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विदेशी कामगारों को लुभाती जर्मन सरकार

२२ जून २०११

जर्मनी में आर्थिक वृद्धि तो हो रही है, लेकिन कुशल कामगारों का अभाव है. विदेशी कामगारों को लाने के लिए सरकार जुगाड़ करना चाहती है. लेकिन कैसे, यह अभी तक तय नहीं हो पाया है.

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A row of Arriva buses stand at Victoria bus station in London, Thursday, April 22, 2009. UK bus and train operator Arriva PLC has agreed to be taken over by German bus and rail company Deutsche Bahn in a deal valued at 1.6 billion pounds (US$2.5 billion), the company announced Thursday. Arriva operates transport services in 12 European countries including Britain.(AP Photo/Sang Tan)
तस्वीर: AP

बुधवार को जर्मन सरकार ने ट्रेड यूनियनों से अपील की है कि वे विदेशों से डॉक्टरों और इंजीनियरों की भर्ती के लिए तैयार की जा रही योजना को स्वीकार करें. माना जा रहा है कि इन पेशों के लिए आप्रवासन अंक की एक प्रणाली तैयार की जाएगी, जिनके जरिये जर्मनी में इन्हें जल्द काम पर बहाल किया जा सकेगा.

अस्पतालों व कारखानों में शिकायत की जा रही है कि स्नातक स्तर से कम योग्यता वाली सस्ती नौकरियों को लिए लोगों की भारी कमी होने जा रही है. ऐसे कामों के लिए विदेश से लोगों को लाने की प्रक्रिया में लालफीताशाही का बोलबाला है.

वैसे जर्मनी की ओर से स्पेन में लोगों को भर्ती किया जा रहा है, जहां विश्वविद्यालय के अनेक स्नातक बेकार हैं. स्पेन यूरोपीय संघ का सदस्य है और वहां को लोगों को संघ के अंदर किसी भी देश में काम करने की छूट है. लेकिन जर्मन सरकार यूरोपीय संघ से बाहर से भी लोगों को लाना चाहती है. देश के ट्रेड यूनियनों का कहना है कि अगर बेहतर वेतन मिले, तो जर्मन नागरिक भी इन पेशों में प्रशिक्षण लेने को तैयार होंगे.

अब सरकार की ओर से एक नीतिगत घोषणा तैयार की गई है और ट्रेड यूनियनों व नियोक्ता संघों से कहा गया है कि वे इस पर एक आम सहमति तैयार करें. लेकिन जर्मन ट्रेड यूनियन महासंघ डीजीबी के अध्यक्ष मिषाएल जोम्मर का कहना है कि उद्योगपति उच्च प्रशिक्षित कामगारों से सिर्फ सस्ते में काम करवाना चाहते हैं.

साल में 66 हजार यूरो से अधिक कमाने वाले लोगों को जर्मनी में तुरंत वर्क परमिट मिल जाता है. सरकार अब चाहती है कि 40 हजार यूरो तक की आमदनी के लिए ये नियम तय किए जाएं.

सरकार द्वारा प्रस्तावित आप्रवासन अंक प्रणाली के तहत हर विदेशी के लिए उसके काम की जरूरत नहीं तय करनी पड़ेगी, बल्कि कुशलता, उम्र व भाषा के आधार पर उसके लिए एक सूचकांक तैयार किया जाएगा. मिसाल के तौर पर जर्मन जानने वाले एक प्रशिक्षित युवा का सूचकांक काफी अधिक होगा, और उसे व्यक्तिगत रूप से सारे विवरण नहीं देने पड़ेंगे.

रोजगार दफ्तर के अनुसार देश में दसियों हजार नौकरियां हैं, जिनके लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. ट्रेड यूनियनों का कहना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए देश के अंदर प्रशिक्षण की व्यवस्था में बेहतरी लानी पड़ेगी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ओ सिंह

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