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महिला पाकिस्तानी नेताओं की भूमिका

८ मई २०१३

चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान के घायल होने से पाकिस्तान का संसदीय चुनाव सुर्खियों में है. देश में पहली बार लोकतांत्रिक सरकार बदलने के अलावा इस बार पहले की तुलना में महिलाओं की भूमिका भी ज्यादा है..

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तस्वीर: FAROOQ NAEEM/AFP/Getty Images

पाकिस्तान में पहले की ही तरह सबसे लोकप्रिय महिलाओं में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो बनी हुई हैं. 2007 में एक आतंकी हमले में उनकी मौत हो गई थी. पाकिस्तान में महिलाएं ही नहीं पुरुष भी उन्हें आदर्श मानते हैं. पिछले सालों में एक नया ट्रेंड उभर कर सामने आया है और वो यह कि महिलाएं राजनीतिक दलों में सक्रिय हो रही हैं, रुढ़िवादी कबायली इलाकों में भी. एक तो देश के सबसे बड़े पद के लिए उम्मीदवार बनना चाहती हैं.

Pakistan Wahlen Badam Zari Kandidatin
55 साल की बादाम जरीतस्वीर: STR/AFP/Getty Images

पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक 55 साल की निर्दलीय उम्मीदवार बादाम जरी, 11 मई को हो रहे संसदीय चुनावों में उम्मीदवार हैं. यह खतरे से खाली नहीं है. वह अपने कबायली इलाके बाजौर का प्रतिनिधित्व करना चाहती हैं. यह अफगानिस्तान से लगे सात अशांत इलाकों में एक है और तालिबानी लड़ाकों और अल कायदा आतंकियों के छिपने की जगह माना जाता है. रुढ़िवादी इलाकों में महिलाओं और बच्चियों के अधिकारों के लिए खड़ा होना कितना गंभीर हो सकता है, यह मलाला यूसुफजई पर हुए हमले से पता चलता है. 15 वर्षीया मलाला को स्कूल जाते समय कट्टरपंथियों ने गोली मार कर घायल कर दिया था.

Maryam Nawaz Sharif Politikerin Pakistan
नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज शरीफतस्वीर: picture alliance/AP Photo

महिलाओं की पारंपरिक भूमिका

पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम में अधिकतर लोग महिला और पुरुष की भूमिकाओं के बारे में रुढ़िवादी हैं. महिलाओं आम तौर पर घर पर ही रहती हैं और सड़कों पर बुर्का पहन कर ही जाती हैं. इस इलाके की सिर्फ तीन फीसदी महिलाएं ही पढ़ लिख सकती हैं. बादाम जरी इनमें शामिल नहीं. और पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक यह चुनाव में उम्मीदवारी में कोई बाधा भी नहीं है. जरी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, "मेरा चुनाव लड़ना बाकी महिलाओं को सिर्फ हिम्मत ही नहीं देगा और उनकी समस्याओं को केंद्र में लाएगा बल्कि हमारे समाज के बारे में बने गलत चित्र को बदलने में मदद करेगा."

विश्व आर्थिक फोरम की ताजा रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान की संसद में महिलाओं का अनुपात ब्रिटेन या अमेरिका से कहीं ज्यादा है. जर्मनी के राजनीति और विज्ञान प्रतिष्ठान के क्रिस्टियान वाग्नर कहते हैं, "पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं का सवाल दूसरे देशों जितना ही अनसुलझा है." हाल के सालों में पाकिस्तान के चुनावों में महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है और पार्टियां इसका फायदा भी उठा रही हैं. वाग्नर कहते हैं, "पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) में कई काफी ताकतवर महिला उम्मीदवार हैं. ये अपने इलाकों में इस ताकत का फायदा उठा सकती हैं."

पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में 342 में से 60 सीटें वैसे भी महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं. इस्लामाबाद में हाइनरिष बॉएल प्रतिष्ठान की प्रतिनिधि ब्रिटा पेटरसन कहती हैं, "महिलाओं के लिए संसद में तो कोटा है, लेकिन पार्टियों में अभी तक नहीं है. लेकिन कुछ बदलाव आ रहे हैं और मुझे लगता है कि इससे महिलाओं को हिम्मत मिल रही है." पिछली सरकार ने महिलाओं के फायदे के लिए कई कानून लागू किए. इसके अलावा सभी पार्टियों की महिला सांसदों ने मिलकर एक ग्रुप बनाया है जिसमें वे महिलाओं के लिए जरूरी मुद्दों पर बहस करती हैं.

समान अधिकारों का रास्ता लंबा

ब्रिटा पेटरसन का मानना है कि पाकिस्तान की राजनीति में सामंतवाद की गहरी छाप है. संसद में अधिकतर लोग अमीर और ताकतवर परिवारों से आते हैं. महिलाओं के मामले में भी यही हाल है. पाकिस्तान के राजनीतिशास्त्री प्रो. हसन असकरी रिजवी कहते हैं, "संसद या बड़ी पार्टियों के प्रमुख पदों पर अधिकांश महिलाएं राजनीति की लंबी परंपरा वाले परिवारों से आती हैं." कुछ छोटी पार्टियों में भी, जहां मध्यवर्ग का दबदबा है, अब महिलाओं की संख्या हालांकि बढ़ रही है.

प्रो. रिजवी मानते हैं कि अशिक्षा और सामाजिक वर्जनाएं महिलाओं के लिए सबसे बड़ी अड़चन हैं, खासकर उनके लिए जो राजनीति में करियर बनाना चाहती हैं. पाकिस्तान में सिर्फ 40 फीसदी महिलाएं पढ़ लिख सकती हैं. फिर भी पाकिस्तान की महिलाओं ने पिछले सालों में संघर्ष की प्रवृत्ति दिखाई है. ब्रिटा पेटरसन बताती हैं, "उन्होंने पिछली संसद में यह प्रस्ताव पेश किया कि महिलाओं का कोटा बढ़ाया जाए."

सही दिशा में

हसन असकरी रिजवी के मुताबिक पाकिस्तान में बदलाव धीमा है लेकिन लगातार हो रहा है. राजनीति में महिलाएं काफी सक्रिय हुई हैं. लेकिन एक महिला कबायली इलाके से उम्मीदवार है, यह एक आश्चर्य है. रिजवी कहते हैं, "वह चुनाव शायद ना जीते, लेकिन एक साफ संकेत देती हैं." यह पाकिस्तान में बदलाव की शुरुआत है. महिलाओं को लंबा रास्ता तय करना है ताकि वह पुरुष प्रधान समाज में खुद को स्थापित कर सकें और पहचान पाएं. लेकिन यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है.

रिपोर्टः राखेल बेग/एएम

संपादनः महेश झा

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