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ग्वांतानामो शिविर में यातना देने वाले मेडिकल प्रयोग

४ मार्च २०११

तुर्क मूल के जर्मन नागरिक मुरात कुरनाज को साढ़े चार साल तक ग्वांतानामो बे अमेरिकी बंदी शिविर में कैद रखा गया था. अब उसने आरोप लगाया है कि उसे मेडिकल प्रयोगों के द्वारा भी यातनाएं दी गई थी.

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मुरात कुरनाजतस्वीर: AP

बर्लिन के समाचार पत्र बर्लिनर त्साइटुंग को कुरनाज ने बताया कि अमेरिकी बंदी शिविर में उसे नियमित रूप से सुई लगाई जाती थी, और कभी इसकी वजह नहीं बताई गई. इसके अलावा उसे मलेरिया की दवाई दी जाती रही, हालांकि शिविर में मलेरिया का कोई खतरा नहीं था. इनकी वजह से उसे हमेशा थकावट और सांस लेने में तकलीफ होती थी.

मुरात कुरनाज को अल कायदा की आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 2001 में पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया था. कोई सबूत न मिलने पर साढ़े चार साल बाद उसे रिहा कर जर्मनी वापस भेजा गया. उसने कहा कि शिविर के अन्य कैदियों को भी दवाइयां दी जाती रही, और उनके बदन में हर कहीं सूजन देखा जा सकती थी. उसका कहना था कि सभी कैदियों का ख्याल था कि उन पर नई दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है और प्रयोगशाला को चूहों की तरह उनसे पेश आया जा रहा है.

कुरनाज के ये दावे अमेरिकी वकीलों और ट्रुथआउट नामक वेबसाइट द्वारा कराए गए अध्ययनों से मिलते हैं. ट्रुथआउट ने कहा है कि 2066 के अमेरिकी सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि सभी कैदियों को भारी मात्रा में मलेरिया की दवाई मेफ्लोक्विन दी जाती थी, ताकि उसके दुष्प्रभावों के बारे में पता चले. यह आम खुराक से पांच गुनी अधिक होती थी. मेफ्लोक्विन की वजह से रोगी सो नहीं पाते हैं, वे मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं और दहशत में होते हैं. ट्रुथआउट ने इसे मेडिकल वाटरबोर्डिंग कहा है. वाटरबोर्डिंग के तहत कैदियों का सिर पानी में डुबोया जाता था, ताकि उनका दम घुटने लगे.

पांच साल पहले कुरनाज को ग्वांतानामो बे से रिहा किया गया था. उनके वकील का कहना था कि वह एक सामान्य जीवन बिताने की कोशिश कर रहे हैं और प्रचार के भूखे नहीं हैं. ट्रुथआउट की रिपोर्ट आने के बाद पत्रकार आंद्रेयास फोएर्स्टर ने उससे पूछताछ की थी, इसीलिए उसने अब ये सूचनाएं दी है. जर्मनी के टैबलॉयड पत्रों में अक्सर दावा किया जाता रहा कि मुरात कुरनाज एक इस्लामी चरमपंथी है, हालांकि इसे साबित नहीं किया जा सका है. फोएर्स्टर का कहना है कि इस वजह से भी कुरनाज मीडिया से मुंह चुराते हैं.

रिपोर्ट: जोआना इम्पे/उभ

संपादन: एस गौड़

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