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मानवाधिकारों की खिल्ली उड़ाती दुनिया

९ दिसम्बर २०११

मानवाधिकार दिवस. भाषण देने और लेख लिखने के लिए यह बहुत उम्दा विषय है. लेकिन मंगल ग्रह पर पहुंचता इंसान धरती पर मानवाधिकार के मुद्दों पर हर दिन छटपटा रहा है. पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक हालत संतोषजनक नहीं है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa Fotografia

अरब देशों की जनता लोकतंत्र के लिए छटपटा रही है. सीरिया में आए दिन सुरक्षा बलों की गोलियां लोकतंत्र समर्थकों का सीना चीर रही हैं. राष्ट्रपति बशर अल असद हैं कि झुकने को तैयार नहीं. शुक्रवार को भी कई शहरों में आम लोगों पर फायरिंग की. कम से कम 10 लोग मारे गए, जिनमें चार बच्चे भी थे. अब तक 4,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.

ट्यूनीशिया, मिस्र और लीबिया में सत्ता परिवर्तन तो हो चुका है पर मानवाधिकारों के मुद्दे जस के तस हैं. लीबिया में अफ्रीकी मूल के लोगों को बिना मुकदमों के सिर्फ शक के आधार पर कैद किया गया है. खुद को अरब क्रांति से दूर देखने और संभ्रांत मानने वाले खाड़ी के देशों में भी मानवाधिकार कराह रहे हैं. सऊदी अरब जैसे देश में आंख के बदले आंख जैसा कानून है. महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं है. कोड़े मारने की खबरें तो आए दिन मिलती रहती हैं.

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यमन में अधिकारों के लिए लड़ रही महिलाएंतस्वीर: DW

हंगामा है बरपा

भारी हंगामे के बावजूद पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून है. दूसरे धर्मों के लोगों की हत्याएं होती हैं. कभी सेना के जवान जान की भीख मांगते निहत्थे नौजवान को बर्बर तरीके से गोली मारते हैं तो जेहाद के नाम पर आम लोग आतंकी हमलों का शिकार बनते रहते हैं.

आर्थिक रूप से दुनिया पर राज करने जा रहे भारत और चीन जैसे देशों में भी मानवाधिकारों की हालत बुरी है. भारत भ्रष्टाचार से जूझ रहा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं को इसके खिलाफ धरने पर बैठना पड़ रहा है. सरकार चाहती है कि इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग साइट्स उसके इशारे पर चलें. भारत लंबी मुकदमेबाजी के लिए बदनाम है. कई मामलों में दशकों बाद मिलने वाला आधा न्याय क्या मानवाधिकार का हनन नहीं है. एक तरफ कुबेर के खजाने हैं तो दूसरी तरफ मानवाधिकारों की खिल्ली उड़ाती महंगाई, बेरोजगारी और कानून व्यवस्था.

Nuremberg International Human Righst Film Festival
बहस जारी हैतस्वीर: DW

चरमराता चीन

चीन की हालत और खराब है. एक पार्टी शासन के चलते वहां लोकतंत्र के नाम का पोस्टर भी नहीं दिखता. वाई वाई जैसे कलाकारों को जब तक जेल भेज दिया जाता है. मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले एक दृष्टिहीन कार्यकर्ता अब भी घर में नजरबंद हैं. तिब्बत के मुद्दे पर हो रहे आत्मदाहों को चीन मानवाधिकार की परिभाषा में नहीं लाता. उईगुर के निवासियो को बीजिंग शक की नजर से देखता है.

कई अफ्रीकी देशों में बच्चे और लोग भुखमरी का शिकार हैं. दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है. रवांडा, यूगांडा, इरीट्रिया और इथोपिया जैसे देशों में बच्चे भुखमरी से मर रहे हैं. जो बच भी रहे हैं वे कुपोषण के शिकार बन रहे हैं. जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों ने मानवाधिकारों के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. साफ पानी भी मानावाधिकार है, लेकिन मौसम के बदलते मिजाज से अफ्रीका का गला सूख रहा है.

उगते सूरज को सलाम

एशिया तेजी से विकास करता बाजार है, लिहाजा सबकी नजर एशिया पर है. अफ्रीका की चिंता किसे है. संयुक्त राष्ट्र के कई संस्थानों को हर साल कुछ पैसा देने के अलावा दुनिया के बड़े देश सिर्फ इस बात में दिलचस्पी लेते हैं कि अफ्रीका में तेल या खनिज मिल जाएं. रोजगार के नाम पर कॉन्ट्रैक्ट हैं, जिनमें श्रम कानूनों को हाशिये पर रखा जाने लगा है.

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइटस वॉच रोजगार को भी मानवाधिकार की श्रेणी में रखता है. इस मामले में बेरोजगारी विकसित देशों को चिढ़ाती है. बढ़ती आर्थिक असमानता लोगों को कब्जा करो जैसे प्रदर्शनों के लिए उकसा रही है. विकसित देशों में मानवाधिकारों की स्थिति भले ही कुछ बेहतर हो लेकिन इन देशों की दिग्गज कंपनियों पर अक्सर दाग लगते रहते हैं. आरोप लगते हैं कि वह दूसरे देशों में अपने हिसाब से श्रम कानून में बदलाव करती हैं और मानवाधिकारों को अपनी जेब में रखने की कोशिश करती हैं.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ए जमाल

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