वतन वापस पहुंचा बेगुनाह किशोर
२६ अगस्त २००९जवाद ने देश वापस पहुंचने पर कहा है कि हिरासत के छह सालों में उसका शोषण और अपमान किया गया. वह गुआंतानामो पर क़ैद सबसे युवा बंदी था.
जवाद के वकील एरिक मोंताल्ज़ो का कहना है कि 2002 में जब उसे गिरफ़्तार किया गया था तो उसकी उम्र सिर्फ़ 12 साल थी. उसे पकड़ कर गुआंतानामो बंदी शिविर पर भेज दिया गया था. वकील का कहना है कि जवाद अब आज़ाद है और काबुल में अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहा है.
जवाद के वकील के विपरीत अमेरिकी रक्षा मंत्रालय का कहना है कि गिरफ़्तारी के समय उसकी उम्र 16 या 17 साल थी. काबुल स्थित एक मानवाधिकार संघर्षकर्ता ने भी गुमनाम रहने की शर्त पर कहा है कि गिरफ़्तारी के समय जवाद की उम्र 16-17 साल की थी. उस पर एक अमेरिकी सैनिक गाड़ी पर हथगोला फेंकने का आरोप था, जिसमें दो अमेरिकी सैनिक घायल हो गए थे.
पहले उसे पकड़कर बागराम हवाई अड्डे के हिरासत केंद्र में रखा गया और फिर 2003 में गुआंतानामो भेज दिया गया. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि जब उसे गुआंतानामो भेजा गया तो उसकी उम्र 18 साल थी. जवाद का कहना है, "उन्हें पता था कि मैं कमउम्र हूँ, लेकिन उन्हें मेरी उम्र की कोई परवाह नहीं थी."
जुलाई के अंत में अमेरिका की एक संघीय जज ने जवाद के ख़िलाफ़ कोई सबूत न होने की आलोचना की थी और उसे 24 अगस्त तक रिहा करने के आदेश दिए थे. 2008 में एक सैनिक अदालत ने भी जवाद के ख़िलाफ़ अधिकांश सबूतों को खारिज कर दिया था, क्योंकि उससे उत्पीड़न के ज़रिए गुनाह कबूल कराया गया था.
जवाद के चाचा गुल नाक ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा है, "हम अमेरिका से नाराज़ नहीं हैं. हमें खुशी है कि अमेरिकी सरकार ने कहा है कि वह बेकसूर है." गुल नाक का कहना है कि उसका भतीजा डॉक्टर बनना चाहता है.
गुआंतानामो में इस समय क़ैद 228 बंदियों में से 14 की संघीय अदालतों के आदेश पर रिहाई होने वाली है. उनमें से अधिकांश ऐसे किसी तीसरे देश के फ़ैसले का इंतज़ार कर रहे हैं जो उन्हें अपने यहां शरण देने को तैयार हो. उनके अलावा और दर्ज़नों बंदियों को भी रिहा किए जाने की संभावना है. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जनवरी 2010 तक गुआंतानामो के विवादास्पद बंदी शिविर को बंद करने के आदेश दिए हैं और उससे पहले सरकार सभी मामलों की समीक्षा कर रही है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: राम यादव