1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

डेंगू का जेनेटिक्स

१८ अक्टूबर २०१३

खास नस्ल का वायरस खास मच्छर से जब मिल जाता है, तो दोनों के बीच होने वाली जटिल आनुवांशिक प्रतिक्रिया के कारण डेंगू का संक्रमण होता है. फ्रांस और थाईलैंड के वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है.

https://p.dw.com/p/1A1ss
तस्वीर: picture-alliance/dpa

डेंगू उष्णकटिबंधिय यानी ट्रॉपिकल देशों की बीमारी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गर्म देशों में करीब 10 करोड़ लोग इससे प्रभावित होते हैं. फिलहाल भारत के कई शहरों में इस बीमारी का संक्रमण फिर से शुरू हुआ है. समस्या यह है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान बढ़ने के कारण यह समशीतोष्ण इलाकों में भी फैल रही है.

कई लोगों को इस बीमारी के साथ हड्डियों और जोड़ों में भयानक दर्द होता है. कुछ सप्ताह के लिए इससे हालत पस्त हो जाती है. और अगर इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है. आंकडों के मुताबिक पांच फीसदी मामलों में यह जानलेवा हो जाता है. इसी कारण ताजा शोध बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.

फ्रांस और थाई शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि मच्छरों और वायरस के बीच होने वाले आनुवांशिक संवाद के कारण डेंगू बुखार फैलाने वाला वायरस पैदा होता है.

उन्होंने पता लगाया कि कुछ मच्छरों पर एक नस्ल के वायरस का असर होता है तो दूसरे का बिलकुल नहीं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि उनके इस शोध से डेंगू के लिए नई प्रभावशाली दवाई बनाने में आसानी होगी.

शहर में बीमारी

जो मच्छर मलेरिया फैलाते हैं उनसे अलग एडेस एगिप्टी मच्छर ऐसी शहरी जगहों पर तेजी से पनपते हैं, जहां पानी भरा हो. थाईलैंड जैसे देशों में रहवासी इलाकों में नियमित अंतराल पर धुआं छोड़ा जाता है. लोगों को सलाह दी जाती है कि खुले में पानी के बर्तन उल्टे करके रखें नहीं तो इनमें बारिश का पानी जमा होने की संभावना बढ़ जाती है. भारत में भी इस तरह के अभियान चलाए जाते हैं.

Thema Dengue-Fieber in Thailand
डॉ. आलोंगकोट पोनलावाटतस्वीर: Alongkot Ponlawat

थाईलैंड की सरकार ने मांग की है कि घरों में और कम अंतराल से स्प्रे किया जाए. क्योंकि इस साल डेंगू के मामलों में चार गुना बढ़ोतरी हुई है.

बैंकॉक में सेना की रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एफरिम्स) के डॉ. आलोंगकोट पोनलावाट बताते हैं, "थाईलैंड और दक्षिणपूर्वी एशिया में डेंगू बुखार का यह बुरा साल है. थाईलैंड में स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य अभियान चलाया था, लेकिन लोग इस पर तब तक ध्यान नहीं देते जब तक कि परिवार का कोई एक बीमार न हो जाए."

पेरिस के पास्त्योर इंस्टीट्यूट और एफरिम्स का साझा शोध पीएलओएस जेनेटिक्स पत्रिका में छापा गया है.

Thema Dengue-Fieber in Thailand
डॉ. लुई लाम्ब्रेष्ट्सतस्वीर: Louis Lambrechts/Institut Pasteur

आनुवांशिक प्रक्रिया

अन्य मुख्य शोधकर्ता डॉ. लुई लाम्ब्रेष्ट्स ने डीडबल्यू को बताया कि उन्हें ऐसा लगा कि मच्छर डेंगू वायरस की सिर्फ एक खास नस्ल के प्रति ही संवेदनशील हैं. वह आगे भी इस पर शोध करेंगे. उन्होंने बताया, "हमें संकेत मिले कि खास आनुवांशिक प्रक्रिया हुई, उनका पहले कभी मच्छरों के क्रोमोजोम में पता नहीं लगाया जा सका. इसलिए हमें बहुत ही धुंधला सा आयडिया है कि मच्छरों के क्रोमोजोम में किस जगह ये इंटरेक्शन होता होगा."

