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करचोरी का मामला बना विवाद की वजह

महेश झा२० फ़रवरी २००८

जर्मनी और लिष्टेनश्टाइन के बीच करचोरी के सिलसिले में चल रहे छापों पर हो रही बहस के कारण खुला विवाद छिड़ गया है. इस विवाद के बीच लिष्टेनश्टाइन के प्रधानमंत्री आज जर्मन चांसलर अंगेला मैरकले से मिल रहे हैं.

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राज्य प्रमुख आलोइस
राज्य प्रमुख आलोइसतस्वीर: AP

लिष्टेनश्टाइन के प्रधानमंत्री ओटमार हासलर और चांसलर अंगेला मैरकेल की मुलाक़ात के अलावा आज ही संसद की खुफ़िया सेवा आयोग में करचोरी कांड में खुफ़िया एजेंसी की भूमिका पर चर्चा होगी. साथ ही बुन्डेसटाग में प्रश्नकाल में इस कांड पर विचार होगा.

करचोरी कांड की शुरुआत हुई थी जर्मनी की प्रमुख कंपनी डॉयचे पोस्ट के प्रभावशाली प्रमुख क्‍लाउस त्सुमविंकेल के घर और दफ़्तर में करचोरी के आरोप में छापों के साथ. त्सुमविंकेल ने ग़ल्ती मानी, गिरफ़्तारी से बचने के लिए लाखों का मुचलका भरा और अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.

लेकिन देश के जाने माने उद्यमी त्सुमविंकेल की वजह से यह बात खुलकर सामने आई कि छापा जिस सूचना के आधार पर मारा गया उसे जर्मन खुफ़िया एजेंसी बीएनडी ने जुटाया था.

जर्मनी में बहस छिड़ गई उद्यमियों की नैतिकता पर लेकिन साथ ही लिष्टेनश्टाइन जैसे छोटे देशों में करचोरों को स्वर्ग का माहौल देने पर भी. इसके अलावा यह बात भी बहस के केन्द्र में है कि क्या सज़ायाफ्ता से ख़रीदी गई सूचना को जाँच में शामिल किया जाना चाहिए.

मंगलवार को लिष्टेनश्टाइन ने प्रतिक्रिया व्यक्त की. राज्यप्रमुख वंशानुगत प्रिंस आलोइस ने जर्मनी पर चोरी की गई सूचना पाने के लिए लाखों यूरो देकर अपराधी को शह देने का आरोप लगाया.

यह विवाद इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है कि लिष्टेनश्टाइन के प्रधानमंत्री ओटमार हासमर जर्मनी में हैं और चांसलर अंगेला मैरकेल से मिल रहे हैं. दो मित्र देशों के सरकार प्रमुखों की सामान्य सी भेंट करचोरी कांड के कारण संकट बैठक में बदल गई है.

जर्मनी में यूरोप में टैक्स स्वर्गों को समाप्त करने की मांग उठ रही है. इस बात पर बहस हो रही है कि क्या कराधान बढ़ाने के लिए खुफ़िया एजेंसी की सेवा लेना उचित है. लिष्टेनश्टाइन विधि संगत राज्य होने की बात कह रहा है तो सत्ताधारी सीडीयू के संसदीय दल के उपनेता वोल्फ़गांग बोसबाख़ का कहना है कि लिष्टेनश्टाइन फोकस में नहीं है बल्कि वे लोग जिंहोने कर की चोरी की है और वह भी भारी पैमाने पर

अंगेला मैरकेल लिष्टेनश्टाइन के प्रधानमंत्री को यह साफ़ करने की कोशिश करेंगी कि लिष्टेनश्टाइन को कर चोरी के मामलों की जाँच में मदद देनी चाहिए ताकि धनी जर्मनों द्वारा टेक्स स्वर्गों में पैसा चुपचाप ले जाकर सरकारी खजाने को चूना न लगाया जा सके.

जर्मनी में चल रही इस बहस के साथ भारत जैसे विकासशील देशों से समृद्ध लोगों द्वारा अपना पैसा अवैध रूप से स्विस तथा अन्य विदेशी बैंकों में रखने का सवाल भी महत्वपूर्ण हो गया है. एक अध्ययन के अनुसार विकासशील देशों का 50 अरब यूरो से अधिक धन पश्चिमी देशों में लगा है जिसका उपयोग देश के विकास में किया जा सकता था.

लिष्टेनश्टाइन का कहना है कि वह लोगों को करचोरी कर धन उसके बैंकों में जमा करने की दावत नहीं देता. और प्रधानमंत्री ओटमार हासलर का कहना है कि लिष्टेनश्टाइन का वित्तीय केन्द्र सुधार की प्रक्रिया से गुज़र रहा है और इसे स्पष्ट करने की ज़रूरत है. आज बर्लिन में उनके लिए इसका मौक़ा होगा.