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शुरू हो रहा है यूरोपीय फुटबॉल का महाकुंभ

८ जून २०१२

मेजबान पोलैंड और ग्रीस के बीच उद्घाटन मुकाबले के साथ वारसा में शुक्रवार को यूरोपीय फुटबॉल चैंपियनशिप शुरू हो रही है. आयोजकों को टूर्नामेंट से पहले चले राजनीतिक बहस के थमने और खेल पर चर्चा की उम्मीद है.

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यूक्रेन में स्टेडियमतस्वीर: cc-bc-Ilya Chochlov-sa-3.0

यूरोपीय टूर्नामेंट में 16 टीमें भाग ले रही हैं. राजधानी वारसा के नवनिर्मित राष्ट्रीय स्टेडियम में रंगारंग उद्घाटन समारोह के बाद फ्रांचिसेक स्मूडा की टीम 50,000 दर्शकों के सामने शोपीस मैच खेलेगी. पोलैंड और यूक्रेन के आठ शहरों में कुल 31 मैच खेले जाएंगे. पहले दोनों मैच आज पोलैंड में खेले जा रहे हैं. पहला मैच पोलैंड और ग्रीस के बीच वारसा में है जबकि दूसरा मैच रूस और चेक गणतंत्र के बीच व्रोत्सवाफ में हो रहा है.

वर्तमान यूरोपीय और विश्व चैंपियन स्पेन टाइटल का प्रबल दावेदार है. लेकिन 2008 में स्पेन से फाइनल में हार जाने वाला जर्मनी का दावा भी तगड़ा है. दोनों एक बार फिर यूक्रेन की राजधानी कीव के ओलंपिक स्टेडियम में फाइनल में भिड़ सकते हैं.

यूरोपीय फुटबॉल के लिए यह पहला मौका है जब अत्यंत प्रतिष्ठित यूरोपीय चैंपियनशिप पूर्वी यूरोप के देशों में हो रही है, जो दो दशक पहले लोहे की दीवार के पीछे हुआ करता था. यूरोपीय फुटबॉल महासंघ उएफा के अध्यक्ष मिशेल प्लाटिनी मानते हैं कि भूतपूर्व कम्युनिस्ट देशों में टूर्नामेंट का आयोजन पथरीला रास्ता रहा है, लेकिन साथ ही आयोजन की सफलता की उम्मीद करते हुए कहते हैं, "अक्सर कहा जाता है कि मुश्किल जन्म से सबसे खूबसूत बच्चे निकलते हैं."

उएफा की कार्यकारिणी ने 2007 में यूरोपीय चैंपियनशिप के आयोजन का जिम्मा लोगों को आश्चर्य में डालते हुए पोलैंड और यूक्रेन को दिया था. कुछ ही दिन पहले अध्यक्ष चुने गए प्लाटिनी भी उस समय इस फैसले के खिलाफ थे. उन्हें शक था कि पांच साल में पोलैंड और यूक्रेन अपना वादा पूरा कर पाएंगे. और पिछले सालों में टूर्नामेंट की तैयारी पर होटलों की आकाश छूती कीमतों, सड़कों का निर्माण पूरा न होने, नस्लवादी हिंसा और विपक्षी नेता यूलिया टीमोशेंको की कैद पर राजनीतिक विवाद का साया रहा है.

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अब तक के खेल के मैस्कॉटतस्वीर: picture-alliance/dpa/Sven Simon/Getty Images

2004 की नारंगी क्रांति की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री टीमोशेंको के साथ जेल में दुर्व्यवहार की खबरों के बीच ब्रिटेन सहित कई यूरोपीय देशों ने यूक्रेन में होने वाले मैचों का बहिष्कार करने की घोषणा की है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी अभी तक साफ नहीं किया है कि वे मैच देखने यूक्रेन जाएंगी या नहीं.

प्लाटिनी ने लोगों का ध्यान खेल पर लाने की कोशिश की है. लेकिन 1984 में फ्रांस की टीम के सदस्य के रूप में यूरोपीय चैंपियनशिप जीतने वाले प्लाटिनी नस्लवादी हिंसा, महंगे होटल और गैरकानूनी सट्टेबाजी से जुड़े सवालों को चुप नहीं करा पाए हैं.

यह सब आज से बदल सकता है. पोलैंड के लोग धीरे धीरे टूर्नामेंट के रंग में रंगते जा रहे हैं और उत्तरी गोदी नगर ग्दांस्क से दक्षिणी शहर क्राको तक राष्ट्रीय झंडे के लाल सफेद रंग में उमड़ पड़े हैं. ग्दांस्क में आयरलैंड की मामूली टीम को ट्रेनिंग करते देखने के लिए 13,000 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई, जबकि क्राको में टाइटल के एक और फेवरिट नीदरलैंड्स की टीम को देखने 25,000 लोग पहुंचे थे.

कागज पर पोलैंड और ग्रीस का मैच बहुत मजेदार नहीं दिखता. पोलैंड फीफा रैंकिंग में 62वें स्थान पर है जबकि ग्रीस 15वें स्थान पर है. दोनों टीमें 1970 और 80 के दशक में तो ठीक ठाक थीं, लेकिन उसके बाद से बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. अपवाद 2004 का टूर्नामेंट है जब मेजबान ग्रीस ने टाइटल जीता था और लोग आज भी यह सवाल पूछते हैं कि क्या यह एक संयोग था. फिर भी टूर्नामेंट को बहुत महत्व दिया जा रहा है.

यूरोपीय टूर्नामेंट ऐसे समय में हो रहा है जब इसमें भाग लेने वाले पुर्तगाल, आयरलैंड, ग्रीस और स्पेन जैसे कई देश कर्ज संकट और उसकी वजह से हो रहे भारी बचत का सामना कर रहे हैं. इसका असर टीमों पर भी पड़ा है. स्पेन के खावी एर्र्नांडेज कहते हैं, "हम एक गंभीर संकट के बीच हैं, एक मायने में फुटबॉल इसके लिए अच्छी चीज है. यदि राष्ट्रीय टीम अच्छा खेलती है तो इसका लोगों पर भी असर होगा."

जर्मनी ने 2006 में वर्ल्ड कप के आयोजन के साथ अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में आम लोगों की भागीदारी का नया पैमाना तय किया है. पड़ोसी पोलैंड में हो रहा टूर्नामेंट आम लोगों को टूर्नामेंट के साथ कितना जोड़ पाता है, इसका संकेत आज से मिलना शुरू हो रहा है.

रिपोर्ट: महेश झा (एएफपी)

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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