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इसरो घोटाले के लिए भी कमेटी बनी

११ फ़रवरी २०११

भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एस बैंड घोटाले के आरोपों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बना दी है. बताया जाता है कि इसरो, अंतरिक्ष कॉरपोरेशन और एक निजी कंपनी के बीच विवादित डील हुई है.

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इसरो प्रमुख के राधाकृष्णनतस्वीर: UNI

दो सदस्यों वाली समिति में योजना आयोग के पूर्व सदस्य और कैबिनेट सचिव रह चुके बीके चतुर्वेदी को कहा गया है कि वह अंतरिक्ष और देवास मीडिया से जुड़े इस मामले के तकनीकी, आर्थिक और वित्तीय पक्षों की पड़ताल करें. उनसे यह भी कहा गया है कि वह प्रक्रिया की खामियों को उजागर करें और महीने भर के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करें.

चतुर्वेदी के अलावा अंतरिक्ष मामलों के जाने माने जानकार रोद्दाम नरसिम्हा को भी इस समिति का सदस्य बनाया गया है. कमेटी से कहा गया है कि वह इस डील में हुई गड़बड़ियों में जिम्मेदारी भी तय करे. मीडिया में रिपोर्टें हैं कि एस बैंड घोटाले में दो लाख करोड़ रुपये का चूना लगा है.

एस बैंड की मदद से दो से चार गीगाहर्ट्ज की रेडियो तरंगें ले जाई जा सकती हैं. इस बैंड का उपयोग कमर्शियल रेडियो में नहीं किया जाता, बल्कि मौसम रडार, संचार सैटेलाइट और जहाज के रडार के लिए किया जाता है. अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा इस बैंड की मदद से कई सूचनाएं इकट्ठा करती है.

इस बीच गुरुवार को दिल्ली में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में कई मंत्रियों ने इस घोटाले के बारे में जानना चाहा. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में बैठक हुई. उन्होंने अंतरिक्ष विभाग के सचिव के राधाकृष्णन से कहा कि वह मंत्रियों को इस बारे में जानकारी दें.

इस पर चर्चा के बाद प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल को बताया कि उन्होंने मामले की जांच के लिए पहले ही एक समिति बना दी है और उसे महीने भर में अपना जवाब देना है. इसके बाद फैसला हुआ कि फिलहाल रिपोर्ट का इंतजार किया जाए.

लेकिन समिति बनाए जाने के साथ ही इस पर भी विवाद हो गया है. जांच का जिम्मा संभालने वाले चतुर्वेदी उस वक्त विभाग में सचिव थे, जब यह घोटाला हुआ. इस बाबत पूछे जाने पर भारत की सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि वह इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकती हैं. चतुर्वेदी ने भी इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है.

इस बीच भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सफाई दी है कि एस बैंड स्पेक्ट्रम मामले में सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है. नोट में यह भी कहा गया है कि देवास कंपनी के साथ की गई डील खत्म कर दी गई है.

भारत के कानून मंत्रालय का कहना है कि व्यवासायिक गतिविधियों के लिए जरूरी नहीं है कि इसरो अंतरिक्ष कॉरपोरेशन से ही सेवाएं ले. हालांकि मंत्रालय के मुताबिक देवास कंपनी को उसके शुरू में लगाए गए पैसे वापस किए जाएंगे. देवास ने दो उपग्रहों के लिए लगभग 60 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

बताया जाता है कि विवाद उठने के बाद अंतरिक्ष कॉरपोरेशन के काम काज पर दोबारा नजर डालने और इस पर निगाह रखने की हिदायत दी गई है.

मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक अंतरिक्ष विभाग ने एस बैंड स्पेक्ट्रम के 70 मेगा हर्ट्ज देवास मल्टीमीडिया को अलॉट किए थे, जिसके लिए 1000 करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई थी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बात से इनकार किया है कि सरकार ने कोई फैसला किया है और इस तरह किसी तरह के राजस्व का नुकसान नहीं हुआ है.

इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन मंगलवार को ही यह बात साफ कर चुके हैं कि इस मामले में अंतरिक्ष विभाग का कोई हाथ नहीं है. उन्होंने माना कि देवास को दो उपग्रहों पर लगे ट्रांसपोंडरों के 90 फीसदी उपयोग का अधिकार दिया गया था लेकिन इस बारे में अंतरिक्ष विभाग को जानकारी नहीं दी गई.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः ए कुमार

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