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लाइक भी बिकता है

६ जनवरी २०१४

बड़े बड़े सितारे, कारोबारी और यहां तक कि अमेरिका का विदेश मंत्रालय भी पैसे देकर सोशल मीडिया पर अपनी लोकप्रियता बढ़ा रहा है. ये सब फेसबुक और ट्विटर पर फर्जी लाइक और फॉलोअर खरीद रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

इनके चक्कर में दुनिया भर में "क्लिक फार्म" बन गए हैं, जो दिन भर बैठ कर माउस क्लिक करते रहते हैं. यूट्यूब के वीडियो के व्यू बढ़ाते हैं और फेसबुक के लाइक बढ़ाते हैं, शेयर करते रहते हैं. 10 साल पहले जब फेसबुक बना, तो लोगों ने अपने वित्तीय फायदों के लिए सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल शुरू किया. नए दोस्त बनाने शुरू किए और कारोबारी फायदे को देखा.

फर्जी लाइक का धंधा

लेकिन अमेरिकी समाचार एजेंसी एपी का कहना है कि उसने इस विषय पर शोध किया है और उसे पता चला है कि कई कंपनियां फर्जीबाड़े में लगी हैं, वे नकली क्लिक खरीद रही हैं. ऑनलाइन रिकॉर्ड, इंटरव्यू और विश्लेषण से पता चलता है कि सोशल मीडिया पर इस तरह का काम करने से करोड़ों की कमाई भी होती है.

एक क्लिक का आधा सेंट भी कमाई का बड़ा जरिया बन सकता है. इनके तार लिंक्डइन से लेकर दूसरी जगहों तक फैले हैं और इंटरनेट की आभासी दुनिया में ज्यादा क्लिक या बड़े नेटवर्क वाले लोगों को बेहतर मौके मिलने की संभावना रहती है. सियोक्लैरिटी के सीईओ मितुल गांधी कहते हैं, "जब भी कभी क्लिक के साथ पैसे का मामला जुड़ा हो, तो लोग उस तरफ बढ़ जाते हैं." इतालवी सुरक्षा रिसर्चर और ब्लॉगर आंद्रेया स्ट्रोपा और कार्ला डीमिचेली का दावा है कि 2013 में ट्विटर के फर्जी फॉलोअर चार से 36 करोड़ डॉलर का कारोबार प्रभावित कर सकते हैं. इसी तरह फेसबुक की गतिविधियों से 20 करोड़ डॉलर प्रभावित हो सकता है.

यही वजह है कि कई कंपनियां अपनी टीम के साथ फर्जी क्लिक की खरीद बिक्री के धंधे में लगी हैं. इन पर लगाम कसने वाले जब भी एक तरीके को नाकाम करते हैं, कोई दूसरा तरीका उभर जाता है. यूट्यूब ने कई ऐसे वीडियो को हटा दिया है, जिन पर फर्जी तरीके से बहुत ज्यादा व्यू दिखाया गया था. यूट्यूब का मालिक यानी गूगल भी उन लोगों से निपटने की कोशिश कर रहा है, जो फर्जी क्लिक के धंधों में लगे हैं. फेसबुक की ताजा तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि 1.18 अरब यूजर में से 1.41 करोड़ फर्जी हैं.

कैसे लगे लगाम

ट्विटर के जिम प्रोसर का कहना है, "आखिर में, उनके अकाउंट सस्पेंड कर दिए जाते हैं. और इसकी वजह से लोग फॉलोअर का नुकसान झेलते हैं." लिंक्डइन के प्रवक्ता डो मैडे का कहना है कि कनेक्शन 'खरीदने' से सदस्य के अनुभव वाला खाना कमजोर होता है. इससे समझौते का उल्लंघन भी होता है और खाता बंद किया जा सकता है. गूगल की प्रवक्ता आंद्रेया फाविले कहती हैं कि गूगल और यूट्यूब "उन खराब एक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करता है, जो उनके सिस्टम को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं."

