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सोशल मीडिया में उग्र दक्षिणपंथी प्रचार

२२ अप्रैल २०१४

फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया साइटों की वजह से दुनिया भर में बहुत से बेजुबान संगठनों को आवाज मिली है. लेकिन जर्मनी जैसे देशों में उग्र दक्षिणपंथी भी अपने विचारों को फैलाने के लिए इसका फायदा उठा रहे हैं.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

फेसबुक यूजर सुजाने को कुत्तों से प्यार है और यह उसके प्रोफाइल फोटो और उन पेजों से भी झलकता है जो उसने लाइक किया है. वह पशु संरक्षण का समर्थन करती है और रोमानियाज डॉग्स जैसे पेजों की फैन है. लेकिन उसके पेज से यह भी झलकता है कि वह अपने देश जर्मनी में शरणार्थियों का समर्थन नहीं करती. वह कई वर्चुअल "नागरिक आंदोलनों" की सदस्य है जो शरणार्थी शिविरों का विरोध करते हैं और कुछ लोगों के पेज पर लिखा है कि शरणार्थियों गृहों पर होने वाला खर्च पशु गृहों के लिए किया जाना चाहिए.

संभव है कि कुछ साल पहले सुजाने ने अपने विचार सिर्फ अपने करीबी दोस्तों या जानने वालों के सामने जाहिर किए होते. लेकिन फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट का सदस्य बनने के बाद अब उसके अपने जैसा सोचने वाले सैकड़ों अनजाने लोगों के साथ अपने विचार बांटने का मौका है. ऐसा ही एक प्लैटफॉर्म है "लोकतंत्र की रक्षा की हिम्मत" जिसके 20,000 फैन हैं. इस पेज पर कुछ सबसे ज्यादा टिप्पणी वाले मुद्दों में जर्मनी की "शरणार्थी सुविधाओं का दुरुपयोग", "विदेशी घुसपैठ" और "जर्मन होने पर गर्व" होना है.

परायों से विद्वेष

जर्मनी में पिछले सालों में घृणा का इजहार करने वाले ऐसे बहुत सी साइट खोली गयी हैं. फेलिक्स श्टाइनर का कहना है कि इनमें से ज्यादातर उग्र दक्षिणपंथी विचार के लोगों ने शुरू किए हैं. श्टाइनर पब्लिकेटिव डॉट ऑर्ग के लेखकों में शामिल हैं जो इंटरनेट पर उग्र दक्षिणपंथी साइटों पर नजर रखने के अलावा रोजमर्रा और मीडिया में नस्लवाद जैसे मुद्दों पर लिखता है. इसे 2013 में यूजरों से सर्वाधिक वोटों से जर्मनी के सर्वोत्तम ब्लॉग का बॉब्स पुरस्कार दिया.

श्टाइनर का कहना है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उग्र दक्षिणपंथी पेजों का मकसद प्रचार है. इनके जरिए शरणार्थियों और आप्रवासियों पर हमले किए जाते हैं, यह आभास देने की कोशिश की जाती है कि इस तरह के मुद्दों के लिए लोगों के बीच बहुत ज्यादा समर्थन है. हालांकि इन मुद्दों के लिए सड़कों पर प्रदर्शन करने वाले लोगों की तादाद सोशल मीडिया साइटों पर इस तरह के पेजों को लाइक करने वालों की तुलना में काफी कम है.

जर्मनी में सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उग्र दक्षिणपंथी विचारों के प्रकाशन पर पिछले कई सालों से युगेंडशुत्स डॉट नेट की नजर है. यह बच्चों की सुरक्षा की सरकारी एजेंसी की मदद से चलाया जाता है. अपनी ताजा वार्षिक रिपोर्ट में उसने फेसबुक और यूट्यूब जैसी साइटों पर उग्र दक्षिणपंथियों की ऑनलाइन सक्रियता में भारी वृद्धि की शिकायत की है. दूसरे समुदायों के खिलाफ घृणा के प्रचार के लिए अक्सर चुटकुलों का सहारा लिया जाता है क्योंकि कुछ हद तक उन्हें संवैधानिक सुरक्षा मिली हुई है. दूसरी तरफ अमेरिका में इस तरह के कानून काफी ढीले हैं.

