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भारत में क़ानूनी हो सकता है देह व्यापार

११ दिसम्बर २००९

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि अगर वह देह व्यापार पर नियंत्रण नहीं कर सकती तो उसे क़ानूनी दर्जा दे दे. अदालत ने दो ग़ैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही.

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सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसलातस्वीर: Wikipedia/LegalEagle

जस्टिस दलवीर भंडारी और एके पटनायक ने सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम से कहा, "जब आप कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना पेशा है और आप इसे क़ानून से नियंत्रित नहीं कर सकते तो फिर इसे क्यों न क़ानूनी दर्जा दे दिया जाए. फिर आप व्यापार और पुनर्वास की निगरानी कर सकते हैं और इसमें शामिल लोगों को इलाज मुहैया करा सकते हैं." अदालत ने कहा कि देह व्यापार को क़ानूनी दर्जा देना महिलाओं की तस्करी से बचने का एक बेहतर विकल्प है. साथ ही यह भी कहा कि दुनिया में कहीं भी देह व्यापार को दंडात्मक उपायों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि वह इस सुझाव पर ग़ौर करेंगे.

जजों ने पूछा, "यौन कर्मी किसी न किसी तरह अपना काम कर रहे हैं और दुनिया में कहीं भी उन्हें क़ानून के ज़रिए रोका नहीं जा सका. कुछ मामलों में देह व्यापार को व्यवस्थित तरीक़े से किया जा रहा है. तो फिर क्यों न इसे क़ानूनी दर्जा दे दिया जाए."

अदालत बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन और चाइल्ड लाइन की तरफ़ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें देश में बड़े पैमाने पर होने वाली बच्चों की तस्करी को रोकने की मांग की गई है. सर्वोच्च अदालत ने पूछा कि क्यों देश की 37 प्रतिशत आबादी क्यों ग़रीबी रेखा से नीचे जी रही है, ख़ासकर तब जब देश में जीडीपी बढ़ने की बातें ज़ोर शोर से होती हैं.

बेंच ने कहा कि बच्चों की तस्करी और देह व्यापार ग़रीबी की वजह से फल फूल रहे हैं और इस समस्या से निपटना होगा. अदालत के मुताबिक़, "हम बढ़ती जीडीपी की बात नहीं कर रहे हैं. पता नहीं यह कैसा विकास है जब ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या 30 प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई है. जीडीपी बढ़ने का यह मतलब नहीं है कि चार पांच परिवार विकसित हो जाएं. अगर विकास का यह हाल है तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता."

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ए जमाल