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यूं बने पंचम दा संगीतकार

२७ जून २०१४

हेलन पर फिल्माए गए कैबरे हों, या मुमताज पर फिल्माए रोमांटिक गीत या फिर राजेश खन्ना वाले दुख भरे गाने, इन सबको वजूद दिया पंचम दा के संगीत ने. आज वे 75 साल के होते.

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Rahul Dev Burman
तस्वीर: Wikipedia

बॉलीवुड में अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले महान संगीतकार आरडी बर्मन हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गानों की आवाज आज भी गूंजती हुई महसूस होती है. आरडी बर्मन का जन्म 27 जून 1939 को कलकत्ता में हुआ था. उनके पिता एसडी बर्मन जाने माने फिल्मी संगीतकार थे. घर में फिल्मी माहौल के कारण उनका भी रूझान संगीत की ओर हो गया और वह अपने पिता से संगीत की शिक्षा लेने लगे. उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद वादन की भी शिक्षा ली.

कैसे पड़ा नाम

फिल्म जगत में 'पंचम' के नाम से मशहूर आरडी बर्मन को यह नाम तब मिला जब उन्होंने अभिनेता अशोक कुमार को संगीत के पांच सुर सा-रे-गा-मा-पा गाकर सुनाया. नौ वर्ष की छोटी सी उम्र में पंचम दा ने अपनी पहली धुन 'ए मेरी टोपी पलट के आ' बनायी और बाद में उनके पिता सचिन देव बर्मन ने उसका इस्तेमाल 1956 में फिल्म 'फंटूश' में किया. इसके अलावा उनकी बनाई धुन 'सर जो तेरा चकराए' भी गुरूदत्त की फिल्म 'प्यासा' के लिए इस्तेमाल की गयी.

अपने सिने करियर की शुरूआत आरडी बर्मन ने अपने पिता के सहायक के तौर पर की. इनमें 1958 की फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' और 1959 की 'कागज के फूल' जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं. बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरूआत 1961 में महमूद की फिल्म 'छोटे नवाब' से की, लेकिन इस फिल्म के जरिए वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए.

पिता से छीना मौका

फिल्म 'छोटे नवाब' के लिए महमूद एसडी बर्मन को बतौर संगीतकार लेना चाहते थे. उनकी एसडी बर्मन से कोई खास जान पहचान नहीं थी. आरडी बर्मन चूंकि एसडी बर्मन के पुत्र थे, महमूद ने तय किया कि वह इस बारे में आरडी बर्मन से बात करेंगे. एक दिन वह आरडी बर्मन को अपनी कार में बैठाकर घुमाने निकल गए. सफर अच्छा बीते, इसलिए रास्ते में आरडी बर्मन अपना माउथ ऑरगन बजाने लगे. उनके धुन बनाने के अंदाज से महमूद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्म में एसडी को काम देने का इरादा त्याग दिया और पंचम दा को 'छोटे नवाब' में काम करने का मौका दे दिया.

इस बीच पिता के साथ आरडी बर्मन ने बतौर सहायक संगीतकार 'बंदिनी', 'तीन देवियां' और 'गाइड' जैसी फिल्मों के लिए भी संगीत दिया. 1965 में आई फिल्म 'भूत बंगला' से पंचम दा कुछ हद तक फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए. इस फिल्म का गाना 'आओ टि्वस्ट करें' श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ.

महबूबा महबूबा से बांधा समां

अपने वजूद को तलाशते आरडी बर्मन को लगभग दस साल तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा. 1966 में निर्माता निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्म 'तीसरी मंजिल' के सुपरहिट गाने 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा' और 'ओ हसीना जुल्फों वाली' जैसे सदाबहार गानों के जरिए वह बतौर संगीतकार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे.

1972 पंचम दा के सिने करियर का अहम पड़ाव साबित हुआ. इस साल 'सीता और गीता', 'मेरे जीवन साथी' 'बॉम्बे टू गोआ', 'परिचय' और 'जवानी दीवानी' जैसी कई फिल्मों में उनका संगीत छाया रहा. 1975 में रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म 'शोले' का गाना 'महबूबा महबूबा' गाकर पंचम दा ने अपना एक अलग समां बांधा. जबकि 'आंधी', 'दीवार', 'खूशबू' जैसी कई फिल्मों में उनके संगीत का जादू श्रोताओं के सर चढ़कर बोला.

आशा भोसले का साथ

संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके एक नई धुन तैयार करते थे. हांलाकि इसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हुआ करती थी. ऐसी धुनों को गाने के लिए उन्हें एक ऐसी आवाज की तलाश रहती थी जो उनके संगीत में रच बस जाए. यह आवाज उन्हें आशा भोंसले में मिली. फिल्म 'तीसरी मंजिल' के लिए आशा भोंसले ने 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा', 'ओ हसीना जुल्फों वाली' और 'ओ मेरे सोना रे सोना' जैसे गीत गाए. इन गानों के हिट होने के बाद आरडी बर्मन ने अपने गानों के लिए आशा को ही चुना. लंबे वक्त तक एक दूसरे का गीत संगीत में साथ निभाते निभाते दोनों जीवन भर के लिए एक दूसरे के हो गए और अपने सुपरहिट गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते रहे.

1985 में रिलीज हुई फिल्म 'सागर' की असफलता के बाद निर्माता निर्देशकों ने उनसे मुंह मोड़ लिया. इसके साथ ही उनको दूसरा झटका तब लगा जब निर्माता निर्देशक सुभाष घई ने फिल्म 'रामलखन' में उनके स्थान पर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को साइन कर लिया. लेकिन 'इजाजत', 'लिबास', 'परिंदा' और '1942 ए लव स्टोरी' में उनका संगीत काफी पसंद किया गया.

अमरीका में भी मशहूर

आरडी बर्मन ने लगगभ 300 हिन्दी फिल्मों के लिए संगीत दिया. हिन्दी फिल्मों के अलावा बंगला, तेलगु, तमिल, उड़िया और मराठी फिल्मों में भी अपने संगीत के जादू से उन्होंने श्रोताओं को मदहोश किया. पंचम दा को अपने सिने करियर में तीन बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इनमें 'सनम तेरी कसम', 'मासूम' और '1942 ए लव स्टोरी' शामिल हैं.

फिल्म संगीत के साथ साथ वह गैर फिल्मी संगीत से भी लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहे. अमरीका के मशहूर संगीतकार जोस फ्लोरेस के साथ उनकी एलबम 'पंटेरा' काफी लोकप्रिय रही. संगीत निर्देशन के अलावा पंचम दा ने कई फिल्मों के लिए अपनी आवाज भी दी. बहुमुखी प्रतिभा के धनी आरडी बर्मन ने 'भूत बंगला' और 'प्यार का मौसम' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से भी दर्शकों को अपना दीवाना बनाया.

चार दशक तक मधुर संगीत लहरियों से लोगों को भावविभोर करने वाले पंचम दा 4 जनवरी, 1994 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.

आईबी/एमजे (वार्ता)

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