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भारत में वेबसाइट ब्लॉक करने का विरोध

२४ अगस्त २०१२

भारत सरकार ने जातीय तनाव पैदा करने वाली संदिग्ध साइटों पर रोक तो लगा दी है, लेकिन अब उसे विरोध का सामान करना पड़ रहा है. इंटरनेट एक्सपर्ट इसे अत्यंत अक्षम और पूरी तरह अवैध बता रहे हैं.

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तस्वीर: dapd

भारत सरकार ने पिछले दिनों में इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों को 309 वेबसाइटों, तस्वीरों और लिंक को ब्लॉक करने के निर्देश दिए हैं. इनमें फेसबुक, ट्विटर, विकीपीडिया और ऑस्ट्रेलिया के न्यूज चैनल एबीसी और कतर के अल जजीरा के लिंक भी शामिल हैं. सरकारी आदेश का लक्ष्य भड़काऊ सामग्रियों के फैलने और इन अफवाहों को रोकना था कि मुसलमान बंगलोर और दूसरे दक्षिण भारतीय शहरों में रहने वाले पूर्वोत्तर के निवासियों पर हमले की योजना बना रहे हैं.

ट्विटर यूजर्स के अलावा कानूनी विशेषज्ञों और विश्लेषकों ने सरकारी रवैये की आलोचना की है. सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी रिसर्च ग्रुप के प्रणेश प्रकाश कहते हैं, "जिन अधिकारियों के पास इसकी जिम्मेदारी है वे कानून और आधुनिक तकनीक को अच्छी तरह नहीं जानते." सरकारी प्रतिक्रिया को अक्षमता का उदाहरण बताते हुए प्रणेश प्रकाश कहते हैं, "मुझे उम्मीद है कि इस विफलता के बाद अत्यधिक सेंसरशिप की खामी साफ होगी और सरकार लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल नेटवर्क के बेहतर इस्तेमाल करेगी."

सरकार के निर्देश पर जिन साइट्स को बंद किया गया है उनमें ब्रिटिश अखबार टेलिग्राफ में म्यांमार की तस्वीरें हैं, ट्विटर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का प्रॉक्सी अकाउंट है और यूट्यूब पर दर्जनों वीडियो हैं. एबीसी ने म्यांमार में बौद्धों और मुसलमानों के झगड़े पर अपनी एक रिपोर्ट को ब्लॉक किए जाने पर एक बयान में कहा कि उसे इस कार्रवाई पर आश्चर्य हुआ है और अपनी रिपोर्ट पर कायम है.

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील और इंटरनेट कानून पर किताब लिखने वाले विवेक सूद का कहना है कि उनकी राय में सरकार गैरकानूनी कार्रवाई कर रही है. उन्होंने एक भारतीय अखबार से कहा, "भारतीय आईटी कानून के तहत यह पूरी तरह गैरकानूनी है. यह सरकार द्वारा सत्ता का खुला दुरुपयोग है."

भारत सरकार ने वेबसाइटों पर डर को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है जिसके कारण दक्षिण भारतीय शहरों में रहने वाले दसियों हजार पूर्वोत्तर निवासियों ने घर भागना शुरू कर दिया. केंद्र सरकार के मंत्रियों ने वेबसाइटों को ब्लॉक करने के फैसले का समर्थन किया है और शिकायत की है कि वेबसाइटों और सोशल नेटवर्किंग साइटों ने भड़काऊ सामग्रियों पर सरकार के साथ सहयोग नहीं किया.

सरकारी की आलोचना करने वाली पत्रकार कंचन गुप्ता ने हाल के दिनों में अपने ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक किए जाने को राजनीतिक प्रतिशोध बताया है.

एमजे/एएम (एएफपी)