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वो अभागी नशे की दुनिया में खो गई

२ अप्रैल २०१२

मां की ममता साबित करने के लिए किसी मिसाल की जरूरत नहीं. वह अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करती. लेकिन अफगानिस्तान की कुछ महिलाएं अपने बच्चों से जबरन कूड़ा बिनवाती हैं, ताकि वे अफीम पी सकें. इसके लिए पुरुष भी जिम्मेदार.

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तस्वीर: AP

आसमानी बुर्के से अनीता चेहरा जब बाहर निकालती हैं तो आंखों के नीचे काले गड्ढे, गालों पर झुर्रियां और फटे हुए होंठ दिखाते हैं. उनकी आंखें नशीली हैं. वह अपने पेट को सहलाती हैं. अंदर कोख में सात महीने का बच्चा है.

32 साल की अनीता को अफीम की बुरी लत है, "मैं अपने बच्चे को छाती का दूध भी नहीं पिला सकती हूं. मुझे डर है कि कहीं उसे भी अफीम के नशे की लत न पड़ जाए."

बदहाल नशा मुक्ति केंद्र

अनीता अफगानिस्तान की उन 60,000 महिलाओं में है, जो नशे की आदी हो चुकी हैं. कई महिलाएं अब काबुल के नशा मुक्ति केंद्र में जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय मदद से यह नशा केंद्र पुराने मकान में चलता है. अनीता के मुताबिक यहां आने वाली महिलाएं अपने घरवालों से नशा मुक्ति केंद्र जाने की बात छिपाती हैं.

Frauen in Kandahar, Afghanistan
तस्वीर: DW

लेकिन यहां भी लाचार महिलाओं को कम ही सहारा मिल रहा है. आर्थिक तंगी की वजह से जरूरी दवाएं नहीं हैं. समाजसेवियों के मुताबिक मेथाडन जैसी आम दवा भी यहां नहीं है. रूढ़िवादी समाज भी परेशानियां खड़ी करता है. महिलाएं बताती हैं कि पुरुषों की इजाजत के बिना वे घर से बाहर नहीं निकल सकती हैं.

नशे की राह पर

अफगानिस्तान को नशे का गढ़ कहा जाता है. दुनिया की 90 फीसदी अफीम यहां पैदा होती है. अफीम से हेरोइन बनाई जाती है. तीन दशकों से हिंसा के थपेड़े झेल रहे देश में इन दिनों अफीम की खेती पहले से भी ज्यादा हो रही है. कई अफगान पुरुष शौक से और बिना भय के अफीम पीते हैं.

महिलाओं को नशे की गुफा में ढकेलने के लिए पुरुष प्रधान समाज की हरकतें भी जिम्मेदार है. अनीता कहती हैं, "मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली और मेरी अनदेखी करनी शुरू कर दी. मैं तभी अफीम शुरू की, अब मुझे इसकी लत पड़ गई है." पति को देखते देखते उन्हें भी अफीम की लत लग गई. महिलाओं को नशे की दुनिया से बाहर निकालने की कोशिश कर रही संस्था नेजात के मुताबिक करीब 60,000 महिलाएं हर दिन गैरकानूनी ड्रग्स लेती हैं. वे अफीम, हशीश और चरस पीती हैं. नेजात की निदेशक अरमान राउफी कहती हैं, "यह बात पुष्ट है कि बीते एक दशक में ड्रग्स लेने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है."

नशे का नशा

नशे की लत के आर्थिक पहलू भी हैं. अफीम पीने का खर्च प्रतिदिन करीब चार डॉलर है. एक ऐसे देश में जहां एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के है, वहां परिवार चलाने वाली कई महिलाएं नशे की जद में हैं. कई मामले ऐसे भी आए हैं जब महिलाएं अपने बच्चों को कूड़ा बीनने और बोतलें जमा करने को भेज रही हैं, ताकि वह अफीम खरीद सकें.

तीस साल की फौजिया इस बात से डरती हैं कि कहीं उनके पति या रिश्तेदार उन्हें रंगे हाथ अफीम पीते न पकड़ लें. समाजसेवी मानते हैं कि नशे और रूढ़िवादी समाज की पहरेदारी के बावजूद इन महिलाओं का किसी तरह नशा मुक्ति केंद्र यह साबित करता है कि इन्हें इस दलदल से निकलने के लिए सहारे की जरूरत है. फिलहाल जरूरत दवाइयों और आधुनिक सुविधाओं वाले कई नशा मुक्ति केंद्रों की है.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल

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