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महिला आरक्षण पर जर्मन मीडिया की नज़र

संकलनः प्रिया एसेलबॉर्न (संपादनः ए जमाल)१२ मार्च २०१०

महिला आरक्षण विधेयक और हॉकी वर्ल्ड कप की खबरों पर जर्मन मीडिया ने लगातार नज़र रखीं. संसद में महिला आरक्षण पर जो हंगामा हुआ, उसकी रिपोर्टिंग भी ख़ूब हुई. कुछ अख़बार कहते हैं कि हॉकी वर्ल्ड कप कॉमनवेल्थ गेम्स के टेस्ट हैं.

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तस्वीर: UNI

जर्मन अख़बारों में इस हफ्ते भारत में महिला आरक्षण विधेयक ही छाया रहा. बर्लिन के दैनिक टागेस साइटुंग का कहना है कि महिलाओं को संसद में 33 फीसदी आरक्षण देने का फैसला बहुत अच्छा कदम है, लेकिन महिलाओं के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है. अख़बार कहता हैः

"महिलाओं को सिर्फ 33 प्रतिशत आरक्षण देना ही उनके लिए एक संपूर्ण नीति बनाने की जगह नहीं ले सकता है. भारत की लोकसभा में इस वक्त 545 सांसदों में से सिर्फ 59 महिलाएं हैं, राज्यसभा में 248 में सिर्फ़ 21. इसलिए संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी का आरक्षण बहुत अच्छी बात है. लेकिन भारत में ऐसी बातें भी हो रही हैं, जिन्हें समझना मुश्किल है. जैसे परमाणु शक्ति संपन्न भारत में बच्चों को जन्म देते वक्त दम तोड़ देने वाली महिलाओं की संख्या श्रीलंका के मुक़ाबले पांच से 10 गुना ज़्यादा है."

Indien Parlament Frauenrechte März 2010
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संसद में महिला आरक्षण बिल पर कई बार वोटिंग स्थगित करनी पड़ी क्योंकि मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद जैसे सांसदों ने हंगामा किया था. वे खुद को पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि समझते हैं. बर्लिन के बर्लिनर साइटुंग का कहना हैः

"भारत में 33 करोड महिला वोटर हैं, इसलिए कोई भी नेता उनके खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाएगा. लेकिन यह पार्टियां पिछड़ी हुई जातियों को अपना वोटर समझ रहे हैं. और इसलिए उनके लिए महिला अधिकार उतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है. इसे देखते हुए दोनों सांसद मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद महिलाओं के कोटे के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठा रहे हैं, बल्कि तर्क यह दे रहे हैं कि पिछड़ी जातियों को भी ध्यान में रखना चाहिए."

समाजवादी अख़बार नोएस डॉयचलैंड का कहना है कि आरक्षण बिल यदि लागू हो जाएगा, तब भारत में समान अधिकार पाने के लिए बड़ी बाधा पार हो जाएगी. समाचारपत्र के अनुसारः

Neu Delhi Hockey Weltcup
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"महिलाओं को आरक्षण देने के साथ भारत में राजनीति के खेल में नियम बदल जाएंगे. महिलाओं को नए अवसर मिलेंगे कि राजनीतिक फैसलों को लेकर उनकी बात सुनी जाए. शायद उनकी आर्थिक और सामाजिक हिस्सेदारी भी बढ़ सकती है जिसके ज़रिए वह अपने हितों को आगे बढ़ा पाएंगी."

और अंत में हॉकी विश्व कप की बात. जर्मनी के सबसे मशहूर दैनिकों में से एक म्यूनिख के सुड डॉयचे साइटुंग का कहना है कि हॉकी विश्व कप भारत में कुछ ही महीनों बाद होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों के लिए परीक्षा हैं जो 30 साल का भारत का सबसे अहम खेल आयोजन होगा. अखबार ने लिखा हैः

"भारत खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहता है और किसी आतंकवादी हमले की वजह से सुर्खियों में नहीं आना चाहता है. इसलिए कई मैचों पर तो फैन्स के बदले ज़्यादा सुरक्षाकर्मी स्टेडियम में मौजूद थे. सिर्फ़ भारत की टीम को देखने के लिए स्टेडियम हमेशा भरा था. पहले मैच में भारत ने अपने प्रतिस्पर्धी पाकिस्तान को हराया, जो एक ज़माने में बडी हॉकी शक्ति माने जाने वाले भारत की आत्मा के लिए सकून था. इस बीच भारत में सिर्फ क्रिकेट ही छाया हुआ है. हॉकी फेडरेशन के भीतर काफी विवाद चल रहे हैं, तो कभी खिलाड़ी हड़ताल कर देते हैं. इस विश्व कप में भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखते हुए हॉकी की लोकप्रियता में बदलाव नहीं आने वाला है. पहला मैच जीतने के बाद भारत एक के बाद एक मैच हारता चला गया."