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बंगाल में सिकुड़ रही है नई पीढ़ी

२५ जुलाई २०१४

किसी जमाने में यह जुमला काफी मशहूर था कि बंगाल जो आज सोचता है वह बाकी देश कल सोचता है. वजह था पश्चिम बंगाल का बुद्धिजीवी तबका. लेकिन अब उसी राज्य में नई पीढ़ी सिकुड़ रही है. आबादी बढ़ने की दर नीचे जा रही है.

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तस्वीर: DW/S. Waheed

पिछले एक दशक में पश्चिम बंगाल में आबादी बढ़ने की दर सात दशकों में सबसे कम दर्ज की गई. यानी इस पीढ़ी में कम बच्चे पैदा हुए और अगली पीढ़ी में इससे भी कम पैदा होने का अंदेशा बढ़ रहा है. वर्ष 2011 की जनसंख्या पर आधारित आंकड़ों से यह तथ्य सामने आया है. बंगाल में पिछले सात दशकों के दौरान यह पहला मौका है जब आबादी बढ़ने की दर राष्ट्रीय औसत से भी नीचे पहुंच गई है. वर्ष 2001 से 2011 के बीच यह दर 13.84 फीसदी रही जो राष्ट्रीय औसत 17.7 फीसदी से काफी कम है.

खतरे की घंटी

इससे पहले वर्ष 1941 से 1951 के बीच ही इससे कम वृद्धि दर 13.22 फीसदी दर्ज की गई थी. लेकिन उसकी वजह थी वर्ष 1943 में पड़ा भयावह अकाल. उस अकाल के दौरान राज्य में लाखों लोग मारे गए थे. लेकिन पिछले दशक में खासकर लड़कियों की तादाद में आई कमी खतरे की घंटी है. यह राज्य अब ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है जहां बेटी ही अपनी मां की जगह ले रही है. बेटियों की आबादी बढ़ने की बजाय घट रही है. एक औसत महिला के गर्भधारण की उम्र के दौरान पैदा होने वाले बच्चों की तादाद भी अपने सबसे निचले स्तर (1.7) पर पहुंच गई है. महज आठ साल पहले यह आंकड़ा 2.2 था. राजधानी कोलकाता में तो आबादी बढ़ने की दर नकारात्मक (माइनस 1.67 फीसदी) रही है.

इस महीने जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के आंकड़ों में रिप्लेशमेंट लेवल फर्टिलिटी रेट (जब पुत्री ही मां की खाली जगह भरती है) के मामले में बंगाल को आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों के साथ रखा गया है. राज्य के जनगणना निदेशक दीपक घोष बताते हैं, "वर्ष 2001 में देश की कुल आबादी में बंगाल का हिस्सा 7.79 फीसदी था जो अब घट कर 7.54 फीसदी रह गया है." वह कहते हैं कि राज्य की आबादी में शून्य से छह साल तक के आयु वर्ग के बच्चों का हिस्सा भी पिछले दशक के मुकाबले घट कर 11.1 फीसदी रह गया है. इस मामले में राष्ट्रीय औसत 13.1 है. इससे साफ है कि नई पीढ़ी में बच्चे कम पैदा हो रहे हैं.

गिरावट की वजह

प्रजनन दर में आई भारी गिरावट पर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है. लेकिन एक बात पर सहमति है कि राज्य में मृत्यु दर बीते दो दशकों से कमोबेश स्थिर है. इसलिए इससे इतर वजहें ही मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं. यादवपुर विश्वविद्यालय के आबादी विशेषज्ञ प्रोफेसर सुशील हालदार कहते हैं, "राज्य में बीते दो दशकों से मृत्यु दर स्थिर है. लेकिन प्रजनन दर में तेजी से गिरावट आई है." वह कहते हैं कि विस्थापन भी एक वजह है. लेकिन इसका खास असर नहीं पड़ता. इसकी वजह यह है कि यहां से बाहर जाने वाले लोगों की कमी बाहर से यहां आने वाले लोग पूरी कर देते हैं.

मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पापुलेशन स्टडीज में विस्थापन और शहरी अध्ययन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आर.बी.भगत भी हालदार की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "बंगाल में प्रजनन दर में गिरावट ही मौजूदा स्थिति की प्रमुख वजह है." कोलकाता के अर्थशास्त्री अभिरूप सरकार इस स्थिति से खासे चिंतित हैं. वह कहते हैं, "राजधानी कोलकाता समेत शहरी इलाकों में आबादी की दर में नकारात्मक वृद्धि खतरनाक संकेत है. इससे असंतुलन बढ़ेगा और उत्पादकता प्रभावित होगी."

जाने-माने प्रजनन विशेषज्ञ डा. सुदर्शन घोष दस्तीदार का कहना है कि प्रजनन दर में गिरावट की अनदेखी नहीं की जा सकती. इसके लिए कई वजहें जिम्मेदार हैं. वह कहते हैं, "अधिक उम्र में शादी, करियर को तरजीह देना या बच्चे पैदा करने की अनिच्छा ही इसके लिए जिम्मेदार है." उनका कहना है कि खासकर शहरी इलाकों में जीवनशैली में तेजी से होने वाले बदलावों ने भी प्रजनन क्षमता को प्रभावित किया है.

आखिर इस परिस्थिति पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? इस सवाल पर तमाम विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों को बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाना होगा. लेकिन उससे रातोंरात किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. प्रोफेसर हालदार कहते हैं, "जनसंख्या वृद्धि दर को तेज करने नहीं बल्कि उसमें तेजी से आ रही गिरावट पर अंकुश लगाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो अगले दशक में और खतरनाक व चौंकाने वाले नतीजे सामने आ सकते हैं."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा