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बुद्ध की जन्मतिथि का राज

Anwar Jamal Ashraf७ जनवरी २०१४

नेपाल के लुम्बिनी में ऐसे सबूत मिल रहे हैं, जो महात्मा बुद्ध की जन्मतिथि पर चौंकाने वाले तथ्य सामने ला सकते हैं. लुम्बिनी में ही बुद्ध का जन्म हुआ था.

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तस्वीर: Imago

शांत माहौल में पुरातत्वविदों का काम चल रहा है और पास में ही बौद्ध भिक्षुओं की प्रार्थना. रिसर्चरों का दावा है कि बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में ईसा से छह शताब्दी पहले हुआ. यानी मौजूदा मान्यता से करीब 200 साल पहले.

नेपाल के वरिष्ठ पुरातत्वविद कोष प्रसाद आचार्य ने 1990 से पहले लुम्बिनी में खनन का काम किया. उस वक्त नेपाल में राजशाही थी और माओवादी मुहिम की शुरुआत भी नहीं हुई थी. प्रोजेक्ट तो 1996 में पूरा हो गया लेकिन आचार्य को इसके नतीजों से संतुष्टि नहीं थी.

आचार्य का कहना है, "मेरे विचार से वहां कुछ बड़ा सांस्कृतिक खजाना था, जिसे हम हासिल नहीं कर पाए." आचार्य प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद राजधानी काठमांडू लौट आए और रिटायर होने तक अपना सरकारी काम करते रहे.

कैसे मिली लुम्बिनी

बुद्ध की जन्मस्थली बीच में खो सी गई थी, जब वहां जंगल और विशाल वृक्ष उग आए थे. इसे 1896 में दोबारा खोजा गया. वहां मौजूद ईसा पूर्व तीसरी सदी के एक खंभे ने इतिहासकारों का काम आसान किया. इसके बाद से यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित कर दिया है. हर साल लाखों बौद्ध अनुयायी यहां आते हैं. आने वाले दशकों में उनकी संख्या और बढ़ सकती है.

अब 62 साल के हो चुके आचार्य नेपाल के पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक पद से रिटायर हो चुके हैं. यूनेस्को ने उनसे कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र के प्रोजेक्ट का संयुक्त रूप से निदेशन करें. यह प्रोजेक्ट लुम्बिनी की बुनियाद पर आधारित है. यूनेस्को ने आचार्य और उनके पुराने साथी ब्रिटेन के पुरातत्वविद रॉबिन कनिंघम से कहा है कि वे एक टीम की अगुवाई करें.

महान पल

कनिंघम ने बताया, "हमारे लिए महान पल 2011 में उस वक्त आया, जब हमें वहां अशोक मंदिरों के नीचे एक किस्म के गड्ढे के पास ईंटों से बना मंदिर मिला. तब हमें समझ आ गया कि यहां अभी बहुत कुछ करना बाकी है." इसके बाद दो साल तक पुरातत्वविदों, भूगर्भशास्त्रियों और नेपाल तथा ब्रिटेन के लोगों की मदद से वहां खुदाई की गई. इस दौरान ध्यान कर रहे भिक्षु और भिक्षुणियां भी मौजूद रहीं.

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तस्वीर: DW/N. Martin

खुदाई के दौरान इलाके के माहौल ने कोष प्रसाद आचार्य को बहुत प्रभावित किया. उनका कहना है, "यह अद्भुत अनुभूति थी कि जिस वक्त इस पवित्र जगह पर खुदाई चल रही थी, वहां भिक्षुओं का ध्यान और पूजा चल रहा था." उन्होंने हर साल कुछ हफ्तों तक खुदाई की और नमूनों को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा गया. इस जगह पर जमा किए गए रेत और चारकोल के नमूनों की रेडियोकार्बन डेटिंग से जांच की जा रही है, ताकि उनके अस्तित्व में आने के सही वक्त का पता लग सके.

आस्था के प्रतीक

पुरातत्वविदों को वहां मंदिर के नीचे खुले गड्ढे में ईंटों के बीच कुछ छेद भी मिले, जो शायद खंभों को टिकाने के लिए तैयार किए गए थे. कनिंघम का कहना है, "इन छेदों से पता चलता है कि जिसने भी ईंटों का मंदिर तैयार किया, उसने उसके नीचे के पवित्र ढांचे का एहतियात किया. इसका मतलब कि यह जगह हमेशा से पवित्र रही है." ईंट के ढांचे के नीचे की वस्तुओं की प्रयोगशाला जांच में एक वृक्ष की जड़ें मिली हैं. हो सकता है कि यह सागवान का पेड़ हो. बौद्धों का एक बड़ा तबका मानता है कि इसी पेड़ के नीचे महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ.

नवंबर में इस बात का पता चलने के बाद लोग उत्साहित हो गए लेकिन इतिहासकारों ने सावधानी बरतने की हिदायत दी है. उनका कहना है कि ऐसा भी हो सकता है कि यह वृक्ष बुद्ध से भी पहले का हो. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की लेक्चरर जूलिया शॉ का कहना है, "प्राचीन भारतीय सभ्यता में वृक्षों की उपासना एक सहज प्रथा थी. इस बात की संभावना है कि यह वृक्ष ऐसा हो, जो सीधे तौर पर बुद्ध की ऐतिहासिक उपासना से जुड़ी न हो."

हालांकि कनिंघम का कहना है कि अगर यह वृक्ष बौद्ध धर्म से जुड़ा न होता, तो बौद्ध अनुयायी इसकी इतनी परवाह नहीं करते और यह इतने लंबे समय तक हानिरहित संजो कर न रखा गया होता, "इसके अलावा बोधगया में भी वृक्षों की उपासना की संस्कृति का उल्लेख है. इस प्रकार यह सब एक दूसरे से क्रमबद्ध जुड़े हैं."

बुद्ध के बारे में जितनी जानकारी है, उनमें से अधिकतर मौखिक है. सबसे पुराना लिखित रिकॉर्ड भारतीय सम्राट अशोक के काल का है, जो ईसा पूर्व 250 का समय था. इस खनन से पहले ज्यादातर रिसर्चरों का दावा था कि ईसा का जीवनकाल ईसा पूर्व चौथी सदी में था. विश्व को अहिंसा का पहला पाठ पढ़ाने वाले बुद्ध के दुनिया भर में 50 करोड़ से ज्यादा अनुयायी हैं. हालांकि नेपाल और श्रीलंका के बौद्धों का हमेशा से मानना रहा है कि बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 623 में हुआ, जो इस रिसर्च के बाद सही प्रतीत होता दिख रहा है.

कनिंघम का कहना है, "यह एक महान पहेली है, जिसमें मौखिक अवधारणाओं का योगदान है. यह अद्भुत संयोग का काल है, जहां परंपरा, आस्था और पुरातत्व एक साथ जमा हुए हैं."

एजेए/एमजे (एएफपी)

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