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समाज

इन समस्याओं से रूबरू हैं भारत में महिला पुलिसकर्मी

समीरात्मज मिश्र
१ नवम्बर २०१८

उत्तर प्रदेश की एक महिला कांस्टेबल की छह माह की बेटी के साथ ड्यूटी करती हुई तस्वीर वायरल होने के बाद ये बहस फिर गर्म हो गई है कि पुलिस में महिलाओं की भर्ती और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं के बीच कोई ताल-मेल है या नहीं?

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Weibliche Polizeibeamte in Indien
तस्वीर: DW/P.M. Tewari

झांसी जिले की सदर तहसील में बतौर कांस्टेबल तैनात अर्चना सिंह यूं तो रोज अपनी ड्यूटी निभा रही थीं लेकिन एक दिन अचानक उनकी एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो गई जिसमें वो पुलिस की वर्दी में अपने दफ्तर में कुर्सी पर बैठकर लिख रही हैं और बगल में एक मेज पर उनकी बच्ची सो रही है. अर्चना की ये तस्वीर लखनऊ में बैठे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने भी ट्वीट की.

अर्चना सिंह का घर आगरा में है और उनके पति दिल्ली के पास नौकरी करते हैं. उन्होंने कोशिश की कि उनका तबादला आगरा के पास हो जाए, लेकिन नहीं हुआ. इस तस्वीर के वायरल होने के बाद राज्य के डीजीपी ओपी सिंह ने इसका तुरंत संज्ञान लिया और महिला सिपाही का न सिर्फ उनके घर के पास आगरा जिले में तबादले का आदेश दिया बल्कि ये भी कहा के इस घटना ने उन्हें महिला पुलिसकर्मियों के छोटे बच्चों के लिए क्रेच खोलने की जरूरत पर भी ध्यान आकृष्ट किया है.

सवाल ये है कि जब बड़े पैमाने पर महिला पुलिसकर्मियों की भर्ती और उनकी तैनाती की नीति बन रही थी, उस समय क्या ऐसी चीजों के बारे में नहीं सोचा गया. कांस्टेबल अर्चना का कहना है कि वे कुछ महीनों पहले मां बनी थीं और इसके लिए जो छुट्टी मिलनी चाहिए थी वो मिली थी. इसके बाद उन्हें ड्यूटी पर लौटना पड़ा लेकिन छोटे बच्चे को घर पर छोड़ना उनके लिए संभव नहीं था क्योंकि उनके पति भी किसी दूसरे जिले में नौकरी करते हैं. इस वजह से वो बच्ची को ड्यूटी के दौरान अपने साथ लाती थीं.

महिला पुलिसकर्मियों की समस्याएं

दरअसल, पुलिस विभाग में महिला कर्मचारियों की समस्याओं से जुड़ी ये एक छोटी सी समस्या है जिसकी ओर इसलिए ध्यान चला गया कि ये खबर रातों-रात चर्चा में आ गई. लेकिन महिला पुलिसकर्मी ऐसी न जाने कितनी समस्याओं से हर रोज रूबरू होती हैं जिनकी चर्चा अकसर नहीं होती और होती भी है तो अब तक उन्हें दूर नहीं किया जा सका है. पिछले कुछ समय से न सिर्फ पैरा मिलिट्री विभागों में बल्कि राज्यों के पुलिस विभाग में भी महिलाओं की बड़े पैमाने पर भर्तियां हुई हैं और अभी भी हो रही हैं. यूं तो पुरुष पुलिसकर्मी भी तमाम समस्याओं से आए दिन दो-चार होते हैं लेकिन महिला पुलिसकर्मियों के लिए समस्याएं कहीं ज्यादा हैं.

दो साल पहले भर्ती हुई और लखनऊ में तैनात एक महिला पुलिसकर्मी नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं, "छुट्टियां न मिलना, चौबीस घंटे की ड्यूटी देना, घर-परिवार में समय न दे पाना, वो सब तो बर्दाश्त करना ही पड़ता है लेकिन कुछ ऐसी परेशानियां हैं जिनसे हर महिला पुलिसकर्मी का सामना होता है. आप विश्वास नहीं करेंगे लखनऊ जैसे बड़े शहर में भी कई थाने ऐसे हैं जहां महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं. न सिर्फ महिला पुलिसकर्मियों को इससे परेशानी होती है बल्कि वहां आने वाली दूसरी महिलाएं भी इस समस्या का सामना करती हैं."

एक रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी लखनऊ में 43 पुलिस थानों समेत पुलिस के छोटे-बड़े करीब अस्सी दफ्तर ऐसे हैं जहां महिला पुलिसकर्मियों के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं. यही हाल दूसरे जिलों का भी है और पुलिस अधिकारी इस बात को स्वीकार भी करते हैं. जाहिर है, आठ से दस घंटे ड्यूटी करने वाली महिला पुलिसकर्मियों को इस वजह से कितनी परेशानी से गुजरना पड़ता है.

थानों में तैनाती

महिला पुलिसकर्मियों की ये समस्या किसी एक राज्य की नहीं बल्कि देश भर की है. यदि बात उत्तर प्रदेश की करें तो यहां राज्य सरकार ने हर थानों में दो महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती का फरमान जारी कर रखा है और ज्यादातर जगहों पर ये तैनाती हुई भी है, लेकिन दफ्तरों में शौचालय और रहने के लिए आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं की ओर सरकार का ध्यान अब तक नहीं गया है.

आवास की स्थिति तो ये है कि महिला पुलिसकर्मियों के लिए जिलों के पुलिस लाइंस में ही आवास उपलब्ध नहीं हैं, थानों पर आवास की बात तो अभी सोच से भी परे है. महिला पुलिसकर्मियों को या तो अलग से आवास का इंतजाम करना पड़ता है या फिर छोटे से सरकारी आवास में दो-तीन महिलाएं एक साथ रहने को विवश होती हैं. और ये आवास बहुत कम और कुछ ही जगहों पर हैं.

 

देखिए लड़कियां क्या क्या झेल रही हैं

राज्य पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में पुलिस और पीएसी के कर्मचारियों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है और इनमें महिलाओं की संख्या करीब पंद्रह हजार है. जानकारी के मुताबिक महिला पुलिसकर्मियों के रहने के लिए आवास का कोई बजट आज तक पारित नहीं हुआ है. लखनऊ के डीजीपी ऑफिस से संबंद्ध एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक आवास की समस्या बहुत ही गंभीर है, लेकिन उसे दूर करने की कोशिश हो रही है. उनका कहना है, "अभी तो स्थिति ये है कि ऐसे थानों में भी जहां पचास-साठ महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती है, वहां महज दो या तीन छोटे आवास ही उपलब्ध हैं. ऐसे में मुश्किल से सात-आठ महिलाएं शेयर कर पाती हैं, बाकी लोगों को बाहर ही आवास का इंतजाम करना पड़ता है."

घर से दूर तैनाती

आवास की समस्या महिलाओं के लिए तब और विकट हो जाती है जब उन्हें घर से दूर तैनाती मिल जाती है. यूपी में डीजीपी रहे रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी सुब्रत त्रिपाठी कहते हैं कि सभी को घर के पास तैनाती मिल जाएगी, ये संभव नहीं है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में तो विचार किया ही जा सकता है. उनके मुताबिक, "अधिकारियों के स्तर पर पति-पत्नी को एक ही जिले या फिर आस-पास तैनाती दी जा सकती है तो कांस्टेबल और दारोगा जैसे पदों पर तैनात महिलाओं के साथ भी ये सरकारी हमदर्दी क्यों नहीं हो सकती."

एक महिला पुलिसकर्मी कहती हैं, "हम लोगों ने वर्दी पहनकर जैसे कोई गुनाह कर दिया है. घर-परिवार तो छूट ही गया है, आस-पड़ोस और दफ्तर में लोग हमें अजीब तरह से देखते हैं, वो अलग. मैं अपनी दो साथियों के साथ जहां रहती हूं, आते-जाते अकसर हम लोगों की छींटाकशी सुनते हैं, लेकिन क्या करें? दफ्तर में भी अकसर महिलाएं शोषण का शिकार होती हैं लेकिन शिकायत बहुत कम ही होती है."

महिला पुलिसकर्मियों की एक पीड़ा ये भी है कि वो चाहकर भी अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर पाती हैं. त्योहारों पर अकसर ड्यूटी पर रहना, घर-परिवार से दूर रहना, बच्चों को ज्यादा समय न दे पाना जैसी तमाम समस्याएं हैं जिन्हें एक महिला होने के नाते पुरुषों की तुलना में वो कहीं ज्यादा महसूस करती हैं. एक महिला पुलिसकर्मी हंस कर जवाब देती हैं, "लेकिन ये समस्याएं हम किसी से कह भी नहीं सकते हैं."

 

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