश था. बहुत से अफ्रीकी देशों में आज भी भारतीय ही सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय समुदाय है. भारत अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में सबसे बड़ा सैनिक दल भेजता है और भारत को अफ्रीकी समर्थन की जरूरत भी है ताकि उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मिल सके.

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भारत और अफ्रीकी संघ के विदेश मंत्रियों की बैठक, 2008तस्वीर: Getty Images

भारत को अफ्रीका की जरूरत इस बात से भी स्पष्ट होती है कि पिछले आठ साल में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चार बार अफ्रीका दौरा कर चुके हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर सुजीत दत्ता का कहना है, "भारत और चीन अफ्रीका में प्रतिस्पर्धी नहीं हैं, बल्कि दोनों अलग अलग क्षेत्रों में सक्रिय हैं. दोनों के अलग अलग मजबूत धरातल हैं और दोनों एक दूसरे के पूरक के तौर पर काम कर रहे हैं. वह उनकी प्रतिद्वंद्विता और प्रतिस्पर्धा इसलिए उभारी जाती है क्योंकि दोनों उभरती शक्तियां और आर्थिक ताकतें हैं." लेकिन चीन और भारत के लिए भी अब अफ्रीका को लेकर सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि ब्राजील, रूस और तुर्की भी अफ्रीका की ओर कूच कर चुके हैं.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः महेश झा

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