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बुरी यादें नहीं सताएंगी!

५ मार्च २००९

हमारे पास भूली हुई चीज़ों की भरमार है. लेकिन क्या ये संभव है कि हम अपनी चेतना से किसी ख़ास स्मृति को बेदख़ल कर दें. मसलन बचपन में हुई किसी बुरी घटना की याद या भयानक मौत की याद का वाकया. बुरी यादें मिटाना क्या मुमकिन है.

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पुरानी स्मृतियां हमेशा खुशी नहीं देतींतस्वीर: Seyyed Mahmud Javadi

अमेरिका की न्युयार्क युनिवर्सिटी में न्युरोविज्ञानी जोसेफ ली दॉक्स और उनके सहयोगियों ने मेमोरी मैनीपुलेशन यानी स्मृति को व्यवस्थित करने की दिशा में एक अहम क़दम उठाया है. उन्होंने चूहों के मस्तिष्क से कुछ विशिष्ट स्मृतियों को मिटाने की कोशिश की है.

इस प्रयोग में लो डॉक्स और उनकी टीम ने चूहों के मस्तिष्क में दो अलग अलग यातना भरी स्मृतियां भर दीं. ये स्मृतियां आवाज़ों के रूप में थी. मसलन सायरन की आवाज़ या बीप की आवाज़ जैसे ये. प्रत्येक मामले में बिजली का शॉक भी दिया गया. शोध करने वालों ने बाद में आवाज़ों को दोबारा चलाया ताकि चूहे उन स्मृतियों को याद कर सके.

मिसाल के लिए जब बीप की आवाज़ दोबारा प्ले की गयी आर इस बार इसमें बिजली के झटके का इस्तेमाल नहीं किया गया तो कुछ चूहों में टीम ने एक एन्जाइम का इजेंक्शन लगा दिया. एक एक उत्प्रेरक था यू ओ 126. इजेंक्शन ठीक चूहों के दिमाग के उस हिस्से में दिया गया जिसका संबंध भावना से है.

अगले दिन जब दोनों तरह की आवाज़ें फिर प्ले की गयीं तो वे चूहे बीप की नहीं बल्कि सायरन की आवाज़ से घबरा उठे जिन्हें दवा डाली गयी थी. यानी बीप और शॉक वाली स्मृति ब्लॉक कर दी गयी थी.

Schwarze Maus
चूहों पर प्रयोग के आंशिक सफल होने का दावातस्वीर: AP

ज़ाहिर है ये प्रयोग चूहों पर किया गिया लिहाज़ा ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता कि दवा से उनकी स्मृतियों पर किस तरह का असर पडा है. क्या भय की स्मृति पूरी तरह मिट गयी या चूहे महज़ा भावना शून्य हुए.

ली डॉक्स का कहना है कि चूहों में हम इंप्लिसिट मेमोरीज़ यानी ऐसी यादों का परीक्षण कर रहे थे जिनके लिए किसी सजग चेतना की ज़रूरत नहीं पड़ती. मनुष्य में उस अनुभव के लिए कोगनिटिव मेमोरी होगी. विशेषज्ञों के मुताबिक वे नहीं जानते कि इस तरह के प्रयोगों से कोगनिटिव मेमोरी पर असर पड़ता है या वे सिर्फ़ बावनात्मक स्मृति पर ही असर डालेंगे.

अब बुरी स्मृतियों को मिटाने से जुडी एक और रिसर्च की चर्चा कर लें. वैज्ञानिकों का मानना है कि दिल की साधारण दवा मस्तिष्क से भयावह स्मृतियों को निकाल देती है. नीदरलैंड्स के शोधकर्ताओं का दावा है कि इस दवा से यातना झेलने वाले लोगों की भावनात्मक साइड अफेक्ट का इलाज किया जा सकता है.

लेकिन वैज्ञानिकों का एक धड़ा इस तरह के प्रयोगो को मस्तिष्क की सहज गतिविधियों से खिलवाड़ मानता है. बुनियादी रूप से दवा आधारित इन शोधों का उन मरीज़ों पर पड़े वाले असर को लेकर भी ये समुदाय चिंतित है जो फोबिया और उत्तेजना जैसी भावनात्मक अतियों के शिकार हैं.

Auschwitz Holocaust Gedenktag
बुरी यादें भी कुछ सिखाती हैंतस्वीर: AP

इनका ये भी कहना है कि इसमें अच्छी स्मृतियों के भी बिखर जाने या बदल जाने का ख़तरा है. चूहों वाले प्रयोग से इतर इस प्रयोग में मनुष्यों को शामिल किया गया. इस अध्ययन में शोध करने वालों ने एक नकली डरावनी स्मृति की रचना की. इसमें मकड़ियों की तस्वीरें और हल्का इलेक्ट्रिक शॉक का इस्तेमाल किया गया.

इस प्रयोग में शामिल वालिंटियरों को अगले दिन दो भागो में बांट दिया गया. वही तस्वीरें दिखाने से पहले एक हिस्से को बीटा ब्लॉकर प्रोप्रानोलोल दिया गया और दूसरे को एक डमी ड्रग दिया गया.

शोध करने वालों ने देखा कि अचानक पैदा आवाज़ों को सुनकर और तस्वीरें देखकर वालिंटियर कितने भयभीत हो गए और कितनी देर अपनी पलकें झपकाते रहे.

BdT Uruguay Erinnerung an der Militärdiktatur in Montevideo
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि जीवन की यादों से खिलवाड़ न करेंतस्वीर: AP

लेकिन दवा लेने वाले दल में डर की तीव्रतर भावना नोट की गयी. फिर एक दिन बाद इस समूचे ग्रुप पर फिर से परीक्षण किया गया. एक बार फिर पाया गया कि दवा लेने वाले दल में तस्वीरों का आतंक कम था. वैज्ञानिकों का कहना है कि स्मृति तो पूरी तरह मिटी नहीं लेकिन उसका इमोश्नल आवेग कम हुआ.

इस शोध की प्रमुख डॉक्टर मेरेले किंड्ट का कहना है कि हाल फिल्हाल में भले ही बुरी स्मृतियों को मिटाने की बात नहीं सोची जा सकती लेकिन हमारे प्रयोग से उस दिशा में एक रास्ता खुलता है जहां आप भावनात्मक बीमारियों से लड़ सकते हैं.

लेकिन इस प्रयोग से नाइत्तफाकी रखने वाले वैज्ञानिक वर्ग का कहना है कि इस तरह के प्रयोग एक ऐसे मोड़ पर भी ले जा सकते हैं जहां आप स्मृतियों से जब चाहे खिलवाड़ कर सकते हैं. लंदन की सेंट जॉर्ज युनिवर्सिटी में मेडिकल इथिक्स के प्रवक्ता डैनियल सोकोल का कहना है कि बुरी स्मृतियों को हटाना वैसा नही है जैसे कि किसी दाग या धब्बे को हटाना. वो हमारी निजी शख़्सियत को भी मिटाने जैसा होगा क्योंकि जो हम है वो हमारी स्मृतियों की वजह से हैं.