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65 साल से उलझे हुए भारत पाकिस्तान

१५ अगस्त २०१२

1947 में ब्रिटिश इंडिया का विभाजन आज भी दोनों देशों के संबंधों के बीच बना हुआ है. आपसी अविश्वास जारी है लेकिन हाल के दिनों में आपसी रिश्तों में बेहतरी के संकेत भी मिले हैं.

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तस्वीर: AP

दूसरे विश्व युद्ध के बाद आर्थिक तौर पर टूट चुके ब्रिटेन को भारतीय उपमहाद्वीप से 1947 में निकलना पड़ा. ब्रिटिश इंडिया के अंत का मतलब भारत और पाकिस्तान का स्वतंत्र देशों के तौर पर उभरना था.

इस बंटवारे में लाखों हिंदू, मुस्लिम, सिख विस्थापित हुए. जातीय हिंसा में हताहत होने वाले लोगों की संख्या दस लाख के करीब थी. भारत और पाकिस्तान उत्तर पश्चिम में सीमा के मुद्दे पर आधिकारिक रूप से सहमत नहीं हो पाए और इससे जन्म हुआ कश्मीर विवाद का जो आज भी जारी है.

आपसी अविश्वास

कई भारतीय नेताओं को 1947 में उम्मीद थी कि किसी तरह पाकिस्तान का अलग होना रोक दिया जाएगा और कहीं न कहीं उपमहाद्वीप के एकीकरण का सपना आज भी है. लेकिन पाकिस्तान अपने पड़ोसी से खतरा महसूस करता है. पाकिस्तान को आशंका है कि भारत खुद को सुपर पॉवर मानता है और इलाके के छोटे पड़ोसियों को घेरना या उन पर दबदबा बनाना चाहता है. दोनों देशों के आपसी रिश्तों में यह अविश्वास बना हुआ है.

Ali Jinnah Pakistan
मोहम्मद अली जिन्नातस्वीर: AP Photo

हालात ऐसे नहीं होने चाहिए थे. क्योंकि पाकिस्तान को बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना एक धर्मनिरपेक्ष संसदीय लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते थे. लेकिन वह ऐसा कर पाते इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई. उनके उत्तराधिकारियों के विचार अलग थे. सेना ने बहुत जल्दी विदेश और सुरक्षा नीति को सुनिश्चित करना शुरू किया और इन सालों में कई बार हुए सैनिक तख्तापलट के कारण लोकतांत्रिक सरकार की बजाए सेना ही सत्ता में बनी रही.

80 के दशक में खाई और गहरी हो गई. सोवियत संघ के हमले के कारण पाकिस्तान में सीआईए प्रायोजित इस्लामिक कट्टरपंथियों का प्रभाव बढ़ गया जिसमें ओसामा बिन लादेन भी शामिल था. जनरल जियाउल हक के सैन्य शासन के दौरान गहरे तक देश का इस्लामीकरण हो गया. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस दौरान ताकत का इस्तेमाल करते हुए कट्टरपंथी गुटों को शह देनी शुरू की. इनमें कश्मीर और भारत पर आतंकी हमले करने वाला गुट लश्कर ए तैयबा भी शामिल था. 2008 के मुंबई हमले भी इसी गुट के नाम हैं.

मीडिया भी शामिल

दोनों देशों का मीडिया भी आपसी अविश्वास को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहा है. अक्सर रिपोर्ट घिसी पिटी दुश्मनी वाले वाक्यों से भरी होती है. दोनों देशों के पत्रकार शिकायत करते हैं कि आपसी मुद्दों पर निष्पक्ष रिपोर्टिंग ऊपर से रोकी जाती है. ऐसा ही शिक्षा क्षेत्र में भी है. इस्लामाबाद के पत्रकार मारवा बारी कहते हैं कि बच्चों को शिक्षा दी जाती है कि वह भारत को दुश्मन मानें. "पाकिस्तान की शिक्षा प्रणाली भारत के लिए नफरत बढ़ाती है. मुसलमानों को पीड़ित दिखाया जाता है जबकि बाकी सारे लोग दुष्ट और दुश्मन दिखाए जाते हैं. बच्चों के मन में यह भरा जाता है कि भारत पाकिस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन है और यह कि दोनों देशों में समानता नहीं बड़ा अंतर है."

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विवाद के कई मुद्देतस्वीर: dapd

आगे कदम

मुंबई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत रुकी सी ही है लेकिन वरिष्ट भारतीय पत्रकार और शांति के लिए काम करने वाले कुलदीप नैयर को अभी उम्मीद है. "समय लगेगा. सरकारों के पास शांति के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. कोई युद्ध नहीं होगा. आज कल नहीं तो परसों दोनों देश बातचीत करेंगे. इसमें बर्लिन की दीवार गिराने जैसी कोई नाटकीय घटना नहीं होगी लेकिन कभी न कभी हमारे रिश्ते बेहतर होंगे."

पाकिस्तान से निवेश को भारत में हरी झंडी मिलना यह तो दिखाता है कि खाई को पाटने की शुरुआत हुई है. कराची में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर मूनिस अहमर कहते हैं, "आपसी व्यापार दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर करेगा क्योंकि व्यापार से लोगों के बीच संपर्क बढ़ेगा. लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में ऐसे धड़े हैं जो संपर्क नहीं चाहते. लेकिन जब भारत और पाकिस्तान के आम नागरिक व्यापार और निवेश को सहयोग देंगे तो लड़ाई करने वाले तत्वों की निश्चित ही हार होगी."

नई दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सविता पांडे भी मानती हैं कि व्यापार में बढ़े कदम अच्छा संकेत हैं.

वहीं नैयर चेतावनी देते हैं कि और आगे बढ़ने से पहले भारत पाकिस्तान से कुछ और भी चाहता है. "भारत चाहता है कि पाकिस्तान मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कदम उठाए. लेकिन इस्लामाबाद इस बारे में कुछ नहीं कर रहा है और नई दिल्ली इंतजार में है."

रिपोर्टः ग्राहम लुकास/एएम

संपादनः महेश झा