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सोशल मीडिया में घुसती पुलिस

१८ जुलाई २०१३

संवेदनशील मुद्दों पर जनता के विचारों को जानने समझने के लिए मुंबई पुलिस ने सोशल मीडिया लैब बनाया है. इसके तहत जनभावनाएं दिखाने वाले सोशल मीडिया वेबसाइटों पर नजर रखी जाएगी.

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तस्वीर: Reuters

भारतीय समाज में सोशल मीडिया के बढ़ते दायरे को देखते हुए मुंबई पुलिस की सोशल मीडिया लैब अब हर उस गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखेगी, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है. लैब में 20 लोगों की टीम रहेगी जो फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसी सोशल साइटों की गतिविधियों पर नजर रखेगी. यह आईटी क्षेत्र की औद्योगिक संस्था नासकॉम की तकनीकी मदद और ट्रेनिंग से तैयार हुआ है. इसके लिए एप्लीकेशन करने वाली कंपनी सोशलएप्सएचक्यू के सीईओ रजत गर्ग का कहना है कि "इससे देश या विदेश में हुई किसी बड़ी घटना के बाद लोगों की भावनाओं को परखने में मदद मिलेगी."

सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत

भारतीय समाज में सोशल मीडिया का दायरा अब काफी बढ़ चुका है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले फेसबुक पर सात करोड़ से अधिक भारतीय सक्रिय हैं. अन्ना हजारे का जनलोकपाल आन्दोलन हो या दिल्ली रेप कांड या मुंबई में हुआ तेजाब हमला - इन सभी मामलों में जनता ने बढ़ चढ़ कर सोशल मीडिया के जरिए भूमिका निभाई.

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तस्वीर: Imago

मुंबई के पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह भी सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत स्वीकार करते हैं, "अब सोशल मीडिया प्रिंट या टीवी मीडिया से ज्यादा ताकतवर हो गया है. एक मिनट में करीब एक लाख लोगों का ट्वीट संचार के इस नए माध्यम की महत्ता और उपयोगिता को दर्शाता है."

जनभावनाओं का विश्लेषण

गर्ग ने एप्लीकेशन की विशेषता बताते हुए कहा, "एप्लीकेशन सूचनाओं का संग्रह और उनका विश्लेषण करता है." उनका कहना है कि यह यूजर्स के व्यवहारों के प्रारूपों और उन्हें प्रभावित करने वाली वजहों की पहचान करता है, "अगर किसी मुद्दे पर चर्चा ज्यादा हो रही हो तो उसकी पहचान कर समय रहते सोशल मीडिया के मंचों पर अलर्ट जारी करता है."

मनोविज्ञान की प्रोफेसर डॉक्टर सरला द्विवेदी कहती हैं कि व्यवस्थित समाज और इसकी मनोदशा समझने के लिए इसके सदस्यों के विचारों का समय समय पर विश्लेषण जरूरी है, "व्यक्ति की सोच एवं निर्णय लेने की क्षमता समूह से प्रभावित होती है. व्यक्ति जाने अनजाने उस समूह के विचारों को आत्मसात कर लेता है, जिसका वह सदस्य है."

उनका कहना है, "ऐसा अन्ना के आन्दोलन के दौरान देखने को मिला था जब फेसबुक के जरिए एक बड़े वर्ग ने स्वयं को आन्दोलन से जोड़ लिया. अगर सोशल साइटों पर विचारों के प्रवाह का अध्ययन होता है तो पुलिस और सरकार को जन भावनाओं को समझने में आसानी होगी."

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तस्वीर: Reuters

क्यों उपयोगी है लैब?

दिल्ली रेप कांड के दौरान सोशल मीडिया को नजरअंदाज करने की वजह से दिल्ली पुलिस जनता के गुस्से को भांपने में नाकाम रही. इससे सबक लेते हुए मुंबई पुलिस ने नागरिकों की मनोदशा और भावनाओं को समझने के लिए सोशल मीडिया लैब तैयार किया है.

डॉक्टर द्विवेदी मुंबई पुलिस के इस कदम का स्वागत करते हुए कहती हैं, "सोशल मीडिया अपने आप में एक समाज है जिसके बारे में जानने समझने के लिए इसके साथ खड़ा होना जरूरी है. यह सस्ता और सुलभ होने के साथ ही एक ऐसा संचार माध्यम है जो तेजी से सन्देश फैलाता है."

मुंबई पुलिस का दावा है कि सोशल मीडिया लैब का उद्देश्य ऑनलाइन समाज के सदस्यों के जीवन में तांक झांक नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था के संभावित खतरों की पहचान करना है. पुलिस को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में शहर की कानून व्यवस्था में लैब की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

रिपोर्टः विश्वरत्न श्रीवास्तव, मुंबई

संपादनः अनवर जे अशरफ

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