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विमान ढूंढने में रोबोट की मदद

१२ मार्च २०१४

लापता हुए मलेशियाई हवाई जहाज ने जांचकर्ताओं को हैरान कर दिया है. प्लेन या उसके मलबे का कहीं अता पता नहीं है. कई सैटेलाइटों और हाइटेक तकनीक के इस्तेमाल के बाद भी विमान की तलाश चारे में सुई ढूंढने जैसी साबित हो रही है.

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तस्वीर: AP

इतना बड़ा हवाई जहाज, लंबी दूरी की उड़ान भरता है और अचानक रडार से गायब हो जाता है. ऐसा कैसे संभव है? जर्मनी के व्यावसायिक पायलट और प्लेन इंजीनियरों के संघ के योर्ग हंडवैर्ग दलील देते हैं कि विमान के लापता होने का मतलब "ये नहीं है कि मशीन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है. लेकिन एक समय बाद उसे कहीं न कहीं दिखाई दे जाना चाहिए था." वह बताते हैं कि रडार सिस्टम विमान पर नजर रखने का अहम साधन है लेकिन दुनिया के हर हिस्से में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता." समंदर के ऊपर रडार की नजर नहीं रहती क्योंकि तकनीक का कवरेज सीमित है."

गायब हो जाते हैं विमान

हवा में विमान की जगह पता लगाने के लिए धरती से रडार सिगनल भेजे जाते हैं, और विमान इन्हें परावर्तित करते हैं. लेकिन पानी पर ऐसा करना संभव नहीं होता इसलिए जैसे ही समंदर के ऊपर विमान पहुंचता है, वह रडार मशीन से भी गायब हो जाता है. पायलट हंडवैर्ग कहते हैं, "जैसे ही तट के नजदीक प्लेन पहुंचता है वह फिर राडार पर दिखाई देने लगता है."

लेकिन ऐसा नहीं होता कि उड़ान भरने वाले सारे लोग गायब हो जाएं. जैसे ही वे समंदर पर 10 हजार मीटर ऊंचाई पर पहुंचते हैं, विमान से रेडियो संपर्क स्थापित हो जाता है. रडार के साथ ही विमान पर नजर रखने के लिए यह एक प्रणाली है. हंडवैर्ग ने बताया, "सामान्य तौर पर तय रूट पर ही विमान जाते हैं. ये हाइवे की तरह है. पहले से तय रूट के प्वाइंट होते हैं, जिनके बारे में एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों को लगातार बताया जाता है."

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एयर फ्रांस के दुर्घटनाग्रस्त विमान का ब्लैक बॉक्सतस्वीर: picture alliance / dpa

कहां हुआ क्रैश

दुर्घटना की स्थिति में, जब रडार और रेडियो सिगनल से संपर्क करना संभव नहीं होता, तब भी विमान की स्थिति का पता लगाया जा सकता है. दुनिया के अधिकतर हिस्सों में लोग रहते हैं, इसलिए किसी देश में हुई दुर्घटना का जल्द ही पता चल जाता है. इसके अलावा हर प्लेन में एक ब्लैक बॉक्स होता है, जिसमें विमान की हर गतिविधि की जानकारी होती है और दुर्घटना की स्थिति में इस ब्लैक बॉक्स से सिगनल भेजे जाते हैं. लेकिन हंडवैर्ग के मुताबिक "पानी के नीचे ब्लैक बॉक्स दूरी तक ये सिगनल नहीं भेज सकता. अगर समंदर के ऊपर हवाई जहाज का एक्सीडेंट होता है, तो सिगनल पानी के ऊपर नहीं पकड़े जा सकते."

लेकिन सोनार तकनीक से पानी पर जहाज ढूंढा जा सकता है. इसी तकनीक की मदद से 2009 में एक रोबोट ने पानी के नीचे से एयर फ्रांस का दुर्घटनाग्रस्त विमान ढूंढ निकाला था. लाइबनित्स समुद्री विज्ञान संस्थान के पेटर हैर्त्सिष और उनकी टीम ने कार्टोग्राफी के लिए ये रोबोट विकसित किया था. उन्हें उम्मीद थी कि इससे हवाई जहाज का भी पता लगाया जा सकता है. "इस तकनीक से पत्थर किसका बना है, इसका पता नहीं लगाया जा सकता लेकिन ध्वनि की तरंगों से पता चल सकता है कि परावर्तित करने वाली वस्तु नर्म है या कठोर. नर्म रिफ्लेक्टर यानि तलछटी जबकि ठोस रिफ्लेक्टर पत्थर या फिर धातु हो सकती है."

रिपोर्टः क्रिस्टोफ हार्टमन/एएम

संपादनः महेश झा

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