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प्राकृतिक खेती से भारतीय किसानों को कितना फायदा

१० अप्रैल २०२४

भारत के बहुत से किसान प्राकृतिक खेती की तरफ जा रहे हैं. उन्हें इस तरीके से खेती करने से कठोर मौसम में फसल उगाने में मदद मिल रही है.

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किसान कहते हैं कि प्राकृतिक खेती उनकी फसलों की रक्षा करती है क्योंकि मिट्टी अधिक पानी संभाल सकती है
किसान कहते हैं कि प्राकृतिक खेती उनकी फसलों की रक्षा करती है क्योंकि मिट्टी अधिक पानी संभाल सकती हैतस्वीर: DW

रत्ना राजू के खेत में एक तीखी गंध है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह उनकी फसलों को अप्रत्याशित और चरम मौसम से बचा रही है.

राजू के खेत से जो गंध आ रही है वह गोमूत्र, गुड़ और अन्य जैविक सामग्री के मिश्रण के कारण आ रही है. आंध्र प्रदेश के गुंटूर के रहने वाले राजू अपने खेत में मक्का, धान और हरी सब्जियां उगाते हैं और यह मिश्रण उर्वरक, कीटनाशक और खराब मौसम से लड़ने में मदद करता है.

यह क्षेत्र अक्सर चक्रवातों और अत्यधिक गर्मी की चपेट में रहता है. यहां के किसानों का कहना है कि इस तरह की प्राकृतिक खेती उनकी फसलों की रक्षा करती है क्योंकि मिट्टी अधिक पानी संभाल सकती है और उनकी अधिक मजबूत जड़ें पौधों को तेज हवाओं का सामना करने में मदद करती हैं.

प्राकृतिक खेती की ओर जाते किसान

आंध्र प्रदेश प्राकृतिक खेती के इस लाभ का एक सकारात्मक उदाहरण बन गया है. जलवायु कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकारी समर्थन राज्य की सफलता के लिए बड़ा सहारा है.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 80 लाख डॉलर से अधिक खर्च किए हैं
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 80 लाख डॉलर से अधिक खर्च किए हैंतस्वीर: DW

विशेषज्ञ कहते हैं कि इन तरीकों का भारत की विशाल कृषि भूमि में विस्तार किया जाना चाहिए. घटते मुनाफे और जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले नुकसान के कारण कई किसानों ने इस साल विरोध प्रदर्शन किया.

लेकिन इन तरीकों के लिए देश भर में शुरुआती सरकारी समर्थन का मतलब है कि अधिकांश किसान आज भी रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे चरम मौसम की मार पड़ने पर वे अधिक असुरक्षित हो जाते हैं.

कई किसान चाहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें खेतों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने वाला बनाने के लिए आर्थिक मदद करें.

प्राकृतिक खेती के लाभ

कई किसानों के लिए प्राकृतिक खेती में अधिक निवेश के लाभ हैं. पिछले साल चक्रवात मिचौंग जब 110 किलोमीटर प्रति घंटा से आया तो उसने देश के दक्षिण-पूर्वी तट पर भारी तबाही मचाई. खेतों में बाढ़ आ गई लेकिन राजू के खेत पर इसका असर उतना नहीं हुआ.

राजू कहते हैं, "हमारे खेतों में बारिश का पानी एक ही दिन में जमीन में समा गया."

राजू के खेत की मिट्टी अधिक पानी सोख सकती है क्योंकि वह छिद्रपूर्ण होती है जबकि कीटनाशक वाली मिट्टी पपड़ीदार और सूखी होती है और वह पानी नहीं सोख पाती है.

लेकिन पड़ोसी किसान श्रीकांत कनापला के खेतों में कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल होता है इसलिए उनके खेत में चार दिनों तक पानी लगा रहा. अब वह भी वैकल्पिक खेती के तरीकों में बारे में सोच रहे हैं. कनापला ने कहा, "मुझे भारी नुकसान हुआ है."

कनापाला कहते हैं कि अगले मौसम के लिए वह प्राकृतिक खेती का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं.

रयथु साधिकारा संस्था के मुताबिक सरकार समर्थित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 2016 में एक योजना शुरू की गई थी. आंध्र प्रदेश को उम्मीद है कि वह दशक के अंत तक अपने सभी 60 लाख किसानों को इसके लिए प्रेरित करेगा.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 80 लाख डॉलर से अधिक खर्च किए हैं और उसका कहना है कि देश भर में लगभग दस लाख एकड़ जमीन जोतने वाले किसान प्राकृतिक खेती की ओर मुड़ गए हैं.

एए/वीके (एपी)