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'मैं मलाला हूं'

८ अक्टूबर २०१३

"मेरे दोस्तों ने कहा कि उसने एक के बाद एक तीन गोलियां मारी. जब तक हम अस्पताल पहुंचे मेरा सिर और मोनीबा की गोद खून से भर चुकी थी," मलाला युसुफजई के नोबेल शांति विजेता बनने की अटकलों के बीच ही उसकी आत्मकथा भी छप गई है.

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तस्वीर: Reuters

मलाला ने इस किताब में उन पलों का जिक्र किया है जब लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रचार करने के कारण तालिबान ने उसे गोली मारी. ब्रिटिश पत्रकार क्रिस्टीना लैम्ब के साथ मिल कर लिखी किताब, "आई एम मलालाः हू स्टूड अप फॉर एजुकेशन एंड वाज शॉट बाइ द तालिबान" मंगलवार को यह किताब बाजार में आ गई. यह किताब 16 साल की उस बच्ची का खौफ बयान करती है, जब दो बंदूकधारी स्कूल बस में सवार हुए और उसके सिर में गोली मारी. यह घटना 9 अक्टूबर 2012 को हुई थी, ठीक एक साल पहले. मलाला ने लिखा है, यह किताब बीते दशक के मध्य में तालिबान के क्रूर शासन वाले उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी में मलाला की जिंदगी बयान करती है. इसके साथ ही उसके पिता के इस्लामी कट्टरपंथ के साथ संक्षिप्त संबंधों का भी जिक्र किताब में है. ऐसे संकेत भी हैं कि मलाला पाकिस्तान की राजनीति में सक्रिय होने का लक्ष्य बना रही है.

Malala Yousafzai bekommt den internationalen Kinderfriedenspreis
तस्वीर: imago/Xinhua

मलाला फिलहाल ब्रिटेन के बर्मिंघम शहर में रहती है. गोलीबारी के तुरंत बाद उसे खास इलाज के लिए यहां लाया गया. उसने अपने घर से दूरी और इंगलैंड में खुद को ढालने की तकलीफ का भी ब्यौरा दिया है. क्लास में टॉप करना पसंद करने वाली मेधावी मलाला की किताब बताती है कि वह कनाडाई पॉप गायक जस्टीन बीबर और वैम्पायर के रोमांटिक उपन्यासों की सीरीज "ट्वाइलाइट" की जबर्दस्त फैन हैं.

मलाला पाकिस्तान में लड़कियों की स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देने के अभियान में शामिल हो कर खूब चर्चित हो गई. तालिबान ने 2007 में उनके स्कूल पर कब्जा कर लिया था. मलाला ने स्थानीय स्कूलों पर बमबारी करने और महिलाओं की शिक्षा पर रोक लगाने के खिलाफ आवाज उठाई. किताब में मलाला ने यह भी बयान किया है कि गोली मारने के कई महीने पहले से ही उसे धमकियां मिल रहीं थीं. मलाला ने लिखा है, "रात को मैं तब तक इंतजार करती जब तक कि सारे सो न जाएं, उसके बाद में हर दरवाजा और खिड़की चेक करती. मैं नहीं जानती क्यों, लेकिन मैं निशाने पर हूं यह जानने के बाद भी मुझे डर नहीं लगा. मुझे ऐसा लगता कि हर कोई जानता है कि मुझे एक दिन मरना है. इसलिए मुझे वो करना चाहिए जो मैं चाहती हूं."

Die pakistianische Kinderrechtsaktivistin Malala Yousafzai
तस्वीर: Getty Images/Afp/Quique Garcia

किताब में लोगों को तालिबान के हाथों सार्वजनिक रूप से सजा देने का भी जिक्र है. टेलीविजन, डांस और संगीत पर तालिबान ने रोक लगा रखी थी. इसके बाद 2009 में लाखों लोगों के साथ उसके परिवार ने भी इलाके से भागने का फैसला किया. चरमपंथियों और पाकिस्तानी सेना के बीच जबर्दस्त लड़ाई के दौरान 10 लाख से ज्यादा लोग वहां से भागे.

किताब में आगे उसकी जिंदगी बचाने के लिए डॉक्टरों की आपाधापी और इसी बीच घर से मीलों दूर जागने की दास्तान है. किताब में मलाला के पिता जियाउद्दीन युसुफजई की भी खूब तारीफ है और बताया गया है कि उन्होंने खुद का स्कूल खड़ा करने के लिए काम किया और तालिबान के खिलाफ बोल कर अपनी जिंदगी खतरे में डाली. मलाला ने इस आलोचना को बड़ी नाराजगी के साथ खारिज किया है कि उसके पिता ने उसे अपने साथ अभियान में जोड़ा, "जैसे कि टेनिस पिता एक चैम्पियन बनाने की कोशिश में हों" या फिर उनका इस्तेमाल भोंपू की तरह किया गया हो और, "मेरे पास अपना दिमाग ही नहीं." मलाला ने यह माना है कि उनके पिता की तरह उनकी भी घर पर काफी आलोचना हुई और बहुत से लोग मानते थे कि वह पश्चिमी देशों की कठपुतली हैं.

मलाला ने बर्मिंघम की जिंदगी में खुद को ढालने के संघर्ष का भी जिक्र किया है. नए दोस्त बनाने से लेकर कॉफी शॉप और दूसरी जगहों पर लड़के लड़कियों को आसानी के साथ घुलते मिलते देखना भी उसे हैरान करने वाला रहा. वह स्काइप का इस्तेमाल कर स्वात घाटी के अपने दोस्तों के साथ अब भी घंटों बात करती है. हालांकि उसे अब इंग्लैंड की जिंदगी भी अच्छी लगने लगी है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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