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प्लास्टिक कल्चर पर चर्चा

१२ जुलाई २०१३

मंथन में इस बार होगी मुलाकात पर्यावरण संरक्षण में लगी मशहूर हस्ती वंदना शिवा से, जिन्हें अपने काम के लिए ऑल्टरनेटिव नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. पर्यावरण के साथ साथ बात खाने की बर्बादी और स्वस्थ आहार की.

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तस्वीर: DW

जब हम प्लास्टिक कल्चर में घुस जाते हैं तो अपने खाने को भी प्लास्टिक बना लेते हैं और अपने दिल को भी, ऐसा कहना है वंदना शिवा का, जिन्हें चिपको आंदोलन के लिए याद किया जाता है. शिवा कहती हैं कि भारत में अगर शहरों से बाहर चले जाएं तो प्लास्टिक बिलकुल नहीं दिखता, बल्कि लोग पत्तल की प्लेटें इस्तेमाल करते हैं.

शहरों का कल्चर

डॉयचे वेले से बातचीत में शिवा ने कहा कि प्लास्टिक के कल्चर के साथ एक संस्कृति जुड़ी हुई है, एक 'थ्रो अवे कल्चर', "थ्रो अवे कल्चर में चाहे वह प्लास्टिक के बैग हों, उन्हें फेंको, या लोगों को इस्तेमाल कर के फेंको, या औरतों को रेप कर के फेंको." उनका कहना है कि इंसानियत और पृथ्वी दोनों को बचाने के लिए एक संरक्षण की संस्कृति बनाने की जरूरत है.

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मंथन में वंदना शिवा ने की थ्रो अवे कल्चर पर बाततस्वीर: DW

वंदना शिवा तीस साल से जैविक खेती यानी ऑरगैनिक फार्मिंग को प्रोमोट कर रही हैं. वह चाहती हैं कि निजी स्तर पर सोच में और नीति, दोनों में बदलाव हो, "पर्सनल लेवल पर जरूरत है कि हम अपनी जिम्मेदारी लें और समझें कि जिस प्लास्टिक की बोतल को हम पी कर फेंक देते हैं, उस से हम नदी को मार रहे हैं."

पूजा की जगह प्रदूषण

लोग अकसर धार्मिक स्थलों पर कूड़ा फेंक आते हैं. वंदना इसे दुखद बताती हैं, "एक तरफ तो आप बद्रीनाथ, और केदारनाथ पूजा करने आ रहे हैं, पर पूजा की जगह आप प्रदूषण फैला रहे हैं". लद्दाख का उदाहरण देते हुए वह बताती हैं कि वहां की सरकार ने यह कानून बना दिया है कि सैलानी प्लास्टिक का कूड़ा अपने साथ वापस ले कर जाएंगे, वे उसे कहीं छोड़ नहीं सकते. उनका मानना है कि यदि इस तरह की नीतियां हर जगह बनने लगें तो कूड़ा करकट देखने को ही नहीं मिलेगा.

मेक्सिको में कूड़े के पहाड़ों से निजात पाने के लिए एक अनोखा तरीका ढूंढा गया है. वहां की एक कंपनी प्लास्टिक के घर बना रही है जो सस्ते भी हैं और टिकाऊ भी. कैसे बन रहे हैं नए जमाने के ये घर बताएंगे आपको इस शनिवार मंथन में.

Veganer Salat
वीगन खाने में जानवरों से लिया कुछ भी नहीं होता. दूध, दही, पनीर भी नहींतस्वीर: dream79 - Fotolia.com

सिर्फ शाकाहारी नहीं, वीगन

इस बार आपको वीगन लोगों पर भी जानकारी मिलेगी. पश्चिमी देशों में वीगन बनने का एक नया ट्रेंड सा चला है. वीगन यानी वे लोग जो जानवरों से लिया कुछ भी नहीं खाते. शाकाहारी तो सिर्फ मांस, मच्छी और अंडे से ही दूर रहते हैं, लेकिन वीगन दूध, दही, पनीर या इनसे बनी मिठाइयां भी नहीं खाते. यहां तक कि कुछ लोग तो ऊन के बने स्वेटर भी नहीं पहनते क्योंकि वह भी तो जानवरों से ही बनती है. जर्मनी में ही ऐसे करीब छह लाख लोग हैं. ये किस तरह का खाना खाते हैं, इसे कहां खरीदते हैं, यह सब हम आपको बताएंगे मंथन की रिपोर्ट में.

साथ ही खाने की बर्बादी पर भी होगे हमारी नजर. हर अमेरिकी सालाना 115 किलो खाने की चीजें फेंकता है और यूरोपीय 80 किलो. जर्मनी में ही औसतन हर व्यक्ति साल में 300 यूरो का सामान कूड़े में फेंक देता है. बताएंगे आपको कि किस तरह से इसे बदलने की कोशिश की जा रही है.

पर्यावरण और सेहत की बातों के साथ साथ इस बार समुद्र की कुछ अनोखी तसवीरें जीतेंगी आपका दिल. देखना ना भूलिएगा मंथन शनिवार सुबह 10.30 बजे सिर्फ डीडी-1 पर.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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