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बर्लिन में मिली 'दो बहनें'

११ अप्रैल २०१४

म्यांमार में लोकतंत्र की प्रतीक आंग सान सू ची को बर्लिन में विली ब्रांट पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. मानवाधिकारों पर उनके काम, आजादी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए उन्हें ये अवॉर्ड दिया जा रहा है.

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तस्वीर: Reuters

म्यांमार की पहचान आंग सान सू ची दो दिन की जर्मनी यात्रा पर हैं. म्यांमार के लोकतंत्र की तरफ कदम बढ़ाने के बाद से यह सू ची की पहली बार बर्लिन पहुंची हैं. राष्ट्रपति योआखिम गाउक और चांसलर अंगेला मैर्केल से मिलने के बाद वे थोड़ी देर के लिए पत्रकारों से मिलीं. हालांकि इस मुलाकात के बाद कोई संवाददाता सम्मेलन नहीं रखा गया था. 68 वर्षीय सू ची ने मजाक करते हुए कहा, "मुलाकात का उद्देश्य निष्पक्ष रहना और पुरुषों का खूनी भाईचारा नहीं, बल्कि पुरुषों में सिस्टरहुड बढ़ाना था."

चांसलर मैर्केल ने म्यांमार की विपक्षी नेता रही सू ची की तारीफ करते हुए कहा, "वह नजरबंदी में काफी समय रहीं और उस कठिन समय में कभी अपने राजनीतिक आदर्श और दृढ़ विश्वास नहीं छोड़ा."

मैर्केल ने कहा कि वह म्यांमार के लोगों के लिए बेहतर भविष्य बनाने के लिए बातचीत करने को तत्पर हैं, "कैसे हम जर्मनी से वहां के विकास के लिए सक्रिय मदद कर सकते हैं."

विली ब्रांट पुरस्कार

1991 में नोबेल पुरस्कार विजेता का बर्लिन में राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने अपने निवास श्लॉस बेल्व्यू में स्वागत किया. उन्होंने राष्ट्रपति गाउक और जर्मनी की प्रथम महिला डानिएला शाड्ट के साथ खाना खाया.

आज सू ची को विली ब्रांट पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों के बीच समझ बढ़ाने की कोशिशों के लिए जर्मनी ने यह पुरस्कार पूर्व चांसलर विली ब्रांट के सम्मान में शुरू किया है.

एक दशक से भी ज्यादा का समय सू ची ने नजरबंदी में बिताया है. अब वह संसद की सदस्य हैं और 2015 में होने वाले चुनावों में वह राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी बशर्ते उनकी उम्मीदवारी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया जाए.

रोहिंग्या समस्या

पूर्व सैन्य जनरल थेइन सेइन के नेतृत्व वाली सिविल सरकार लोकतांत्रिक सुधारों की कोशिश में है, जिसका समर्थन अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित कई देश कर रहे हैं. इससे म्यांमार पर लगाए गए कई प्रतिबंधों में ढील दी गई है. हालांकि कुछ मामलों में प्रगति धीमी है.

अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाली हिंसा का म्यांमार और आंग सान सू ची किसी के पास कोई जवाब नहीं. म्यांमार के पश्चिमी राज्य राखीने में कई रोहिंग्या रहते हैं. वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों पर राखीन बौद्ध लोग हमला कर रहे हैं. इसी कारण राहत और बचाव कर्मी वहां से चले गए हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी डैनियल रसेल गुरुवार को म्यांमार में थेइन सेइन से मिले और राहत कर्मियों से तुरंत लौट आने की अपील की, खासकर डॉक्टर विदाउट बॉर्डर्स के चिकित्साकर्मियों और माल्टेजर इंटरनेशनल के सदस्यों से.

एएम/आईबी (एएफपी, डीपीए)