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समाज

गायब हो रहे हैं आम के बाग

फैसल फरीद
२४ मई २०१८

पूरी दुनिया में अपने रसीले स्वाद के लिए उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद के आम मशहूर हैं. बाजार में आम बेचते वक्त भी मलीहाबाद की दशहरी की आवाज लगाई जाती है. लेकिन इन मशहूर आमों के अस्तित्व पर अब खतरा मंडरा रहा है.

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Indien Mumbai Mango Grossmarkt Crawford Alphonso Sorte
तस्वीर: Imago/Arnulf Hettrich

पुराने लखनऊ में चौक से सीधी सड़क मलीहाबाद को जाती है. जैसे जैसे आबादी कम होने लगती है, वैसे वैसे सड़क के दोनों ओर आम के बाग शुरू हो जाते हैं. ये इस बात का सूचक है कि आप मलीहाबाद के आम की फलपट्टी क्षेत्र में पहुंच चुके हैं. लेकिन पिछले कई दशकों में आम के बागान अब धीरे धीरे कम हो रहे हैं. लखनऊ शहर तेजी से फैल रहा है. नतीजा यह हुआ कि अब आपको जगह जगह कॉलोनी, रिसॉर्ट, स्कूल और कॉलेज दिखते हैं. ये सब आम के बागों को काट कर बनाए गए हैं. यह बात सिर्फ मलीहाबाद ब्लॉक तक ही सीमित नही हैं, बल्कि पड़ोस के माल और काकोरी ब्लॉक में भी यही स्थिति है. आंकड़ो के हिसाब से पिछले 34 साल में आम के बागों का क्षेत्रफल 88 हजार हेक्टेयर से सिमट कर 45 हजार हेक्टेयर रह गया है. मलिहाबाद के निवासियों के अनुसार पहले जहां आम के 1100 बाग होते थे, अब कुल 700 ही बचे हैं.

वसीक अहमद सिद्दीकी आम के बाग के मालिक हैं. वे दूसरे आम की बागों की फसल भी खरीदते हैं. उनके अनुसार इस डेवलपमेंट से बचना मुश्किल है. वे बताते हैं, "अब प्रॉपर्टी डीलर गांव की तरफ रुख कर रहे हैं. वे खेत और बाग खरीद लेते हैं. उसके बाद उसमें प्लाटिंग करते हैं. ऐसे में उस बाग के आस पास के किसान भी बेचने को मजबूर हो जाते हैं. कभी कभी वे पीछे का बाग खरीद लेते हैं और फिर रास्ते के नाम पर दबाव बनाते हैं और बागों का अस्तित्व खत्म हो जाता है." ऐसा तब है जब इस क्षेत्र के लगभग 300 गांव आम फलपट्टी क्षेत्र घोषित हैं और इनका रकबा लगभग 28 हजार हेक्टेयर है लेकिन अब इनमें से लगभग 100 गांव आम के बागों से विहीन हो चुके हैं. अब वहां पर रियल एस्टेट कंपनियां पहुच चुकी हैं. धीरे धीरे हरियाली ख हो ती जा रही है.

आम के बागों के काटे जाने के अलावा और भी कई कारण हैं. साल 1984 में यह क्षेत्र फलपट्टी क्षेत्र घोषित हुआ लेकिन आज भी यहां सुविधाओ का अभाव है. किसानों को यहां पानी की कमी से भी जूझना पड़ता है. आम के एक किसान अब्दुल्लाह बताते हैं कि पानी की जरूरत सिर्फ सिंचाई के लिए ही नहीं, बल्कि बागों की धुलाई के लिए भी पड़ती हैं और वह अक्सर उपलब्ध नहीं हो पाता है. सककार ने 16 से 18 घंटे बिजले देने का दावा भी किया था लेकिन वैसा भी नहीं हुआ. एक अत्याधुनिक मैंगो हाउस बनाया गया है लेकिन इसमें सिर्फ पैकिंग का काम होता है. सुविधाओं के अभाव में पिछले दस साल में एक भी किसान निर्यातक नहीं बन पाया है. एक्सपोर्ट का बढ़ता खर्च भी एक कारण है. साथ ही रोगों से ग्रसित होने पर ठीक जानकारी नहीं मिल पाती. इस वजह से भी बागों से स्पॉटलेस एक्सपोर्ट क्वॉलिटी के आम नहीं मिलते.

ऑल इंडिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली, जो खुद भी मलीहाबाद में आम के एक बाग के मालिक हैं, बताते हैं, "न नहरों में पानी है, ना ही अवैध कटान रोकने के लिए कोई मुहीम. प्रॉपर्टी के दाम बढ़ गए हैं, बिजली भी नहीं आती, कीटनाशक दवा भी नकली मिलती है, खर्चा ज्यादा है और आमदनी घट रही है. एक मैंगो हाउस है जिसमे सिर्फ पैकिंग होती है. इसके अलावा कुदरती मौसम की मार. इन सब को मिला कर आम की खेती से लोग विमुख हो रहे हैं." इंसराम के अनुसार कृषि बीमा पॉलिसी में भी आम की फसल को शामिल नहीं किया गया है.

ऐसा नहीं है कि मलिहाबाद के आम की डिमांड कम हैं. हर साल जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अमेरिका, सिंगापुर और चीन में मलिहाबाद के आम जाता हैं. सरकार इन्हें नवाब ब्रांड के नाम से भेजती है. सरकार का भी मानना है कि आम के बाग घट रहे हैं. प्रदेश के हॉर्टिकल्चर विभाग के निदेशक आरपी सिंह बताते हैं कि अब जोर इस बात पर है कि किसी तरह कम क्षेत्रफल में उत्पादन बढ़ाया जाए. इसके लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं. वे किसानों को सुविधाएं देने की बात भी कहते हैं, "अब हम लोग जमीन का क्षेत्रफल तो बढ़ा नहीं सकते, उत्पादन ही बढ़ाना होगा."

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