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मानवाधिकारों का असर कारोबार पर

२० अगस्त २०१२

श्रीलंका जब यूरोपीय संघ के साथ 2013 का व्यापार समझौता करेगा तो उसे कड़ी सौदेबाजी के लिए तैयार रहना होगा. मानवाधिकारों के मुद्दे पर दो साल पहले उसकी कारोबारी रियायत खत्म कर दी गई थी.

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तस्वीर: AP

श्रीलंका के लिए ईयू प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख बैर्नार्ड सैवेज का कहना है कि राजनीतिक मतभेदों का व्यापार पर असर नहीं होता. उनका कहना है कि व्यापारिक रियायतों को वापस लेना विशेष मामला था, "लेकिन यदि आप व्यापारिक रिश्तों के व्यापक परिदृश्य को देखें तो वह तात्कालिक विचारों के कारण प्रभावित नहीं हुई हैं."

मानवाधिकारों के विख्यात वकील जेसी वेलियामुना का मानना है कि व्यापार और आर्थिक मदद मानवाधिकारों और भ्रष्टाचार के साथ जुड़ी हुई है और इन दो क्षेत्रों में श्रीलंका को नतीजे दिखाने को कहा गया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के बोर्ड सदस्य वेलियामुना कहते हैं, पेपर पर जो आश्वासन दिया गया है, सरकार जमीन पर उसका ठीक उल्टा कर रही है.

यूरोपीय संघ श्रीलंका को सबसे ज्यादा विकास सहायता देने वालों में शामिल है. पानी और सफाई के अलावा रोजगार और स्वास्थ्य की परियोजनाओं के लिए उसने 2007 से 2013 तक श्रीलंका को करीब 48 करोड़ डॉलर दिए हैं. सैवेज का कहना है कि 2013 से 2020 की अवधि में भी सहायता का स्तर यही रहेगा, उससे कम नहीं होगा. श्रीलंका को 2005 से 2010 के बीच प्राथमिकता के सिस्टम जीएसपी प्लस के तहत कर में भारी छूट मिली थी लेकिन मानवाधिकारों पर प्रगति न दिखने के कारण उन्हें वापस ले लिया गया.

यूरोपीय संघ ने अपनी जांच में संयुक्त राष्ट्र के तीन मानवाधिकार संधियों को लागू करने के मामले में खामियां पाई हैं. इनमें नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अलावा यातना और बाल अधिकारों से संबंधित संधि भी शामिल है. लेकिन समझा जाता है कि तमिल विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई के आखरी दिनों में संदिग्ध युद्ध अपराधों पर कार्रवाई न करने के कारण व्यापारिक रियायतें वापस ली गईं.

रियायतों के न रहने का असर अब देखा जा रहा है. श्रीलंका के वस्त्र निर्यात संघ के रोहन अबयकून का कहना है कि साल के पहले पांच महीने में यूरोपीय देशों को कपड़ों की बिक्री में 15-20 फीसदी की कमी आई है. श्रीलंका से यूरोप को होने वाले निर्यात का 50 फीसदी कपड़ा है. अबयकून के अनुसार चिंता रोजगार की नहीं है, क्योंकि उसकी बहुत मांग है, लेकिन निर्यात में गिरावट का असर छोटे और मझोले उद्यमों पर पड़ रहा है. वे अपना कारोबार कहीं और ले जा सकते हैं.

Vierer-Gipfel in Rom 2012
तस्वीर: dapd

कपड़ा उद्योग सरकार से मांग कर रहा है कि वह रियायतों के लिए यूरोपीय संघ से बात करे. लेकिन सैवेज का कहना है कि जीएसपी प्लस पर सरकार ने कोई आग्रह नहीं किया है. ट्रेड यूनियन भी रियायतों को फिर शुरू करने की मांग कर रहे हैं. कपड़ा यूनियन के पलिथा अथुकोराला कहते हैं, "हम बुरी तरह प्रभावित हैं, क्योंकि छोटे कारखाने बंद हो रहे हैं और मजदूर रोजगार खो रहे हैं."

राजनैतिक मोर्चे पर श्रीलंका की सरकार ने अपना रुख बदला है और इस महीने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को स्थिति के मुआयने के लिए श्रीलंका आने का निमंत्रण दिया है. पहले उसने ईयू की एक टीम को भी रोक दिया था. परिषद में मानवाधिकारों के हनन पर एक प्रस्ताव पास किए जाने के पांच महीने बाद श्रीलंका ने एक एक्शन प्लान बनाया है और उसे जेनेवा भेजा है. यूएन के प्रस्ताव में श्रीलंका से मानवीय कानून के हनन पर कार्रवाई करने और लड़ाई की जांच करने वाले स्थानीय आयोग के सुझावों पर अमल करने की मांग की थी. राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने तमिल विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई के अंतिम दिनों में आम नागरिकों के बड़ी संख्या में मारे जाने से हमेशा इंकार किया है.

पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों के बिगड़ने के कारण पिछले सालों में श्रीलंका को विकास कार्य के लिए भारत, चीन और ईरान जैसे पड़ोसियों पर निर्भर होना पड़ा है. लेकिन लगातार जारी दबाव और यूएन प्रस्ताव को परंपरागत सहयोगी भारत के समर्थन के कारण श्रीलंका को समझौते का रुख दिखाने पर मजबूर होना पड़ा है. मानवाधिकारों के मुद्दे पर हालात बेहतर होने से पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते भी बेहतर हो सकते हैं.

एमजे/एनआर (आईपीएस)

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