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दवा कंपनियों के गिनिपिग अस्पताल

९ मई २०११

दवा कंपनियों की ओर से दवाइयों के विकास के स्तर पर असली रोगियों पर डॉक्टरी इलाज के तहत काफी परीक्षण किए जाते हैं. ऐसी बड़ी कंपनियां पश्चिम यूरोप और अमेरिका की हैं, पर परीक्षण सस्ते देशों में होते हैं.

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A local medical officer checks the temperatures of a muslim man at a passenger arrival ferry terminal as part of the city-state's precautionary measures against the Swine flu outbreak on Wednesday April 29, 2009 in Singapore. Across Asia, scores of tests were being carried out on anyone reporting flu symptoms, and antiviral drugs were being handed out as a precaution. (AP Photo/Wong Maye-E)
तस्वीर: AP

पोलैंड का गोदीनगर ग्दांस्क अपने शिपयार्ड के लिए मशहूर है, हंगरी का पेच अपनी प्राचीन वास्तुकला के लिए. मेडिसिन के नक्शे पर इनका कोई खास महत्व नहीं है. लेकिन हाल में जब अस्त्राजेनेका पीएलसी कंपनी दिल के दौरे के मरीजों के लिये अपनी नई महंगी दवाई का प्रयोग कर रही थी, तो इन शहरों के अस्पतालों को चुना गया. एक रिसर्च से पता चला है कि परीक्षण के 18 हजार रोगियों में से 21 फीसदी पोलैंड और हंगरी के होते हैं, जबकि अमेरिका और कनाडा को मिलाकर सिर्फ इसके आधे रोगी ही मिलते हैं.

A Thai officer hold anti-viral drugs to fight bird flu during a press conference in Bangkok Thursday, Aug. 3, 2006. Thailand announced Thursday that it has successfully synthesized a generic version of the anti-viral drug to fight bird flu oseltamivir - better known by the trademarked name Tamiflu. Thai officials expect that tests of the drug will be completed by July and that it will be distributed around the country by the end of the year. The Government Pharmaceutical Organization has named the anti-viral drug produced in Thailand, GPO-A-Flu. (AP Photo/Sakchai Lalit)
तस्वीर: AP

भूमंडलीकरण का असर

कुछ साल पहले स्थिति ऐसी नहीं थी. नई महंगी दवाइयों के पहले प्रयोग पश्चिम के विकसित देशों में होते थे. उस वक्त जर्मन कंपनी जर्मनी की होती थी, अमेरिकी कंपनी अमेरिका की. इस बीच भूमंडलीकरण का दौर आ चुका है, सारी कंपनियां सारी दुनिया की हैं, और सारी दुनिया सारी कंपनियों की है. इसलिये वे प्रयोग के लिये ऐसे देश चुनती हैं, जहां सस्ते में काम निपटाया जा सकता है. साथ ही उन्हें इन देशों में आसानी से ऐसे रोगी मिल जाते हैं, जिनका शरीर दूसरी दवाइयों से ठसा हुआ नहीं है. इसलिये नई दवाई का असर कहीं बेहतर ढंग से नापा जा सकता है.

Blood drug testing in laboratory
तस्वीर: AP

अहम सवाल

हंगरी के पेच के विश्वविद्यालय में कार्डियोलॉजी के प्रधान डॉक्टर इवान होरवाथ कहते हैं, "पूर्वी यूरोप व एशिया में प्रयोगों में कहीं अधिक रोगियों को शामिल किया जाता है. इसके तीन कारण हैं. हमारे रोगियों को एक नई दवाई मिलती है, जो प्रयोग के स्तर पर मुफ्त होती है. वैज्ञानिक दृष्टि से यह हमारे लिये महत्वपूर्ण होता है. और हमें इसके पैसे भी मिलते हैं."

इस बीच परीक्षणों की आउटसोर्सिंग पर तीखे सवाल भी पेश किये जा रहे हैं. क्या इन परीक्षणों के नतीजों पर उतना भरोसा किया जा सकता है, जितना कि अमेरिकी या पश्चिम यूरोप के क्लिनिकों के परीक्षणों पर किया जा सकता था? क्या परीक्षणों के दौरान नैतिक मापदंडों का पूरा खयाल रखा जा रहा है? क्या इन देशों में किये गये परीक्षणों के परिणाम पश्चिम के देशों के रोगियों पर भी लागू होते हैं? इस तीसरे सवाल के संदर्भ में कहा जा सकता है कि ग्लोबल कंपनियों के लिये नई महंगी दवाइयों का बाजार अब सिर्फ पश्चिम में नहीं है, वह भी ग्लोबल हो चुका है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: वी कुमार

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