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चावेज़ की बेहूदा बहक

प्रिया एसेलबोर्न१३ मई २००८

जर्मन चांसलर आंगेला मैर्कल की लातिन अमेरिकी यात्रा वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति हुगो चावेज़ के बयान की वजह से अचानक आकर्षण का केंद्र बन गई है। अब अटलांटिक सागर के इस पार और उस पार खबरों में इसी बात की चर्चा हो रही है।

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जर्मन चांसलर आंगेला मैर्कलतस्वीर: AP

ब्राज़िल, कोलंबिया और मैकसिको- जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल इन तीन देशों की यात्रा करेंगी। लेकिन शुक्रवार को यूरोपीय संघ लातिन अमेरिका शिखर सम्मेलन में उनकी भागेदारी सबसे दिलचस्प होगी। वहाँ मैर्कल वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति शावेज़ से भी मिलेंगी।

Chavez macht Merkels Lateinamerika-Reise spannend
वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति चावेज़तस्वीर: AP

एक तरफ ठंडे दिमाग से काम लेने वाली भौतिक शास्त्री मैर्केल। दूसरी तरफ जल्द क्रोधित होने वाले लफ़्फाज़ चावेज़। उन्होंने मैर्कल की हिटलर के साथ तुलना की थी। चावेज़ के मुताबिक मैर्कल दक्षिणपंथी खेमे के हिस्से हैं। उन्ही दक्षिणपंथियों का जिन्होंने हिटलर का उस वक्त समर्थन किया था। वैसे लातिन अमेरिका को एशिया और अफ्रीका की तुलना में जर्मन विदेश नीति में उतनी प्राथमिकता नहीं दी जाती है। सी-एस-यू पार्टी के लातिन अमेरिका विशेषज्ञ क्रिस्तियान रूक कहते हैं।

"हमें भूमी सुधार से लेकर, न्याय व्यवस्था और संवैधानिक सुधार तक सभी मुद्दों को उठाना चाहिए। यह हमारी ज़िम्मेदारी है। लातिन अमेरिका के देश उस हालत में होने चाहिए कि वे वर्तमान आर्थिक और समाजिक चुनौतियों का सामना कर सकें ।"

एसपीडी पार्टी के नील्स आन्नेन का कहना है कि जर्मनी सहित कई यूरोपीय देशों को खासकर वेनेज़ुएला या बोलिविया जैसे देशों के चरमपंथी सरकारों के साथ पेश आने में दिक्कत हो रही है।

"लातिन अमेरिका में चरमपंथ की भावना और राजनैतिक पार्टियों की विविधता बाज़ार को लेकर अतिवाद का जवाब है। उस अतिवाद का जिसका चांसेलर मैर्केल की सीडीयू पार्टी ने भी समर्थन किया था।"

मैर्केल अपनी एक हफ्ते की लातिन अमेरिकी यात्रा पर खासकर आर्थिक विषयों पर ज़ोर देना चाहतीं हैं। ब्राज़िल विश्व व्यापार संगठन में बेहद शक्तिशाली है। यूरोपीय संघ और विकासशील देश काफ़ी समय से कृषि सब्सीडी के मुद्दे पर बहस कर रहे हैं। बेहद संसाधन वाले लातिन अमेरिका में औद्योगीकरण के साथ साथ पर्यवरण संरक्षण भी मैर्केल के एजेंडे पर है। साथ ही जर्मनी भारी मात्रा में विकास सहायता उपलब्ध करवाता है। इसलिए मैर्केल बेरोज़गारी, ग़रीबी और दूसरे सामाजिक चुनौतियों पर भी बात करना चाहतीं हैं। 2005 में चांसलर बनने के बाद यह मैर्केल की पहली लातिन अमेरिका यात्रा और सबसे दूर की यात्रा भी है।