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पाकिस्तान की बदहाली पर कुर्बान होते नौनिहाल

Priya Esselborn२ अप्रैल २०१२

पाकिस्तान में 13 साल के एक स्कूली बच्चे कामरान ने खुद को आग लगाकर जान दे दी है. कामरान की होनहारी देख स्कूल ने उसकी फीस भी माफ कर दी थी लेकिन फटी ड्रेस में स्कूल जाने की शर्मिंदगी का बोझ न उठा पाया.

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तस्वीर: AP

पाकिस्तान के बहुत से बच्चों की तरह ही कामरान का परिवार भी उसे स्कूल भेजने में असमर्थ है. कामरान इतना होनहार था कि इलाके के स्कूल ने उसे मुफ्त में ही पढ़ने की इजाजत दे दी. कामरान के भाई सलीम खान ने बताया कि उसके भाई कामरान ने कभी कुछ नहीं मांगा. पिछले महीने उसने अपनी मां से स्कूल की नई ड्रे सिलवाने को कहा.

उसकी कई पैबंदों वाली पुरानी ड्रेस इतनी जर्जर हो चुकी थी कि कामरान को उसे पहनने में शर्मिंदगी महसूस होने लगी. कामरान की मां ने उससे सहानुभूति तो जताई लेकिन बार बार यही कहती रही कि उसकी ड्रेस के लिए पैसे नहीं हैं. बहुत समझाने के बावजूद जब कामरान नहीं माना तो एक दिन उसकी मां का गुस्सा बेकाबू हो गया और उसने उसे थप्पड़ मार दिया. गुस्से में कामरान ने धमकी दी कि अगर उसकी ड्रेस नहीं खरीदी गई तो वो अपनी जान दे देगा .

इसके बाद वो तेजी से घर से बाहर निकला और खुद पर गैसोलिन छिड़क कर आग लगा ली. आग की लपटों ने उसके शरीर को 65 फीसदी जला दिया और आखिरकार शनिवार को उसकी जान चली गई. उसे पंजाब प्रांत के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिसे सेना चलाती है. उसके परिवार के पास इलाज के लिए जरूरी करीब 3 लाख की रकम का दसवां हिस्सा भी नहीं. ऐसे में भला उसका इलाज कैसे होता और नन्हीं सी जान ने तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया.

स्कूल की फीस माफ होने के बावजूद कामरान का परिवार अपने बच्चों की देखभाल के लिए कड़ा संघर्ष कर रहा है. उसकी मां दूसरों के घरों मे जा कर काम करती हैं.कामरान के पिता ने रिश्तेदारों से उधार लेकर सउदी अरब का में काम करने के लिए वीजा हासिल किया लेकिन उन्हें नौकरी ही नहीं मिली.

कामरान के भाई ने बताया कि वह उत्तर पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के शाबकादर की गलियों में रद्दी लोहे के टुकड़े और दूसरी चीजें बेचने के लिए ढूंढा करता था. कामरान के परिवार जैसी हालत हजारों दूसरे गरीब परिवारों की भी है जिनके लिए आगे बढ़ने के लिए अकेला रास्ता पढ़ाई का है लेकिन सामने विपत्तियों का पहाड़ खड़ा है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक पाकिस्तान की 17 करोड़ आबादी में से करीब 60 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं जिनके पास हर दिन के खर्च के लिए 100 रूपये भी नहीं होते. सरकारी स्कूलों की फीस पूरे महीने के लिए औसतन 100 रुपये होती है लेकिन देश के ज्यादातर परिवारों के लिए यह रकम भी पहुत बड़ी है. खासतौर से इसलिए भी कि औसत रूप से परिवारों का आकार भी बहुत बड़ा है.

पाकिस्तान सरकार की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 30 फीसदी से ज्यादा पाकिस्तानी नागरिकों ने दो साल से भी कम समय की स्कूली पढ़ाई की है. स्कूल जाने वाले बच्चों की पढ़ाई लिखाई का रिकॉर्ड भी बेहद खराब है. एक रिपोर्ट बताती है कि 6 से 16 साल की उम्र में स्कूल जाने वाले बच्चे एक वाक्य भी नहीं पढ़ पाते हैं.

रिपोर्टः एपी/एन रंजन

संपादनः आभा मोंढे

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