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मोजे की दुर्गंध से मच्छर मारो

१४ जुलाई २०११

गंदे मोजों से फैलने वाली असहनीय दुर्गंध अक्सर लोगों को परेशान करती है. लेकिन यह दुर्गंध गरीब देशों के लोगों को मलेरिया से बचा सकती है. शोध में पता चला है कि जुराब की बास से मच्छर आर्कषित होते हैं फिर मारे जाते है.

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तस्वीर: Fotolia/PeJo

अफ्रीका में शोध कर रहे एक रिसर्चर के मुताबिक गंदे मोजों की दुर्गंध से मच्छर भ्रमित हो जाते हैं. खून चूसने के लिए बेताब मिनमिनाते मच्छर मोजों की दुर्गंध को इंसान से जोड़ते हैं. उन्हें लगता है कि जहां से बदबू फैल रही है वहां इंसान है. खून चूसने की कोशिश में वह गंदे मोजे पर डंक गड़ाते हैं और मारे जाते हैं.

अमेरिका और कनाडा की आर्थिक मदद से इस शोध में जुटे डॉक्टर फ्रेड्रोस ओकुमु के मुताबिक परीक्षणों से यह बात साबित भी हो गई है. तंजानिया के इफाराका हेल्थ इंस्टीट्यूट में रिसर्च के दौरान पहले ओकुमु ने पाया कि मच्छर गंदे मोजों की वजह से बदबू फैलाते पैरों की तरफ ज्यादा आर्कषित होते हैं.

ओकुमु कहते हैं, "पहले प्रयोग में हमने देखा कि जिस घर में मोजों की दुर्गंध थी उसकी तरफ मच्छर चार गुणा ज्यादा आर्कषित हुए. मच्छरों ने जब गंदे मोजों में बैठकर खून चूसने की कोशिश की तो वे मारे गए. दरअसल मच्छर जब ऐसे दुर्गंध वाले परिसर से गुजरते हैं तो उन्हें एहसास होता है कि यहां शायद इंसान हैं. वह इंसान या गंध वाली जगह पर काटने की कोशिश करते हैं. लेकिन खून की जगह उन्हें मौत मिलती है."

Eine Stechmücke «Anopheles quadrimaculatus», die Malaria übertragen kann, auf der menschlichen Haut (undatiertes Archivfoto). Temperaturanstiege durch den Klimawandel lassen einer Untersuchung amerikanischer, britischer und niederländischer Wissenschaftler zufolge auch die Zahl der Malariafälle in bisher als sicher geltenden Hochlandregionen steigen. Für ihren am Mittwoch im Royal Society Journal veröffentlichten Artikel untersuchten die Wissenschaftler Temperaturentwicklungen und Krankheitsfälle in Teeplantagen bei Kericho, einer Hochlandregion im westlichen Kenia. Foto: EPA/U.S. Centers for Disease Control and Prevention (ACHTUNG: Sperrfrist 10. November 00.01 GMT; zu dpa-KORR: «Mehr Malaria in Hochlandregionen - Auswirkungen von Klimawandel?») +++(c) dpa - Bildfunk+++
तस्वीर: picture alliance/dpa

वैज्ञानिक बिरादरी ओकुमु के रिसर्च से उत्साहित है. यही वजह है कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और कनाडा के एक एनजीओ ने इस रिसर्च के लिए ओकुमु को 7,75,000 डॉलर की वित्तीय मदद दी है. कनाडाई एनजीओ ग्रैंड चैलेंज के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर पीटर सिंगर कहते हैं, "हम इस उत्साही विचार से आर्कषित हुए हैं. यह मौलिक और आविष्कार को जन्म देने वाला है. यह किसने सोचा था कि मोजों की दुर्गंध से जीवन रक्षक तकनीक पैदा होगी."

ओकुमु एक ऐसा यंत्र बना रहे हैं जो गंदे मोजों जैसी दुर्गंध पैदा करेगा. शुरुआती चरण में इस सस्ते यंत्र को तंजानिया के कई घरों में लगाया जाएगा.

इस खोज को मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में एक बड़े हथियार के रूप में देखा जा रहा है. 2009 में ही मलेरिया ने दुनिया भर में 7, 81,000 लोगों की जान ली. अफ्रीका में हर साल मलेरिया की वजह से मरने वालों में 92 फीसदी संख्या पांच साल से कम उम्र के बच्चों की होती है. गरीबी और पिछड़ेपन की वजह से कई अफ्रीकी देशों में मच्छर मारने वाले उपकरण या 'कछुआ छाप' किस्म के उत्पाद तक नहीं हैं.

रिपोर्ट: एएफपी/ओ सिंह

संपादन: ईशा भाटिया

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