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ग्रामीण महिलाओं को इंजीनियर बनाता एक कॉलेज

५ मार्च २०१२

भारत में शिक्षा को लेकर अक्सर यह बहस छिड़ी रहती है कि वह व्यवहारिक और रोजगार दिलाने वाली नहीं है. लेकिन इसके उलट राजस्थान के एक गांव में एक ऐसा कॉलेज चल रहा है जो ग्रामीण महिलाओं को सोलर इंजीनियर बना रहा है.

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तस्वीर: KfW-Bildarchiv/Jörg Böthling

यह कॉलेज डिग्री ही नहीं देता बल्कि महिलाओं को इस तरह योग्य बना देता है कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो कर अपने परिवार का पालन पोसन कर सकें. यह कॉलेज है बेयरफुट कॉलेज. राजस्थान के अजमेर जिले के तिलोनिया गांव में 52 एकड़ में बना कॉलेज अपनी अनूठी शिक्षा के लिए भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में मशहूर हो चला है.

यहां आस पास के गांव की दादी- नानी और घरेलू महिलाएं पढ़ाती हैं. इन्होंने खुद भी कभी इसी कॉलेज में ट्रेनिंग ली थी. अब यहां सोलर इंजीनियरिंग के साथ-साथ मशीनों, जन स्वास्थ्य और रेडियो जॉकी की ट्रेनिंग भी दी जाती है. बेयरफुट कॉलेज की स्थापना 1972 में संजीत बुनकर राय ने की थी. ग्रामीण महिलाओं की स्थिति सुधारने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का उनका प्रयास रंग लाया.

कुछ अलग करने की चाहत

पास के गांव में रहने वाली मगन कंवर ने इसी कॉलेज में काम सीखा और अब यहीं मास्टर ट्रेनर है. पुराने दिनों को याद करते हुए मगन कंवर कहती हैं " मैंने स्वेटर बनाना सीख कर कुछ करने की ठानी थी. हमेशा से ही खाना बनाने और बच्चों की जिम्मेदारी के अलावा भी कुछ करना चाहती थी. कॉलेज आने के बाद सोलर इंजीनियरिंग का काम सीखना शुरू किया और अब अपनी भूमिका से खुश हूं."

कॉलेज में आने वाली बहुत सी महिलाओं के पति शराब पीकर उनके साथ बुरा बर्ताव करते थे. लेकिन यहां आने के बाद वे आत्मनिर्भर बनी हैं. वो अब खुद के और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना देख रही हैं.

विदेशी महिलाओं को भी ट्रेनिंग

बेयरफुट कॉलेज में न सिर्फ राजस्थान बल्कि विदेशों से आई महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी जाती है. यहां ट्रेनिंग ले रही तंजानिया की 47 वर्षीया मसांबा हामिज मकामी कहती हैं, " मैं यहां से सोलर उपकरणों का काम सीख कर जाउंगी और अपने गांव और घर में इसे लगाउंगी. मसांबा की ही तरह विभिन्न देशों की 28 महिलाएं भारत सरकार की स्कॉलरशिप पर बेयरफुट कॉलेज में 6 माह का प्रशिक्षण ले रही हैं.

पूर्वी अफ्रीका से आई मकामी स्वाहिली भाषा बोलती हैं. वे कहती हैं कि पढ़ाई में भाषा की समस्या कहीं आड़े नहीं आती. कलर कोड और सर्किट के चिन्हों से वे समझ जाती हैं. मगन कंवर के अनुसार हम महिलाओं ने अपने कोड बना लिए हैं. इससे हम सही उपकरणों को इलेक्ट्रिक बोर्ड में जोड़ पाते हैं.

बेयरफुट कॉलेज के संस्थापक राय को टाइम मैगजीन ने उनके इस काम के लिए वर्ष 2010 में विश्व के 100 प्रभावशाली लोगों में शामिल किया है.

कॉलेज के संयोजक भागवत नंदन कहते हैं, "पुरुषों के बजाय उम्र दराज महिलाओं की ट्रेनिंग पर अधिक ध्यान दिया जाता है. पुरूष बहुत बेचैन रहते हैं. जैसे ही आप उन्हें सर्टिफिकेट देते हैं वे तुरंत गांव छोड़ देते हैं. डिग्री से ज्यादा हम यहां सीखने वालों को आत्मनिर्भर बनाते हैं." रॉय के इस मॉडल को देश के 17 राज्यों के साथ ही 15 दूसरे ने भी अपने यहां लागू किया है. यहां के कोर्स सामान्य तौर पर 6 से 9 माह के होते हैं. कॉलेज को भारत सरकार, अंतराष्ट्रीय एजेंसियां और उद्योगों के अलावा कुछ लोगों से निजी तौर पर मदद मिलती है.

10 हजार महिलाओं को प्रशिक्षण

कॉलेज से अब तक लगभग 10 हजार से अधिक महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी हैं. 800 से अधिक नाइट स्कूल पूरे भारत भर में बेयरफुट कॉलेज संचालित कर रहे हैं. यह कॉलेज व्यवहारिक शिक्षा, मैदानी स्तर पर मिलने वाले सहयोग और मितव्ययिता का बेहतर मॉडल है.

रिपोर्टः एएफपी / जितेन्द्र व्यास

संपादनः एन रंजन

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