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स्वस्थ बच्चे के लिए मां-बाप और वो

२ अक्टूबर २०१२

प्रजनन क्षेत्र में रिसर्च करने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिकों का दावा है कि डीएनए में बदलाव करके वह माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों का इलाज कर सकते हैं. नए तरीके में बच्चा पैदा करने के लिए मां बाप के अलावा तीसरे की भी जरूरत होगी.

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तस्वीर: Fotolia/Leonid & Anna Dedukh

हर साल हजारों बच्चे माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों के साथ पैदा होते हैं. इस बीमारी में शरीर के कुछ बेहद जरूरी अंग के कामकाज पर असर पड़ता है. ब्रिटेन की मैरी ऑस्टिन के 11 साल के बेटे एडम को यही बीमारी है. वेलकम ट्रस्ट के बनाए एक प्रचार वीडियो में मैरी बताती हैं, "इसने एडम की किडनी पर असर डाला है और मुझे बताया गया है कि इस वजह से उसे हार्ट ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ सकती है."

मैरी ऑस्टिन के जीन में इस तरह की माइटोकॉन्ड्रिया बीमारियों के लक्षण हैं. हालांकि इससे उनकी सेहत पर तो असर नहीं पड़ा लेकिन उनके अंडाणु इससे प्रभावित हो गए. इन्हें विकलांग माइटोकॉन्ड्रिया कहते हैं. एक बार जब इन अंडाणुओं का निषेचन हो जाता है तो यही माइटोकॉन्ड्रिया दिल, किडनी, फेफड़े और दिमाग जैसे बेहद जरूरी अंगों के विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं. ऐसे में अगर माइटोकॉन्ड्रिया बीमार हो तो अंगों के विकास पर असर पड़ता है. ब्रिटेन में पैदा होने वाले हर 200 बच्चों में से एक इस तरह की बीमारी से प्रभावित होता है. यह बीमारी केवल मां के जरिए ही बच्चों तक पहुंचती है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

मां बाप और वो

ब्रिटेन में वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों से बचाव का तरीका ढूंढ लिया है. डॉक्टर मां-बाप के भ्रूण के न्यूक्लियस को किसी स्वस्थ इंसान के अंडाणु में ट्रांसप्लांट कर इस बीमारी से बचाव की बात कह रहे हैं. इस तकनीक से पैदा होने वाले बच्चे में तीन लोगों के डीएनए होंगे. इसी वजह से कुछ लोगों ने इस तकनीक का नाम थ्री पैरेंट आईवीएफ सॉल्यूशन रखा है. तीनों लोगों का योगदान इसमें समान नहीं होगा. मां बाप के अलावा जिस तीसरे शख्स के अंडाणु लिए जाएंगे उसके करीब 35 जीन ही होंगे. इंसान में कुल मिला कर करीब 35000 जीन होते हैं.

यह तकनीक थोड़ी विवादित है. इसलिए ब्रिटेन के ह्यूमन फर्टिलिटी एंड एम्ब्रायोलॉजी अथॉरिटी यानी हेफा ने लोगों से विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू की है. मैरी ऑस्टिन इस तकनीक का स्वागत कर रही हैं. इससे उनकी सात साल की बच्ची इस बीमारी को अपने बच्चों में आगे बढ़ने से रोक सकेगी. हालांकि विरोध करने वालों के पास अपनी दलीलें हैं. ह्यूमन जेनेटिक्स अलर्ट से जुड़े डेविड किंग कहते हैं, "इस तकनीक में नाभिकीय बदली होती है, एक कोशिका से न्यूक्लियस को दूसरी में पहुंचाया जाता है, यह वैसा ही है जैसा कि क्लोनिंग में होता है. हम यह जानते हैं कि क्लोन जीवों में सेहत से जुड़ी कई दिक्कतें होती हैं." किंग ने कहा कि कुछ क्लोन जीव पैदा होने से पहले ही मर गए, कुछ सामान्य से बहुत बड़े या फिर कमियों के साथ पैदा हुए और कुछ पैदा होने के कुछ ही देर बाद मर गए. किंग का कहना है कि सामान्य रूप से अंडाणुओं का दान ही सरल, सुरक्षित और सैद्धांतिक रूप से सही है.

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तस्वीर: gemeinfrei

कानून और विज्ञान में संतुलन

थ्री वे आईवीएफ ट्रीटमेंट इस्तेमाल में आए, इससे पहले लंबी प्रक्रिया है और ज्यादा आसार इसी बात के हैं कि इसे मंजूरी नहीं मिलेगी. ब्रिटेन का मौजूदा कानून स्पर्म या एग डोनेशन को खून, अंग या उत्तकों के दान से बिल्कुल अलग रखता है. हेफा कानूनी पेंचों पर ही लोगों से विचार विमर्श करने में जुटा है.

हेफा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पीटर थॉम्पसन कहते हैं, "हम लोगों से यह सवाल भी पूछना चाहते हैं कि माइटोकॉन्ड्रिया का दान देने वाले को संपर्क में रखा जाए या फिर खून या बोन मैरो का दान देने वालों की तरह नहीं रखा जाए." लोगों से विचार विमर्श इस साल दिसंबर तक चलेगा. इसका मकसद यह पता लगाना है कि इस तकनीक को लोगों का पर्याप्त समर्थन है या नहीं. इसके नतीजे ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री जेरेमी हंट के सामने 2013 में रखे जाएंगे.

हालांकि डेविड किंग को हेफा की निष्पक्षता पर शंका है. वे कहते हैं, "इस तरह की बातचीत में आम तौर पर नीतियां बातचीत शुरू करने से पहले ही तय कर ली जाती है." लोगों की राय जानने के लिए एक वेबसाइट भी शुरू की गई है जहां लोग इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी राय दे सकते हैं.

रिपोर्टः शिपोंदा शिंबेलू/ एन रंजन

संपादनः महेश झा

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