अब वह जेनेटिक फेक्टर की अंतिम मैपिंग करना चाहते हैं, यह जानने के लिए कि मच्छरों में डेंगू बुखार को कौन से तत्व निर्धारित करते हैं. वह मानते हैं कि आने वाले समय में इस शोध से दूसरे वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी कि मच्छरों से होने वाला यह संक्रमण पूरी तरह कैसे रोका जाए. लाम्ब्रेष्ट्स बताते हैं, "कई नीतियों में कोशिश की जा रही है कि इंसान में या तो दवाई या टीके के जरिए इस बीमारी की साइकल तोड़ दी जाए. लेकिन दूसरी नीतियों में कोशिश जा रही है कि मच्छर में होने वाला संक्रमण ही रोक दिया जाए."

मच्छरों में संक्रमण रोकने के लिए ऐसे मच्छर पैदा करने होंगे, जिन पर डेंगू वायरस का कोई असर नहीं होता. इस आयडिया पर ब्रिटेन की एक कंपनी काम कर रही है. लेकिन इसका विरोध करने वाले भी काफी हैं, जिनका कहना है कि अभी पर्याप्त शोध नहीं हुआ है.

Fotolia 19174507 FAQ © Cmon - Fotolia.com
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 18-20/10 और कोड 7653 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: fotolia/Cmon

लाम्ब्रेष्ट्स के मुताबिक, "कुछ लोगों ने ट्रांसजेनिक मच्छर पैदा किए हैं. तो इन मच्छरों को जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए, मच्छरों में एंटी वायरल डिफेंस की जानकारी का इस्तेमाल करते हुए, अगर नए मच्छर पैदा किए जाएं तो इस संक्रमण से छुटकारा मिल सकता है."

जैसे जैसे मच्छर कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक होते जा रहे हैं, सरकारें विवादास्पद विचारों के लिए ज्यादा खुल गई है. लेकिन एफरिम्स के डॉ. पोनलावाट का मानना है कि जीन संवर्धित मच्छरों में अभी काफी साल लगेंगे. "कई शोधकर्ता डेंगू नियंत्रण के लिए इस जीन संवर्धन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन मुश्किलें बहुत हैं. कुछ देशों में इस तकनीक को अनुमति नहीं है. अगर हमारे पास अच्छा मॉडल आ भी जाए, तो उससे मच्छरों को नियंत्रण में आने में कम से कम 10 साल लगेंगे."

Freilassung von genetisch modifizierten Dengue Mosquitos
जीन संवर्धित मच्छरतस्वीर: Imprensa/MOSCAMED

नए टीके

एक और आयडिया है कि ऐसे नए टीकों का विकास किया जाए, जिनसे न केवल इंसान इस बीमारी से बच पाएं, बल्कि मच्छर भी बचें. लाम्ब्रेष्ट्स के मुताबिक, "मच्छर इंसानों का खून चूसते हैं. तो ट्रांसमिशन को रोक देने वाला एक टीका बनाया जा सकता है, यानी खून चूसने के दौरान मच्छरों से डेंगू के वायरस को इंसान में आने से रोक दिया जाए."

बताया जा रहा है कि ऐसा टीका 2014 तक आ सकता है.

भले ही यह शोध अहम हो लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि डेंगू से बचने के लिए कई तरह के उपाय एक साथ करने होंगे. कुछ पारंपरिक तरीके भी हैं, जिनसे मच्छर मर जाते हैं.

एक तरीका है लेमनग्रास और पानी को साथ में रखना. इससे मच्छर आकर्षित होते हैं और इस पानी में पड़े मच्छरों के लार्वा मर जाते हैं. पोनलावाट कहते हैं, "जब हम मच्छरों के लार्वा जमा करते हैं तो पाते हैं कि लेमनग्रास वाले बर्तन में ज्यादा लार्वा होते हैं. वह यह भी जानते हैं कि मछली का कैसे इस्तेमाल करना है. गांबुसिया मछली को ठहरे पानी में रखना अच्छा होता है," क्योंकि वह लार्वा खाती है. हालांकि वह ये भी याद दिलाते हैं कि पीने के पानी में इस मछली को रखना ठीक नहीं.

रिपोर्टः निक मार्टिन, बैंकॉक (आभा मोंढे)

संपादनः ईशा भाटिया

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी