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देश भर में होंगे बायो टॉयलेट

५ जुलाई २०१४

भारत की पचास फीसदी से ज्यादा आबादी के पास शौचालय नहीं है. वह खुले में शौच के लिए जाती है. सरकार इस समस्या का समाधान एक लाख बायो टॉयलेट की मदद से करना चाहती है. शुरुआती टेस्ट सफल रहे हैं.

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तस्वीर: Murali Krishnan

प्रयोग के तौर पर प्रोजेक्ट की शुरुआत भारत की राजधानी दिल्ली से हुई. दिल्ली में हाईटेक बायो डाइजेस्टर टॉयलेट लगाकर ऐसे हजारों लोगों के जीवन में सुधार लाने की कोशिश की जा रही है जिनके पास खुले में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में करीब 62 करोड़ लोग खुले में शौच के लिए मजबूर हैं. उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं.

अब तक दिल्ली में इस प्रोजेक्ट को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है. जून 2014 की शुरुआत में एक सरकारी अस्पताल के बाहर बायो डायजेस्टर टॉयलेट बनाया गया, तब से लगातार इसका इस्तेमाल हो रहा है. राम यादव जैसे दहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर इस शुरुआत से बेहद खुश हैं. वह कहते हैं, "अब हमारे पास टॉयलेट जाने का विकल्प है, हमें खुले में भटकने की जरूरत नहीं. यह लोगों की सुरक्षा का भी मामला है."

स्वच्छता से ज्यादा

इन शौचालयों का मकसद केवल शौच की सुविधा और स्वच्छता या सेहत ही नहीं बल्कि लोगों की सुरक्षा भी है. भारत में शौचालयों की कमी की वजह से खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए खुले में जाना खतरनाक साबित होता रहा है. रात में अकेले खेतों में जाना सुरक्षा का अहम मुद्दा है.

नई दिल्ली निवासी गीता देवी इस पहल की सराहना करती हैं और कहती हैं, "यह बहुत बढ़िया और मददगार कदम है. इस तरह के और टॉयलेट होने चाहिए." इन शौचालयों को डिजाइन करने में मशहूर आर्किटेक्ट रेवल राज ने अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने संसद के पुस्तकालय को डिजाइन करने जैसे प्रोजेक्ट पर काम किया है.

वह बताते हैं, "मैंने महसूस किया कि इतनी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो शौच के लिए खुले में जाते हैं. खासकर यह देश की करीब 25 लाख महिलाओं के लिए बड़ी समस्या है जिनके पास सुबह कोई और विकल्प नहीं होता." इस तरह के ईको फ्रेंडली टॉयलेट कहीं भी लगाए जा सकते हैं. वहां भी जहां सीवर लाइन नहीं है."

High Tech Toiletten in Indien
तस्वीर: Murali Krishnan

ऊंचाई पर भी कारगर

इसी तरह का सिस्टम बेहद ऊंचाई वाले इलाके कश्मीर के सियाचिन हिमनद इलाके में सेना के लिए भी लगाया गया. वहां भी इसे कामयाब पाया गया. भारत का सैन्य रिसर्च एवं विकास संस्थान डीआरडीओ अब बायो टॉयलेट को भारत भर में पहुंचाने की तैयारी में हैं.

डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक डॉक्टर विलियम सिल्वमूर्ति मानते हैं कि यह बेहद नई तरह की तकनीक है. उन्होंने बताया, "हमने ऐसी तकनीक का विकास किया है जिसमें साइक्रोफिलिक बैक्टीरिया के संकाय की व्यवस्था है. इसे अंटार्कटिका से लाया गया और लैब में रखा गया. यह मल को पानी, कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन में बदल देता है.

उन्होंने बताया कि बायो टॉयलेट किसी भी तरह के जलवायु और भौगोलिक स्थितियों में कारगर है. इसके लिए सीवर लाइन की भी जरूरत नहीं. टॉयलेट के डिजाइन में खास तरह की लिड भी लगाई गई है ताकि रेलवे स्टेशन या भीड़ भाड़ वाले स्थानों पर लोग टॉयलेट में प्लास्टिक या बोतल जैसे सामान न डाल दें, जो टॉयलेट में विघटित नहीं हो सकते.

पूर्ण स्वच्छता मिशन 2020

राज रेवल उम्मीद करते हैं कि बहुत जल्द ये टॉयलेट देश भर में होंगे. वह कहते हैं, "अगर हम इस टॉयलेट के डिजाइन और इसकी कीमत पर और काम करें तो हम इसे किसी भी शहर, किसी भी कस्बे या गांव में पहुंचा सकते हैं."

भारत सरकार इस योजना को जल्द से जल्द अमल में लाने की कोशिश कर रही है. भारत का सिर्फ एक राज्य सिक्किम ऐसा है जहां खुले में शौच की समस्या नहीं. 2020 तक भारत सरकार इस समस्या को देश भर से पूरी तरह मिटा देना चाहती है.

रिपोर्ट: मुरली कृष्णन/एसएफ

संपादन: महेश झा