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आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं

१८ जुलाई २०१२

रंगमंच को दुनिया बना दिया तो कठपुतलियों को इंसान. शक्ल और कदकाठी तो आम लेकिन मुस्कान अनोखी, मिश्री जुबान और मस्त चाल. 4 दशक पहले इसी रूप में हिंदी फिल्मों को कामयाबी के आनंद की अनूभूति हुई, अनुभूति अमिट है आनंद चला गया.

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तस्वीर: AP

1960 के दशक के आखिरी सालों में एक शख्स ने हिंदी सिनेमा की भेंट ब्लॉकबस्टर से कराई, बताया कि पर्दे का नायक जब शहर में निकलता है तो उसके पीछे दीवानों की भीड़ कैसे मचलती है. स्टूडियो के बाहर उनकी एक झलक पाने को बेताब लड़कियों की भीड़, कार पर लिपस्टिक से बने होठों के निशान, सैकड़ों खून से लिखे प्रेम पत्र. कई लड़कियों ने तो उनकी तस्वीर से शादी रचा ली. पर्दे पर युवतियों के साथ नैन मटकाते राजेश खन्ना कब देश के सबसे बड़े अभिनेता बन गए पता ही नहीं चला.

Rajesh Khanna - MP3-Mono

राजेश खन्ना की दोहरी भूमिका वाली आराधना की कामयाबी के साथ उनके शानदार फिल्मी सफर का जो दौर चला तो बहुत दूर तक गया. 1969 से 1972 के बीच राजेश खन्ना ने अकेली भूमिकाओं वाली 15 हिट फिल्में दीं. यह ऐसा रिकॉर्ड है जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ पाया. इसमें खामोशी, सफर, आन मिलो सजना, कटी पतंग, आनंद, हाथी मेरे साथी, गुड्डी, महबूब की मेहंदी जैसी फिल्में हैं. वैसे राजेश हिंदी सिनेमा के अकेले ऐसे नायक हैं जिन्होंने 102 फिल्में बतौर सोलो हीरो और दो हीरो वाली 22 फिल्में की हैं. उनके हिस्से आई फिल्मों में 73 फिल्मों ने गोल्डन जुबली और 22 फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई. इस तरह से वो हिंदी सिनेमा के अब तक के सबसे सफल हीरो भी हैं और हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार.

कभी रिक्शा खींच कर दुनिया की मुश्किलों से लड़े तो कभी बावर्ची बन कर संयुक्त परिवार से गुम हुए प्यार के रिश्ते को वापस लाए. गुंडो को भी मारा, बेईमान बन चोरी चकारी भी की, राजनीति का बुरा दौर देखा तो भ्रष्ट विधायक रामअवतार भी बने और युवाओं की बेरोजगारी का दर्द भी महसूस कराया. राजेश की फिल्मों के किरदार एक शख्स न हो कर एक दौर हुआ करते. राजेश खन्ना ने पर्दे पर सिर्फ रोमांस ही नहीं, समाज की उलझनों से भी नाता जोड़ा. चाहे वो पीढ़ियों के टकराव की हों, या रिश्तों की बदलती परिभाषा की या फिर परिवार के बदलते स्वरूप की. उनकी फिल्में देख कर उस वक्त के भारत को जाना समझा जा सकता है.

भारत में आपातकाल के बाद जब भ्रष्टाचार और शासन व्यवस्था की दूसरी कमियां लोगों का सिरदर्द बनीं तो राजेश खन्ना की भूमिकाएं भी विद्रोही युवकों की तरफ मुड़ गईं. हालांकि तब तक एंग्री यंग मैन बने अमिताभ ने बॉलीवुड में जगह बना ली थी. दोनों ने साथ साथ भी काम किया पर यहीं से राजेश के सुपर स्टार वाले दौर की विदाई हो गई. अमिताभ के हमउम्र होने के बावजूद इन दो सुपर स्टारों के दौर के बीच साफ साफ इमरजेंसी की लकीर खिंची है.

Indien Film Bollywood Schauspieler Rajesh Khanna
तस्वीर: AP

पर्दे पर राजेश की पहचान भले ही आनंद के कहीं दूर जब दिन ढल जाए से होती हो, जिसे मुकेश ने आवाज दिया था, पर उनकी आधिकारिक आवाज किशोर कुमार थे. आरडी बर्मन के संगीत में सजे और किशोर के होठों से निकले गीतों ने लंबे दौर तक हिंदी सिनेमा को गुलजार रखा. हिंदी फिल्म संगीत के जिन सदाबहार गानों की बात होती है उसमें इस तिकड़ी की एक बड़ी हिस्सेदारी है. आम तौर पर राजेश खन्ना की फिल्मों के साथ ही उनकी गीतों के हिट होने की भी गारंटी थी. राजेश ने खुद तो कॉमेडी कम की लेकिन वो लंबे समय नकल उतारने वाले कॉमेडियनों की बड़ी पसंद रहे हैं. उनके बोलने के अंदाज की कॉपी खूब हुई, जो अब भी चलती है.

हिंदी फिल्मों में सबसे लंबे समय तक इतनी कामयाबी किसी और के हिस्से नहीं आई, सुपरस्टार भले ही चला गया हो पर हिंदी सिनेमा के पास ऐसी सौगात है जो कई सदियों तक उसके होने के अहसास को कमजोर नहीं पड़ने देंगीं.

कामयाबी का आसमान छूने के बाद ऐसे दिन भी आए, जब पारिवारिक संकट ने काका को तोड़ दिया. वह तन्हा हो गए. 11 साल तक पत्नी रही डिंपल कपाड़िया ने साथ रहना बंद कर दिया. कल का सुपर स्टार अचानक नेपथ्य में चला गया.

राजेश इन सबसे अकेले जूझते रहे. आखिरी वक्त में डिंपल एक बार फिर साथ आईं लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और आज उनके जाने के बाद हर किसी की जुबां पर बस यही है...

जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है जहांपनाह.

उसे न तो आप बदल सकते हैं, न मैं

हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं.

जिनकी डोर ऊपर वाली की उंगलियों में बंधी है.

कब कौन कैसे उठेगा, कोई नहीं बता सकता है.

उसके बाद की वह बुलंद हंसी आज भी साबित करती है कि

आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं.

रिपोर्टः निखिल रंजन

संपादनः अनवर जे अशरफ

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