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ओलंपिक में दक्षिण कोरिया का 'एकलव्य'

१० जुलाई २०१२

उनकी नजर 20/200 हैं. कानून इतनी क्षीण नजर वाले को दृष्टिहीन कहता है. वह न तो कॉन्टैक्ट लेंस लगाते हैं और न ही चश्मा पहनते हैं. लेकिन धनुष हाथ में आते ही वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज बन जाते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

दक्षिण कोरिया के तीरंदाज इम डोंग ह्युन ऐसे धनुर्धर हैं कि वह एक वर्ग इंच जितनी छोटी चीज पर 70 मीटर दूर से सटीक निशाना लगाते हैं. कमान से निकला उनका तीर लक्ष्य भेदने पर ही रूकता है. तीरंदाजी के नंबर एक खिलाड़ी रह चुके इम दो बार ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं. 2004 में एथेंस और 2008 में बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले इम लंदन में भी ऐसा ही हैट्रिक पूरी करना चाहते हैं.

सामान्य जिंदगी में उन्हें बिना चश्मे के पढ़ने लिखने या अन्य चीजें देखने में भारी मुश्किल होती है. लेकिन तीरंदाजी का मामला हो तो बात बदल जाती है. 26 साल का निशानेबाज कहता है, "जब मैं निशाना लगता हूं तो मुझे कोई परेशान नहीं होती है. इसीलिए मैं चश्मा नहीं पहनता हूं. लक्ष्य धुंधला दिखता है लेकिन यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है."

अमेरिका के ब्रैडी एलिसन इस वक्त पहले नंबर के तीरंदाज हैं. लेकिन इम का कहना है कि एलिसन का दौर अब आखिरी मुकाम पर है. उनके मुताबिक लंदन में कहानी बदल जाएगी. व्यक्तिगत प्रतिस्पर्द्धा में इम पहले स्थान पर आने की आशा है. बीते साल अक्टूबर में ओलंपिक क्वालिफाइंग के दौरान उन्होंने अपना वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ा. 72 तीर निशाने पर मारने का अपना ही कीर्तिमान ध्वस्त करते हुए उन्होंने 693 अंक हासिल किये. इसी साल मई में तुर्की में वर्ल्ड कप में इम ने 696 अंक बटोरे.

इम के मुताबिक एलिसन को दक्षिण कोरियाई कोच मिलने का फायदा हुआ. 2006 में दक्षिण कोरिया के ली कि-सिक अमेरिकी टीम के कोच बन गये. इम के मुताबिक ली की वजह से ही एलिसन एक अच्छे धनुर्धर बन पाए.

इम की हसरत लंबे वक्त तक इस खेल में बने रहने की है, "मैंने कभी संन्यास लेने के बारे में नहीं सोचा. मैं जब तक अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर लेता तब तक धनुर्धर बन रहूंगा. संन्यास की मेरी कोई योजना नहीं है."

हाल में अफवाहें उड़ी कि वह लंदन ओलंपिक के बाद जीवन में बड़े बदलाव का एलान करेंगे. इस पर इम कहते हैं, "अफवाहें सही हैं. मैं ओलंपिक खत्म होने के बाद शादी करूंगा."

कयासों के दौर को खत्म करते हुए उन्होंने अपनी भावी पत्नी के बारे में भी जानकारी दी, "मेरी मंगेतर भी एक धनुर्धर रह चुकी है. मैं उनसे कॉलेज के दौरान मिला. वह अब निशानेबाजी नहीं करतीं. वह एक स्कूल में पढ़ाती हैं."

पत्रकारों ने जब इम से यह पूछा कि क्या वह भविष्य में आंखों की लेजर सर्जरी करवाएंगे. जवाब मिला, नहीं. इम के मुताबिक निशानेबाजी में कमजोर नजर जितनी बाधा खड़ी करती है, उससे ज्यादा मदद उनका दिमाग करता है. विलक्षण यादाश्त वाले इम लक्ष्य का ऐसा खाका दिमाग में बैठा लेते हैं कि तीर बाएं-दाएं या ऊपर-नीचे जाने की हिमाकत नहीं करता.

ओएसजे/ एमजी (रॉयटर्स)

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