1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

खेलने के लिए लड़तीं सऊदी महिलाएं

२ मार्च २०१२

24 वर्ष की नूर फितनी जब बास्केट बॉल कोर्ट में उतरती हैं तो उसकी तेजी और चपलता देखते ही बनती है. और बेहतरीन खेल की बदौलत वह दुनिया के किसी भी देश के खिलाड़ियों से कम नजर नहीं आतीं. पर खेलने की इजाजत नहीं.

https://p.dw.com/p/14Chg
तस्वीर: picture-alliance/dpa

नूर सऊदी अरब की हैं. यह वह देश है, जहां स्कूलों तक में लड़कियों को खेल में हिस्सा लेने पर पाबंदी है. देश के ताकतवर मौलवियों ने महिलाओं के कसरत करने और जिम जाने पर भी कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं. इतनी परेशानियों के बीच भी जेद्दा यूनाइटेड नाम की टीम से खेलने वाली नूर की तमन्ना है कि वह बास्केटबॉल खेलती रहें और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में देश का प्रतिनिधित्व करें.

वह कहती हैं, "मुझे उम्मीद है कि जो लड़कियां वास्तव में खेलना चाहती हैं, उन्हें परेशानियों और पाबंदी की परवाह किए बगैर खेलना चाहिए." वे खुद को नीली टी शर्ट और जॉगिंग पैंट में देखना चाहती हैं.

सऊदी अरब में महिलाओं को खेल कूद की इजाजत नहीं है. इस देश ने कभी भी ओलंपिक में अपनी महिला टीम नहीं भेजी है, जिसकी वजह से हाल ही में ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसकी निंदा की है. हालांकि फुटबॉल जैसे खेलों में सऊदी अरब की पुरुष टीमें अच्छा करती रही हैं.

धार्मिक मामलों की आधिकारिक सुप्रीम काउंसिल के प्रतिनिधि शेख अब्दुल्लाह अल माने के अनुसार "फुटबाल और बास्केट बॉल जैसे खेलों में दौड़ने और उछलने की जरूरत होती है. इससे लड़कियों का कौमार्य खो सकता है."

पिछले साल शाह अब्दुल्लाह ने देश की राजनीति में महिलाओं को लाने, महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने और उनके कसरत के नियमों में बदलाव के संकेत दिए थे.

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने इस बात का संकेत दिया था कि यदि महिला खिलाड़ियों को ओलंपिक में भाग लेने के लिए बुलाया गया तो उन पर रोक नहीं लगाई जाएगी. अटकलें यह भी हैं कि सरकार एक घुड़सवारी दल ओलंपिक में भाग लेने के लिए इस साल लंदन भी भेज रही है.

पुरुषों का एकाधिकार

सऊदी अरब का समाज पुरुष सत्तात्मक है. यहां खेलों में भाग लेने की अनुमति सिर्फ पुरुषों को है. महिलाओं को खेल देखने के लिए स्टेडियम जाने तक की अनुमति नहीं है. महिलाओं को घरों के भीतर या कुछ स्कूलों की चारदीवारी में ही थोड़ा बहुत खेलने की अनुमति है. लेकिन जैसे ही वे सार्वजनिक प्रतियोगिताओं में भाग लेने की और कदम बढ़ाती हैं, उन्हें प्रतिबंधो में बांध दिया जाता है.

मीडिया भी महिलाओं के साथ भेदभाव करता है. बास्केटबॉल टीम जेद्दा यूनाइटेड 2009 में जब लेबनान की राष्ट्रीय टीम से खेल कर वतन लौटी, तो अखबारों में शीर्षक छपा, "बेशर्म." इससे खेल में शामिल होने वाली महिलाओं के परिवारों को खासी परेशानी होती है. महिलाओं को घर में पड़े रहने और पत्नी तथा मां की जिम्मेदारी निभाने को कहा जाता है.

नूर की टीम में ही बास्केटबॉल खेलने वाली हदीर सादगाह के अनुसार, "यदि हमारे परिवार सहयोग न करें तो हम खेलों में हिस्सा नहीं ले पाएंगे. कुछ लोग अतिवादी या रूढ़ीवादी हो सकते हैं." जेद्दा में 2003 में महिलाओं को प्रशिक्षित करने और फिटनेस बनाए रखने के लिए एक संस्था बनाई गई थी. यहां अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए ट्रेनिंग दिया जाता है.

सऊदी महिलाओं का समूह इस वर्ष गर्मियों में माउंट एवरेस्ट ट्रेकिंग कैंप का आयोजन करने जा रहा है. इससे होने वाली आय को स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं के इलाज पर खर्च किया जाएगा. सऊदी शाह के भतीजे और अरबपति राजकुमार अलवालिद बिन तलाल महिलाओं को अधिकार दिए जाने का समर्थन करते हैं. उन्होंने अपनी घुड़सवारी टीम में महिलाओं को भी रखा है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की इजाजत है.

महिला अधिकारों का विरोध

2010 में धार्मिक संगठन से जुड़े अल खुदैर अब्दुल करीम ने महिलाओं के खेलों में भाग लेने के खिलाफ फतवा जारी कर दिया था. उनका कहना है कि यह शैतान के नक्शे कदम पर चलने जैसा है. स्कूलों में लड़कियों को खेलों में भाग लेने की अनुमति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह इस्लाम के खिलाफ है. ऊंचे पद पर बैठे प्रभावशाली मौलवी की टिप्पणी का राजशाही पर भी प्रभाव पड़ता है.

Iran Frauen Fußball Nationalmannschaft FIFA verteidigt Hijab Verbot
ईरान की महिला फुटबॉल टीमतस्वीर: picture-alliance/abaca

राजकुमारी रीमा अलसऊद के अनुसार एक देश के रूप में ऐसे उपाय लागू करने की जरूरत है जो महिलाओं को स्वस्थ जीवन शैली, फिटनेस, पोषण और बीमारी का जल्दी पता लगाने के लिए नियमित जांच की अनुमति दे. महिलाओं के एवरेस्ट अभियान दल का नेतृत्व कर रही रीमा के अनुसार इस अभियान के पहले ही विचार आया कि एक स्वस्थ जीवन शैली और स्वस्थ शरीर बेहद जरूरी है.

देश के सरकारी स्कूलों में लड़कियों को खेलों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाती. जबकि कुछ निजी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में बेहतर खेल सुविधाएं हैं. जेद्दा यूनाइटेड की सदस्यों को ऐसे बास्केटबॉल कोर्ट में प्रैक्टिस करनी पड़ती है, जिसके चारों तरफ पांच मीटर ऊंचा कंक्रीट की दीवार है. हर सदस्य को 600 रियाल (लगभग 8000 रुपये) महीने की फीस देनी होती है. जेद्दा में ऐसी कुछ गिनी जगहें ही हैं.

टीम के संस्थापक लीना अल माईना के अनुसार, "हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वस्थ जीवन शैली के लिए दबाव बनाने में विश्वास रखते हैं. हम ऐसा पुल बना रहे हैं जो खेलों के माध्यम से महिलाओं की छवि बदल दे."

रिपोर्टः आसमां अलशरीफ (रॉयटर्स)/जे व्यास

संपादनः ए जमाल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी