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नकली दवा देते हैं डॉक्टर

२५ मार्च २०१३

इंग्लैंड में हुई एक ताजा रिसर्च में पता चला है कि अधिकतर डॉक्टर मरीजों को दवा देने के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं. वे ऐसी दवाएं देते हैं जिनका शरीर पर कोई असर नहीं होगा, पर मजे की बात यह है कि मरीज फिर भी ठीक हो जाते हैं.

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तस्वीर: Fotolia/Sven Bähren

धोखा देकर इलाज करने के इस तरीके को प्लासीबो ट्रीटमेंट कहा जाता है. दरअसल यह मरीज के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से खेलने की तरह है. डॉक्टर मरीज को कई बार चीनी की गोलियां दे देते हैं या फिर कोई ऐसी गोली जिसमें कोई दवा होती ही नहीं है. इन्हें डमी पिल्स कहा जाता है. मरीज को लगता है कि डॉक्टर ने दवा दी है तो अब मर्ज का इलाज हो ही जाएगा. बस यह इच्छा शक्ति ही इलाज के लिए काफी होती है.

कई डॉक्टर इसे अनैतिक भी मानते हैं. उनका मानना है कि मरीज से झूठ कह कर उसे कुछ भी देना गलत है. ब्रिटिश मेडिकल असोसिएशन भी इसके खिलाफ है. हालांकि शोध के नतीजे यह सुझाते हैं कि संघ अपने नियमों में बदलाव लाए. शोध करने वाले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेरेमी होविक कहते हैं, "अधिकारी आंखें मूंद कर रहें और इस बात का दिखावे करें कि प्लासीबो ट्रीटमेंट नहीं किया जा रहा है, इस से तो कोई फायदा नहीं होगा. हमें इसके फायदों को बढ़ाने के बारे में सोचना है."

धोखा या इलाज?

होविक ने अपने साथियों के साथ मिल कर एक सर्वेक्षण किया. इंटरनेट के जरिए उन्होंने देश भर में डॉक्टरों से संपर्क साधने की कोशिश की. ये सभी डॉक्टर इंग्लैंड के जनरल मेडिकल काउंसिल के अंतर्गत पंजीकृत हैं. 783 डॉक्टरों ने अपनी प्रतिक्रियाएं भेजीं. डॉक्टरों से पूछा गया था कि क्या उन्होंने कभी भी प्लासीबो का इस्तेमाल किया है और मरीजों को चीनी की गोलियां या डमी पिल्स दी हैं. साथ ही क्या उन्होंने मरीजों से गैर जरूरी टेस्ट करवाएं हैं. इसमें खून की जांच और एक्सरे शामिल हैं.

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तस्वीर: Fotolia/Yuri Arcurs

नतीजे हैरान कर देने वाले थे. 97 फीसदी डॉक्टरों ने स्वीकारा कि उन्होंने ऐसा किया है. 77 प्रतिशत ने तो कहा कि वे हर हफ्ते प्लीसीबो ट्रीटमेंट का इस्तेमाल करते हैं. जबकि 80 प्रतिशत ने किसी न किस लिहाज से इसे गलत भी माना. कई बार जोड़ों में इंजेक्शन भी लगा दिया जाता है या मरीजों की फिजियोथेरेपी करवाई जाती है. डॉक्टर जानते हैं कि ऐसा करने से जोड़ों का दर्द ठीक नहीं होगा, फिर भी मरीज की तसल्ली के लिए वे ऐसा करते हैं. इसी तरह गले में खराश और खांसी के लिए पेपरमिंट की गोलियां या कई बार तो ऐसे एंटीबायोटिक तक दिए जाते हैं जो बीमारी पर कोई असर नहीं कर सकते.

नैतिकता का सवाल

ब्रिटिश मेडिकल असोसिएशन के अध्यक्ष टोनी कैलेंड का कहना है कि वह शोध के नतीजों से बेहद निराश हैं, "ऐसा इलाज करना जिस से आप जानते हैं कि कोई फायदा नहीं होगा, यह अनैतिक है."

अमेरिका में भी इस तरह के शोध किए जा चुके हैं. वहां भी ऐसे ही नतीजे सामने आए थे. इसके अलावा कनाडा, डेनमार्क और स्विट्जरलैंड में भी ऐसा ही पाया गया है.

अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन के नियमों के अनुसार डॉक्टर प्लासीबो का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन मरीज की अनुमति से ही. इसके विपरीत जर्मनी में 2011 में बनाए गए नियम के अनुसार डॉक्टरों को मरीजों को इस बारे में कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है. जर्मन मेडिकल असोसिएशन नकली गोलियां दे कर इलाज किए जाने को प्रोत्साहित करता है.

हैरानी की बात यह है कि कई शोधों में यह बात भी सामने आई है कि जहां मरीज जानते हैं कि उन पर प्लासीबो का इस्तेमाल किया जा रहा है वहां भी इलाज वैसा ही हुआ है. मरीजों के लिए यह बात मानना भी मुश्किल है कि डॉक्टर उनके साथ धोखा कर रहे हैं. जब इंग्लैंड में लोगों से इस बारे में पूछा गया तो अधिकतर लोगों ने इस से इनकार कर दिया. एक ड्राइवर ने कहा, "हमारे देश में डॉक्टर ऐसा नहीं करते, हमें उन पर भरोसा करते हैं."

आईबी/एएम (एपी)

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