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Symbolbild Facebook verdient an Smartphone-Werbung
तस्वीर: picture-alliance/dpa

ढाका में सोशल मीडिया का प्रमोशन करने वाली कंपनी यूनीक आईटी वर्ल्ड के प्रमुख शैफुल इस्लाम का कहना है कि वह अपने कर्मचारियों को पैसे देते हैं ताकि वे उनके ग्राहकों के सोशल मीडिया पेज पर क्लिक करते रहें. इससे फेसबुक, गूगल और दूसरी कंपनियों को उन्हें पकड़ने में दिक्कत होती है. इस्लाम कहते हैं, "वे अकाउंट फर्जी नहीं हैं, असली हैं." हाल में फेसबुक से जुड़े सर्वे में पता चला कि कई अंतरराष्ट्रीय सितारों के सबसे ज्यादा लाइक ढाका से आते हैं. मिसाल के तौर पर अर्जेंटीना के स्टार फुटबॉलर लियोनेल मेसी. हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इंस्पेक्टर जनरल की रिपोर्ट के बाद वह लाइक खरीदना बंद कर देगा. चार लाख लाइक वाला विदेश मंत्रालय का पेज सबसे ज्यादा लोकप्रिय मिस्र की राजधानी काहिरा में है और इसके लिए मंत्रालय ने सवा छह लाख डॉलर खर्च किए हैं.

कमाई का मामला

एक मामला तो ऐसा भी है, जब 10,000 लाइक वाला पेज बढ़ कर 25 लाख तक पहुंच गया. मिसाल देखिए, बर्गर किंग सबसे ज्यादा लोकप्रिय पाकिस्तान के शहर कराची में है. दुनिया भर में कई ऐसी कंपनियां बन गई हैं, जो लोगों से पैसे लेकर उनके पेज के क्लिक बढ़ा रही हैं. उनके रेट भी तय हैं. इंस्टाग्राम इंजन 1000 फॉलोअर 12 डॉलर में बेचता है. ऑथेंटिकहिट्स 1000 साउंडक्लाउडप्ले सिर्फ नौ डॉलर में देता है. वीसेललाइक्स डॉट कॉम के प्रमुख का कहना है कि यह अच्छा धंधा है, "कारोबारी फेसबुक लाइक खरीदते हैं क्योंकि उन्हें इस बात का डर है कि अगर लोग उनके फेसबुक पेज पर जाएंगे और वहां सिर्फ 12 या 15 लाइक देखेंगे, तो उनका बिजनेस प्रभावित होगा. उनके ग्राहक हड़क सकते हैं."

इंडोनेशिया में इस तरह का कारोबार खूब फल फूल रहा है, जहां के लोग सोशल मीडिया को लेकर जुनूनी बताए जाते हैं. 40 साल के अली हनाफिया सिर्फ 10 डॉलर लेकर 1000 ट्विटर फॉलोअर मुहैया कराते हैं. और अगर सौदा 10 लाख फॉलोअर का करना है, तो 600 डॉलर लगेंगे. उनके पास अपना सर्वर है और हर इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस के लिए हर महीने एक डॉलर देते हैं. इसकी मदद से वह हजारों सोशल मीडिया अकाउंट चलाते हैं. उनका कहना है कि इन अकाउंटों से "हम कई फर्जी फॉलोअर तैयार कर सकते हैं." जकार्ता के एक रेस्त्रां में बैठे हनाफिया कहते हैं, "आज हम बड़े प्रतिद्वंद्वी बाजार में रह रहे हैं और प्रतियोगिता के लिए हमें कुछ खास ट्रिक अपनाने पड़ते हैं."

आभासी दुनिया के इस फर्जी बाजार ने एक और रोजगार को बढ़ावा दिया हैः ऑडिटर. लंदन में स्टेटस पीपल नाम की कंपनी उन लोगों को ब्लॉक करने में मदद करती है, जो फर्जी हैं. संस्थापक रॉबर्ट वॉलर कहते हैं, "हमारे पास बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्होंने फर्जी लाइक खरीदे हैं. बाद में उन्हें लगा कि यह फिजूल आइडिया है और अब वे उनसे निजात पाना चाहते हैं."

अमेरिकी मार्केटिंग में लगे डेविड बुर्श का कहना है कि फर्जीबाड़े से क्लिक खरीदना एक खराब सौदा है और अगर विज्ञापन कंपनियों को इस बात का पता चल जाए, तो वे उनके लिए इश्तिहार नहीं करेंगे.

एजेए/एमजे (एपी)

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