1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बदायूं कांड और सामाजिक तानाबाना

Anwar Jamal Ashraf२ जून २०१४

बदायूं कांड के पांच दिन बाद यह खबर समाचारपत्रों के पहले पन्ने से गायब होती जा रही है. केंद्र सरकार ने कुछेक कदमों का एलान किया है लेकिन मोटे तौर पर भारत में यथास्थिति बनी हुई है.

https://p.dw.com/p/1CARU
तस्वीर: Reuters

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी यथास्थिति को बदलने की है. उन्होंने कांग्रेस की अकर्मण्यता को चुनाव प्रचार में निशाना भी बनाया लेकिन उनके शपथ ग्रहण के पहले ही हफ्ते हुए इस कांड पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई और न ही प्रधानमंत्री की तरफ से कोई बयान आया है. ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया प्रमुख मीनाक्षी गांगुली का कहना है, "जब इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो लोगों में गुस्सा भरता है. ऐसा ही 2012 के दिल्ली वाले मामले में भी हुआ. इसके बाद राज्य इस पर प्रतिक्रिया देता है. लेकिन इस बार ऐसा भी नहीं हुआ."

जात पात में फंसी व्यवस्था

बदायूं में पिछले हफ्ते दो दलित बच्चियों की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. इस मामले में जिन पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें से चार यादव जाति के हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मामले की सीबीआई जांच की बात कही है. महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन का कहना है, "इस मामले में जाति प्रथा खुल कर सामने आती है. इससे आतंक होता है."

भारत में बार बार छूआछूत और जाति प्रथा को खत्म करने की बात कही जाती है लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है. आलोचकों का कहना है कि सत्ता पक्ष भी किसी तरह जाति के जंजाल में फंस जाता है. प्रधानमंत्री मोदी के कैबिनेट में भी दो तिहाई लोग हिन्दुओं के तथाकथित ऊंची जाति से आते हैं. ऐसे में नई सरकार जाति व्यवस्था पर कोई खास काम कर पाएगी, आसान नहीं दिखता.

जाति पूछ कर न्याय

दो बच्चियां जब खुले में शौच के लिए गईं, तो अचानक चीख पड़ीं. उनके चाचा उन्हें ढूंढने निकले. टॉर्च की रोशनी में उन्हें चार लोग दिखे, जिनमें से एक के पास तमंचा था और वह जिसे पहचानते थे. चाचा भाग कर अपने भाई के साथ पुलिस के पास गए और शिकायत की.

Symbolbild Gewalt gegen Frauen in Indien
तस्वीर: picture alliance/Dinodia Photo Library

पुलिस ने पहले उस शख्स की जात पूछी. एक बच्ची के चाचा का दावा है कि जब उन्होंने पुलिस से तमंचे वाले शख्स का जिक्र किया, तो पुलिस ने कहा कि वह एक "ईमानदार" आदमी है और उसके खिलाफ मामला दर्ज नहीं होगा. एक बच्ची के पिता कहते हैं, "मैं पुलिसवालों के पैरों पर गिर पड़ा." लेकिन इसके बदले में पुलिस ने चांटा जड़ दिया. उनसे कहा गया कि "बच्चियां दो तीन घंटे में घर पहुंच जाएंगी".

कटरा सआदतगंज के पड़ोसी इलाके के सुरेंद्र शाख्य का कहना है कि यादवों को पुलिस से सुरक्षा मिलती है, "सिर्फ पुलिस ही नहीं, राजनीतिक पार्टियों से भी." उनका दावा है कि यादव लोग उनके खेतों से कई बार चोरी भी कर लेते हैं. पांचों संदिग्धों को बदायूं के जेल में रखा गया है और उनके पास वकील भी नहीं है. उनके परिवार घर बार छोड़ कर भाग गए हैं.

लड़के तो लड़के हैं

बदायूं में यादवों का अच्छा प्रभाव है और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एक रिश्तेदार यहां के लोकसभा चुनाव में जीत कर आए हैं. अखिलेश यादव के पिता और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने हाल में कहा था, "लड़के तो लड़के हैं. वे गलती करते हैं. क्या रेप के लिए उन्हें फांसी चढ़ा देना चाहिए?" उनके इस बयान पर खूब हंगामा हुआ था.

कटरा सआदतगंज के आस पास के लोगों का कहना है कि ऐसे अपराध के बाद कोई सजा नहीं मिलती. पड़ोसी गांव की सुखदेवी पूछती हैं, "मेरी बेटी का क्या होगा." उनकी 13 साल की बेटी फरवरी में लापता हो गई, जिसके बाद से उसके बारे में कोई सूचना नहीं है. उसके बारे में बताते हुए सुख देवी रुंआसी हो जाती हैं, "उसे मैंने पैदा किया, उसे पाला पोसा. हम गरीब हैं तो हमारे साथ ऐसा होता है."

उत्तर प्रदेश में सामाजिक वर्जनाओं की ऐसी स्थिति है कि बलात्कार पीड़ित परिवारों को ही उलाहना झेलनी पड़ती है. पिछले साल पुलिस ने 10 साल की एक लड़की को घंटों हिरासत में रखा, क्योंकि उसके घर वालों ने उत्पीड़न की शिकायत की थी.

इन सबके बीच युवा मुख्यमंत्री अपने ऊटपटांग बयान की वजह से भी विवाद में रहते हैं. पिछले हफ्ते की हत्याओं के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने एक पत्रकार से कहा, "आप तो संकट में नहीं हैं न.."

एजेए/एमजी (रॉयटर्स)