Screenshot Twitter Rassismus in sozialen Netzwerken
#यसयूआरेरेसिस्टतस्वीर: twitter.com

कानूनी असमंजस

यूगेंडशुत्स की क्रिस्टियाने श्नाइडर का कहना है कि फेसबुक या यूट्यूब जैसे अमेरिका स्थित कंपनियों को अक्सर यह समझाना काफी कठिन होता है कि समुदायों से घृणा वाले पेज को ब्लॉक कर दें. ज्यादातर सोशल नेटवर्किंग साइटों में इस बात की सुविधा है कि यूजर आपत्तिजनक साइटों की रिपोर्ट कर सकता है, लेकिन अक्सर आपत्तिजनक सामग्री पेज पर बनी रहती है. ऐसा एक मामला फ्रांस में 2012 में एक ट्विटर हैशटैग के साथ हुआ जिसकी वजह से यहूदी विरोधी मजाक शुरू हो गया. 10 अक्टूबर 2012 को उस हैशटैग को फ्रांस में सबसे ज्यादा ट्वीट किया गया था.

ट्विटर और फ्रांस के यहूदी छात्रों के संघ के बीच चले लंबे संघर्ष के बाद ट्विटर ने फ्रांसीसी अधिकारियों को उस व्यक्ति का नाम बताया जो उस हैशटैग के पीछे था. ग्रेगोरी पी. पर जनवरी 2014 में लोगों की भावनाएं उकसाने के आरोप में मुकदमा चला. वह पहला व्यक्ति है जिस पर फ्रांस में ट्विटर के जरिए घृणास्पद प्रचार के लिए आरोपपत्र दाखिल किया गया है. वह हैशटैग खत्म नहीं हुआ. हाल में उसे फिर से ट्रेंड किया गया. बहुत से यूजरों की दलील है कि यह उनके मजाक करने के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है. वे नस्लवादी इरादे से इंकार करते हैं.

नस्लवाद का विरोध

अमेरिका में अभिव्यक्ति की आजादी को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन ट्विटर के एक यूजर ने नस्लवादियों को सजा दिलवाने का अपना तरीका ढूंढ निकाला है. सोशल मीडिया एक्सपर्ट लोगान स्मिथ ने करीब डेढ़ साल पहले यसयूआरएरेसिस्ट अकाउंट खोला है. वे इसका इस्तेमाल उन पोस्टों को रिट्वीट करने के लिए करते हैं जो उनके विचार में नस्लवादी विचारों वाले हैं. स्मिथ कहते हैं, "मैं दिखाना चाहता हूं कि अमेरिका में रोजमर्रा में नस्लवाद कितना फैला हुआ है, खासकर नौजवानों में जबकि आप सोचेंगे कि वे सहिष्णु हैं."

जर्मनी में भी कुछ महीने पहले ब्लॉगरों ने ऐसी एक पहल की है, जिसका नाम है शाउहिन, यानि उसकी ओर देखो. ब्लॉगर कुबरा गुमुसाय कहती है, "जर्मनी में हम नस्लवाद की तभी बात करते हैं जब कोई हत्या होती है या किसी सर्वे का नतीजा जारी होता है." इस साइट की शुरुआत सेक्सिज्म के खिलाफ हुए एक सफल अभियान के बाद हुई. लेकिन इस अभियान की शुरुआती सफलता के बाद इसे नस्लवादियों ने हथिया लिया है और 80 फीसदी ट्वीट नस्लवादी होते हैं. गुमुसाय कहती हैं, "यह हार नहीं है, यह इस बात का सबूत है कि इंटरनेट कितना गंदा हो सकता है."

रिपोर्ट: ऐन लेतूज/एमजे

संपादन: आभा मोंढे