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यूपी का उलझता स्कैंडल

१२ मई २०१२

टेलीकॉम घोटाले की काली रकम का दायरा भले ही बड़ा हो पर उत्तर प्रदेश में एनआरएचएम योजना में 5,700 करोड़ रुपये के घोटाले ने अब तक जितनी जानें ली हैं और जितना सियासी ड्रामा हुआ है उससे इसकी तुलना 2जी से करना गलत नहीं होगा.

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तस्वीर: DW/Suhail Waheed

यूपी के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्र अब अकेले बचे हैं जो जेल से बाहर हैं. गिरफ्तारी की तलवार उनके सिर पर लटक रही है. और किसकी गिरफ्तारी होगी, कोई नहीं जानता. पर इस घोटाले में जैसे जैसे बड़े बड़े लोग नपते जा रहे हैं, उससे स्पष्ट हो रहा है कि मायावती सरकार में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी जम गईं थीं. समाजवादी पार्टी की सरकार इससे खुश है कि उसे बैठे बैठे भ्रष्टाचार का मुद्दा मिल गया है. लोकसभा के अगले चुनावों में यूपी में चुनाव प्रचार इसी पसमंजर में हो सकता है.

मायावती सरकार में परिवार कल्याण मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा काफी पहले से गाजियाबाद की जेल में बंद हैं. ये वही कुशवाहा हैं, जो करीब दो दशक तक मायावती के इर्द गिर्द साये की तरह रहे. परिवार कल्याण मंत्री होने के बावजूद वह मायावती के आवास पर ही बैठते थे. लेकिन घोटाला खुलते ही मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया तो बीजेपी ने ले लिया. बीजेपी की इससे काफी फजीहत हुई और कोई राजनीतिक लाभ भी नहीं मिला. चंद दिन पहले स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव रहे वरिष्ठ आईएएस अफसर प्रदीप शुक्ला गिरफ्तार कर लिए गए. वह एनआरएचएम के मिशन डायरेक्टर थे. शुक्ला 1981 आईएएस बैच के टॉपर हैं. उनकी पत्नी आराधना शुक्ला भी आईएएस हैं. सीबीआई ने जितनी भी एफआईआर दर्ज की हैं, उनमें से चार में प्रदीप शुक्ला नामजद हैं. उन्होंने दर्जनों बार सरकार की इजात के बिना विदेश यात्रा की. इनकी यूएस में पढ़ रही बेटी के लिए लखनऊ के मशहूर कबाब लेकर कई बार लोग इनके निर्देश पर गए.

राजनीति का साया

लखनऊ के पूर्व सीएमओ डॉक्टर एके शुक्ला को सीबीआई पहले ही पकड़ चुकी है. जेल में उनके मोज़े से सल्फास मिलने से हडकंप मच गया. मामला इतना गंभीर है कि तीन वरिष्ठ अफसरों की हत्या के बाद डाक्टर शुक्ला भी आत्महत्या करना चाहते थे. मायावती के राज में हुए इस घोटाले ने राहुल गांधी को खुद लखनऊ के सीएमओ दफ्तर जाकर आरटीआई लगाने को मजबूर कर दिया. इसी घोटाले के बाद केंद्र सरकार ने मायावती सरकार के खिलाफ राजनीतिक अभियान छेड़ा. मायावती ने हमेशा की तरह पल्ला झाड लिया और अपने दोनों मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया. मामले ने बहुत तूल पकड़ा और डॉक्टर सचान की रहस्यमय मौत के बाद एक याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. उसके बाद से गिरफ्तारियों का दौर शुरू हुआ.

पिछले विधानसभा चुनाव में ये घोटाला मुद्दा नहीं बन सका. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अभी हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में कहा है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को केंद्र सरकार की योजनाओं के दुरुपयोग को मुद्दा बनाना चाहिए. इससे लगता है कि आने वाले दिनों में यूपी की सियासत में ये बड़ा रोल अदा करेगा. लेकिन इस पूरे घोटाले के असल मुजरिम के बारे में पता लगना बाकी है.

पुलिस पर आरोप

लखनऊ के सीएमओ डॉक्टर आर्य, डॉक्टर सिंह की सरेआम हत्या और लखनऊ जेल में डिप्टी सीएमओ डॉक्टर सचान की रहस्यमय मौत में पुलिस का रोल शुरू से ही संदिग्ध रहा. आरोप है कि डॉक्टर आर्य की हत्या के बाद डॉग स्कवैड को जान बूझ कर देर से बुलाया गया. इसके बाद परिवार कल्याण विभाग से कई फाइलें गायब पाई गईं. डॉक्टर सिंह की हत्या के बाद मर्डर की तफ्तीश कम और घोटाले की जांच तेज कर दी गई. बैलिस्टिक जांच रिपोर्ट दबाए रखी गई, कई बार तफ्तीश बदली गई जिससे काफी सुबूत नष्ट हो गए. जेल में डॉक्टर सचान की मौत के बाद उनकी नोटबुक गायब हो गई जिसमें सुसाइड लेटर था. खून से सनी ब्लेड भी काफी बाद में बरामद हो पाई.

यूपी के आरोपी आईएएस

नीरा यादव और अखंड प्रताप सिंह यूपी के चीफ सेक्रेट्री जैसे पद पर रहते हुए घोटालों में फंसे और जेल गए. सिद्धार्थ बेहुरा को अभी हाल ही में 2जी स्पेक्ट्रम में जमानत मिली है. वह भी यूपी के आईएएस हैं. आरके शर्मा ताज कॉरीडोर में फंसे. सदाकांत लेह लद्दाख सड़क निर्माण घोटाले में नपे. चंचल तिवारी और धनलक्ष्मी यूपीएसआईडीसी में भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए. मनोज कुमार , वीके वार्ष्णेय, तुलसी गौड़ और ललित वर्मा ने भी इसी तरह इस कैडर का नाम रोशन किया.

गांवों की स्वास्थ्य सेवा चरमराई

एनआरएचएम घोटाले की वजह से यूपी के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमरा गई है. सीतापुर जिले के इमिलिया सीएचसी के प्रभारी डॉक्टर आरिफ बताते हैं, "20 साल की नौकरी में इतनी शर्मिंदगी कभी नहीं झेली जितनी पिछले पांच सालों में बर्दाश्त करना पड़ी." कहते हैं कि इतना बुरा हाल है कि मरीज चाहे जिस मर्ज का इलाज कराने आए "उसे आयरन की गोली देकर मुंह छिपाना पड़ता है. न बैंडेज आ रही न कोई और दवा. एक्सीडेंट के घायलों के इलाज के लिए भी कोई बंदोबस्त नहीं है."

सूत्र बताते हैं कि सीएचसी और पीएचसी के अलावा बाल महिला चिकित्सालयों में न आपरेशन हो रहे हैं और न प्रसव. नसबंदी के लाभार्थियों को चेक नहीं मिल रहे हैं. जननी सुरक्षा योजना की रकम भी अस्पतालों में नहीं पहुंच रही है. कुष्ठ योजना की धनराशि भी नहीं खर्च हुई. मोतियाबिंद के आपरेशन भी बंद हैं.

रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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